मनोरंजन

कभी मजदूरी करते थे निरहुआ, आज हैं भोजपुरी के सुपरस्टार


 हर सफल इंसान के पीछे हमेशा ही संघर्ष की एक ऐसी कहानी छिपी होती है जो लोगों को आगे पढ़ने के लिए प्रेरणा देती है। कुछ ऐसा ही संघर्ष भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ के जीवन में भी रहा है। फिल्मों के अलावा राजनीतिक क्षेत्र में भी वो अपना सिक्का जमा रहे हैं। निरहुआ आज जिस मुकाम पर हैं वहां तक पहुंचने का उनका सफर बेहद मुश्किलों भरा रहा है। आज हम आपको दिनेश लाल यादव के झुग्गी से निकलकर महल तक पहुंचने के संघर्ष की कहानी बताने जा रहे हैं।  दिनेश लाल यादव के पिता एक फैक्ट्री में बेहद ही कम सैलरी में काम करते थे। इतने पैसों में घर चलना उनके लिए काफी मुश्किल था। इसलिए वो दिनेश लाल यादव और अपने दूसरे बेटे को साथ लेकर रोजगार के लिए कोलकाता चले गए थे। यहां पर उन्हें 3500 रुपए महीने की सैलरी मिलती थी। इसी सैलरी में वो बड़े परिवार के रहने से लेकर खाने और पढ़ाई तक सब देखते थे। जैसे-तैसा परिवार का गुजारा हो रहा था। निरहुआ अपने पिता के साथ शहर की एक झुग्गी में रह रहे थे और उनकी मां और बहनें गांव में ही रहती थीं। लेकिन कुछ दिनों उन्हें शहरी रंग रासा नहीं आया और सभी साल  1997 में गांव वापस लौट गए। निरहुआ को पढ़ाई-लिखाई से कहीं ज्यादा गाने का शौक था। वो जब भी भैंस चराने जाते थे घंटों उसपर बैठकर गाना गाते थे। निरहुआ अपने चचेरे भाई विजय लाल यादव से काफी प्रभावित थे। बता दें कि विजय प्रख्यात बिरहा गायक हैं। बस यहीं से उनको गाने में दिलचस्पी शुरू हुई। इसके बाद निरहुआ का पहला एल्बम ‘निरहुआ सटल रहे’ बहुत मशहूर हुआ। बस फिर क्या था इस गाने के हिट होने के बाद उनकी किस्मत चमक गई और वो फेमस हो गए। गाने के साथ ही निरहुआ एक्टिंग में भी काफी जबरदस्त हैं। उनकी साल 2006 में पहली फिल्म ‘चलत मुसाफिर मोह लियो रे’ रिलीज हुई। इसके बाद उनकी फिल्म ‘निरहुआ रिक्शावाला’ साल 2008 में रिलीज हुई। इस फिल्म ने उनकी किस्मत को ही बदल दिया। ये फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी। एक्टिंग के साथ दिनेश लाल यादव ने राजनीति में भी अपना खूब नाम कमाया है। आज वो चंदौली जनपद की जनसभा में आजमगढ़ के सांसद हैं।