पटना

खरमास शुरू, नहीं होंगे शुभ मांगलिक कार्य


पटना (आससे)। हिन्दू धर्मावलंबियों का खास माह खरमास 14 मार्च से शुरू हो गया है। इसके साथ ही शुभ, मांगलिक कार्यों पर महीने भर का विराम लग जायेगा। पुन: 14 अप्रैल को सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के बाद खरमास समाप्त हो जायेगा। इस दिन से शुभ मांगलिक कार्य शुरू होंगे। खरमास में पितृ पिंडदान का खास महत्व है।

खरमास में भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा,पाठ करने से वे अत्यंत प्रसन्न होते हैं। जातक यहां सब प्रकार के सुख भोगकर मृत्यु के बाद गोलोक में निवास करता है। धार्मिक अनुष्ठान अगर खरमास में किया जाये, तो अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है।

सूर्य के मीन राशि में प्रवेश से लगा खरमास

भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्र्य  पंडित राकेश झा ने बताया कि 14 मार्च को सूर्य मीन राशि में प्रवेश कर गये। सूर्य के मीन राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास आरंभ हो गया है। बनारसी पंचांग के अनुसार कल 14 की रात 7 बजकर 58 मिनट पर सूर्य मीन राशि में प्रवेश किये। सूर्य ही संक्रांति और लग्न के राजा माने जाते हैं। इनकी राशि का परिवर्तन ही खरमास का द्दोतक है।

नारायण का पूजन विशेष फलदायी

खरमास में कोई भी शुभ मांगलिक आयोजन नहीं होगा। विवाह, नये घर में प्रवेश, नये वाहन की खरीद, संपत्तियों का क्रय-विक्रय, मुंडन संस्कार जैसे अनेक शुभ कार्य वर्जित होते हैं । शुभ मांगलिक कार्यों के लिए गुरु का पूर्ण बली अवस्था में होना आवश्यक है। कहा जाता है कि इस दौरान सूर्य मलिन अवस्था में रहते हैं। इसलिए इस एक माह की अवधि में किसी भी प्रकार के शुभ मांगलिक कार्य नहीं किये जाते। खासकर, इस समय विवाह संस्कार तो बिलकुल नहीं किये जाते हैं, क्योंकि विवाह के लिए सूर्य और गुरु दोनों को मजबूत होना चाहिए।

गुरु-शुक्र-रवि की शुभता है जरूरी 

शास्त्रों में शादी-विवाह के लिए शुभ मुहूर्त का होना महत्वपूर्ण होता है। वैवाहिक बंधन को सबसे पवित्र रिश्ता माना गया है। इसलिए इसमें शुभ मुहूर्त का होना जरूरी है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शादी के शुभ योग के लिए बृहस्पति, शुक्र और सूर्य का शुभ होना जरूरी है। रवि गुरु का संयोग सिद्धिदायक और शुभफलदायी होते हैं। इन तिथियों पर शादी-विवाह को बेहद शुभ माना गया है।

ऐसे तय होते हैं शुभ लग्न-मुहूर्त

शादी के शुभ लग्न व मुहूर्त निर्णय के लिए वृष, मिथुन, कन्या, तुला, धनु एवं मीन लग्न में से किन्ही एक का होना जरूरी है। वहीं नक्षत्रों में से अश्विनी, रेवती, रोहिणी, मृगशिरा, मूल, मघा, चित्रा, स्वाति, श्रवणा, हस्त, अनुराधा, उत्तरा फाल्गुन, उत्तरा भद्र व उत्तरा आषाढ़ में किन्हीं एक का रहना जरूरी है। अति उत्तम मुहूर्त के लिए रोहिणी, मृगशिरा या हस्त नक्षत्र में से किन्हीं एक की उपस्थिति रहने पर शुभ मुहूर्त बनता है।

यदि वर और कन्या दोनों का जन्म ज्येष्ठ मास में हुआ हो, तो उनका विवाह ज्येष्ठ में नहीं होगा। तीन ज्येष्ठ होने पर विषम योग बनता है और ये वैवाहिक लग्न में निषेध है। विवाह माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ एवं अगहन में हो तो अत्यंत शुभ होता है।