नई दिल्ली । आज जब भारत विजय दिवस मना रहा है और बांग्लादेश अपनी आजादी का जश्न मना रहा है तो हमें ये जानने की भी जरूरत है कि आखिर वो कौन-सी घटनाएं थीं, जिन्होंने आजादी की आग को भड़का कर रख दिया था। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना ने अपने सैन्य तानाशाह याह्या खान के साथ पूर्वी पाकिस्तान में आत्मसमर्पण किया था। इसके साथ ही एक नए देश का उदय बांग्लादेश के रूप में हुआ था। भारत यदि इस संघर्ष में अपनी अहम भूमिका नहीं निभाता तो बांग्लादेश कभी आजादी का सूरज नहीं देख पाता।
बांग्लादेश की आजादी की चिंगारी दरअसल काफी वर्षों से धधक रही थी, लेकिन जब याह्या खान ने देश की जनता में रोष को देखते हुए आम चुनाव करवाए तो उसका रिजल्ट उसकी आशा के अनुरूप नहीं आया। बांग्लादेश की आजादी का सबसे बड़ा चेहरा मुस्लिम लीग के शेख मुजीब-उर-रहमान ने इस चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल की। उनकी पार्टी को बहुमत मिला। इसके बावजूद याह्या खान ने मुजीब उर रहमान को पीएम नहीं बनने दिया और जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया था। इस घटना ने देश में तानाशाह याह्या खान और पाकिस्तान के खिलाफ एक आग का काम किया, जो भड़कती ही चली गई। इस घटना ने पाकिस्तान के पूर्वी इलाके में आक्रोश को जन्म दे दिया, जिसको कुचलने के लिए जनरल टिक्का खान ने लोगों की जुबान बंद करने के लिए सेना को खुली छूट दे दी।
इसके बाद लोगों को मारा गया और जेल में ठूंस कर उन्हें यातनाएं दी गईं। बांग्लादेश में दिन बदलने के साथ पाकिस्तान के लोगों पर जुल्म भी बढ़ते चले गए और लाशों के ढेर भी बढ़ते गए। 25 मार्च 1971 का दिन बांग्लादेश के इतिहास में कभी न भूलने वाले दिन के रूप में दर्ज है, जब पाकिस्तान सेना और पुलिस ने पूर्वी पाकिस्तान में जमकर नरसंहार किया। ये नरसंहार आठ महीने तक लगातार चलता रहा। इसके बाद सेना के ही कुछ जवानों ने पाकिस्तान तानाशाह और उसकी हुकूमत के खिलाफ बगावत कर दी और मुक्तिवाहिनी का गठन हुआ। 14 दिसम्बर 1971 को पाक सेना और उसके समर्थकों ने 1000 से अधिक बंगाली बुद्धिजीवियों को मौत के घाट उतार दिया था।