चहनियां। मारूफपुर स्थित बाबा कीनाराम मठ रामशाला परिसर में आयोजित सात दिवसीय संगीत मय श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को अयोध्या के संत संतदास जी महाराज ने कथा श्रवण कराते हुए श्रोताओं से कहा कि निर्गुण भक्ति और सगुण भक्ति में कोई अन्तर नही है। निर्गुण भक्ति के बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि बिनु पग चलहि सुनहि बिनु काना। अर्थात निर्गुण ब्रह्म बिना पैर के चलता है बिना मुख के बोलता है बिना कान के सुनता है बिना हाथ के कार्य करता है। उसी प्रकार सगुण ब्रह्म भी अपने सांकेतिक रूप में जगत कल्याण के लिए अवतार लेकर अपने कार्यों को मूर्त रूप देता है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार तालाब की सुन्दरता उसमें खिलने वाले कमल पुष्पों से है उसी तरह से जल में शयन करने वाले ब्रह्म सगुण रूप धारण कर संसार की सुन्दरता बढाते है और उनकी कथा श्रवण रूपी सत्संग से मनुष्यों की शोभा बढती है। कथा में संतदास जी महाराज ने ब्रह्म मीमांसा निरूपण का सजीव चित्रण करते हुए श्रीमद्भागवत कथा की महत्ता के साथ राजा परीक्षित के जीवन चरित्र पर सुक्ष्मता से विचार किया। इस दौरान मुख्य रूप से तिलकधारी शरण दास, सूबेदार मिश्र, राममूरत पाण्डेय, जयशंकर मिश्र, जगदीश पांडेय, सन्तोष पांडेय, हरिओम दुबे, प्रवीण पाण्डेय, अनिल यादव, रमाशंकर यादव, सुरेश पाण्डेय, विवेक दास सहित तमाम श्रोता गण उपस्थित रहे।