कोरोनाकी दूसरी लहर भारतमें इतना भयानक रूप धारण कर चुकी है कि पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्टको कहनेपर विवश होना पड़ा कि यह दूसरी लहर नहीं, बल्कि सुनामी है और यदि हालात ऐसे ही चलते रहे तो अनुमान लगाये जा रहे हैं कि अगले कुछ महीनोंके भीतर मौतोंका कुल आंकड़ा कई लाखोंमें पहुंच सकता है। इन दिनों कोरोना संक्रमणके प्रतिदिन साढ़े चार लाखसे ज्यादा नये मामले सामने आ रहे हैं और हजारों लोगोंकी रोजाना मौत हो रही हैं। यही कारण है कि कोरोना वायरसके तेजीसे बढ़ते मामलोंकी वजहसे देशभरमें अस्पतालोंमें बिस्तर, आक्सीजन सिलेंडर तथा कोरोनाके इलाजमें बड़े स्तरपर इस्तेमाल हो रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन सहित कुछ दवाओंकी मांगमें इतनी जबरदस्त वृद्धि हो गयी है कि स्वास्थ्य सेवाएं दम तोडऩे लगी हैं और रेमडेसिविर इंजेक्शनकी जमकर कालाबाजारीके मामले देशभरसे लगातार सामने आ रहे हैं। हालांकि एंटीवायरल दवा रेमडेसिविरका उत्पादन देशमें कई कम्पनियां करती हैं लेकिन अचानक मांगमें आयी तेजीके चलते इसकी किल्लत इतनी ज्यादा हो रही है कि मुनाफाखोरोंको आपदाको अवसरमें भुनानेमें कोई शर्म नहीं आ रही। हालांकि रेमडेसिविरकी मांगको देखते हुए पिछले दिनों केन्द्र सरकार द्वारा इसकी कीमतें घटानेका फैसला लिये जानेके बाद इसका उत्पादन करनेवाली सात अलग-अलग कम्पनियोंने इसके दाम ८९९ से ३४९० रुपयेके बीच तय कर दिये लेकिन आज भी यह दवा ३० से ७० हजार और कहीं-कहीं एक लाखसे भी ज्यादामें बेची जा रही है।
एक ओर जहां लोगोंके बीच एक-एक रेमडेसिविर इंजेक्शनके लिए मारामारी मची है, वहीं आये दिन देशभरमें अलग-अलग स्थानोंपर पुलिस द्वारा इनकी कालाबाजारी करनेवाले गिरोहोंके सदस्योंको गिरफ्तार कर उनके पाससे इन इंजेक्शनोंकी बड़ी खेप जब्त की जा रही है। दरअसल आपदामें अवसरको भुनानेवाले ऐसे असामाजिक तत्वों द्वारा इन इंजेक्शनोंको २५-५० हजारतकमें बेचा जा रहा है। कई जगहोंपर तो ऐसे कई मामले भी सामने आ चुके हैं, जहां रेमडेसिविर इंजेक्शनकी कालाबाजारीमें विभिन्न अस्पतालोंका स्टाफ ही संलिप्त होता है। कुछ जगहोंपर नर्सिंग कर्मियों द्वारा ही कोरोना संक्रमित मरीजोंके लिए उनके परिजनों द्वारा लाये जानेवाले इंजेक्शनोंको ही चोरी कर बेचनेके मामले प्रकाशमें आये तो भोपालके जेके अस्पतालमें तो एक नर्स कोरोना संक्रमितोंको रेमडेसिविरकी जगह सामान्य इंजेक्शन लगाकर रेमडेसिविर इंजेक्शन चुरा लेती थी और चोरी किये इंजेक्शनको अपन सहयोगीके जरिये २०-३० हजारमें ब्लैकमें बिकवाती थी। चिंताजनक स्थिति यही है कि एक ओर जहां अस्पतालोंमें जरूरतमंद मरीज रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिलनेके कारण परेशानी झेलनेको विवश हैं, वहीं प्रशासनकी नाक तले रेमडेसिविर इंजेक्शनकी जमकर कालाबाजारी हो रही है और देशभरमें ऐसे अनेक गिरोह सक्रिय हैं।
अब सवाल यह है कि आखिर क्या वजह है कि रेमडेसिविर इंजेक्शनकी इतनी मांग बढ़ रही हैं और कालाबाजारियोंको आपदाको अवसरमें बदलनेका अवसर मिल रहा है। दरअसल कोरोनाकी पहली लहरके दौरान इसकी डिमांड दिल्ली, मुम्बई, बेंगलुरू, चेन्नई, लखनऊ, जयपुर, अहमदाबाद, सूरत जैसे महानगरों और बड़े शहरोंतक सीमित थी लेकिन चूंकि दूसरी लहरकी शुरुआतसे ही अधिकांश डाक्टरोंने इस एंटी-वायरल दवाको संक्रमणके शुरुआती दिनोंमें कारगर माना और कहा गया कि यह कोरोना बीमारीकी अवधिको कम करती है और संक्रमण अधिक फैलनेसे फेफड़ोंके खराब होनेकी स्थितिमें इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि कुछ डाक्टरोंका कहना है कि यह कोरोनाके सौमेंसे केवल ७०-७५ ऐसे मरीजोंपर ही काम करती है, जिनके फेफड़े कोरोनाके कारण प्रभावित हुए हों और इसका इस्तेमाल जरूरतके हिसाबसे केवल डाक्टरी सलाहपर ही किया जाना चाहिए। अस्पतालोंमें भर्ती किये जानेवाले कारोना मरीजोंके लिए बहुतसे डाक्टर रेमडेसिविर लिख रहे हैं, जिसकी तलाशमें परेशानहाल परिजन मुंहमांगी कीमतपर रेमडेसिविर यह खरीदनेके लिए यहां-वहां भटक रहे है। कोरोनाके बढ़ते आतंकको देखते हुए जरूरतमंदोंके अलावा दूसरे लोगोंमें भी इस इंजेक्शनको हासिल करनेकी होड़-सी मची है। जान लें कि रेमडेसिविर है क्या। रेमडेसिविर बनानेका पेटेंट अमेरिकी दवा निर्माता कम्पनी गिलेड लाइफ साइंसके पास है, जिसने इसे हेपेटाइटिस-सीके इलाजके लिए बनाया था और बादमें इसमें कुछ सुधार कर इसे इबोला वायरसके इलाजके लिए बनाया गया। अब कई देशोंमें कोरोनाके इलाजमें इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। विभिन्न रिपोर्टोंके मुताबिक यह दवा उन एंजाइम्सको ब्लॉक कर देती है, जो शरीरमें कोरोना वायरसको भयानक रूप धारण करनेमें मदद करते हैं। भारतमें केडिला, जाइडस, डा. रेड्डी लेबोरेटरीज, हेटेरो ड्रग्स, जुबलिएंट लाइफ साइंसेज, सिप्ला लि.ए बिकॉन ग्रुप, माइलन इत्यादि कुछ कम्पनियां इसका निर्माण कर रही हैं, जिनका गिलेडके साथ करार है। यह कम्पनियां प्रतिमाह करीब ३४ लाख यूनिट रेमडेसिविर बनाती हैं, जिनका निर्यात दुनियाभरके १२० से भी अधिक देशोंमें किया जाता है। दिसम्बर २०२० के बादसे भारतमें कोरोनाके मामलोंमें कमी दर्ज किये जानेके कारण रेमडेसिविरकी मांगमें काफी कमी आ गयी थी, जिस कारण कम्पनियोंने इसका उत्पादन काफी कम कर दिया था। कोरोनाकी दूसरी लहर अचानक सामने आनेके बाद एकाएक इसकी मांगमें जबरदस्त वृद्धि हुई, यही इसकी कालाबाजारीका प्रमुख कारण है।
एक ओर जहां रेमडेसिविर इंजेक्शनकी मांग लगातार बढ़ रही है, वहीं एम्स निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया सहित कई जाने-माने डाक्टर अब स्थिति स्पष्ट करते हुए कह रहे हैं कि रेमडेसिविरको जादुई दवाई नहीं समझें क्योंकि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोनाकी कोई रामबाण दवा नहीं है। डा. गुलेरियाके मुताबिक रेमडेसिविर कोई जादुई दवा नहीं है और अभीतक ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है, जिससे यह पता चलता हो कि हल्के संक्रमणमें रेमडेसिविर लेनेसे जिन्दगी बच जायगी या इसका कोई लाभ होगा। उनके अनुसार कोरोनासे संक्रमित बहुत कम ऐसे मरीज हैं, जिन्हें रेमडेसिविर जैसी दवाकी जरूरत है और किसी भी स्टडीसे यह भी नहीं पता चलता कि रेमडेसिविरके इस्तेमालसे मृत्युदर घटती है। डा. गुलेरियाका कहना है कि अधिकांश लोग केवल कोरोनाके डरकी वजहसे घरमें क्वारंटाइन हो रहे हैं या अस्पताल जा रहे हैं जबकि ऐसे लोगोंको किसी विशेष तरहके इलाजकी जरूरत ही नहीं है, सामान्य बुखारकी तरह पैरासिटामोलसे ही उन्हें राहत मिल जायगी और वह ठीक हो जायंगे, उन्हें रेमडेसिविरकी कोई आवश्यकता नहीं। हल्के लक्षणोंवाले लोगोंको समयसे पहले दिये जानेपर इसका कोई फायदा नहीं है।
मेदांता मेडिसिटी अस्पतालके चेयरमैन डा. नरेश त्रेहनका यही मानना है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोनाके इलाजकी कोई रामबाण दवा नहीं है। उनके मुताबिक यह मृत्युदर घटानेवाली दवा भी नहीं है, बल्कि देखा गया है कि यह केवल वायरल लोड कम करनेमें मदद करती है और हर मरीजके लिए इसका इस्तेमाल जरूरी नहीं है। उनका कहना है कि रेमडेसिविर सभी संक्रमितोंको नहीं दी जाती, बल्कि इसके इस्तेमालका सुझाव मरीजोंके लक्षणों और संक्रमणकी गंभीरताको देखनेके बाद ही किया जाता है। कोरोना संक्रमणको लेकर पटना हाईकोर्टमें एक मामलेकी सुनवाईके दौरान जब अदालतने बेड, आक्सीजन और रेमडेसिविरको लेकर हालमें सरकारसे जवाब मांगा तो एम्स पटनाके निदेशकने कहा था कि वहां रेमडेसिविरका इस्तेमाल कोरोना मरीजोंके इलाजमें नहीं किया जा रहा है क्योंकि यह इलाजमें बेअसर है। उसके बाद नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एनएमसीएच) ने इसपर प्रतिबंध लगा दिया और एनएमसीएच अधीक्षकने रेमडेसिविरको लेकर जारी पत्रमें कहा कि डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी गाइडलाइनमें इस इंजेक्शनसे मृत्युदर या संक्रमण कम होनेकी बात नहीं कही गयी है।
गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ सहित कई देश रेमडेसिविरको कोरोनाके इलाजकी दवा सूचीसे बाहर निकाल चुके हैं। हालांकि शुरुआतमें डब्ल्यूएचओने इसके आपात इस्तेमालकी अनुमति दी थी, जिसके बाद भारतमें भी आईसीएमआर द्वारा इसका उपयोग केवल आपात स्थितिमें करनेकी इजाजत दी गयी थी, जिसे बादमें निजी अस्पतालोंने भारी मुनाफेके चलते धड़ल्लेसे इसका इस्तेमाल शुरू दिया। फिलहाल आईएमए बिहारके राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सहजानंद प्रसाद सिंहने भी अब स्पष्ट किया है कि रेमडेसिविरसे कोरोना मरीजोंकी जान बचाने या मृत्यु कम करनेका कोई वैज्ञानिक प्रमाण अबतक नहीं मिला है और चिकित्सक अपने अनुभवके आधारपर ही इसका उपयोग कर रहे हैं, इसलिए रेमडेसिविर इंजेक्शनके लिए लोगोंको परेशान होनेकी कोई जरूरत नहीं है।