पटना

जाले: आम के बागों में मधुआ कीट का प्रबंधन जरूरी: डॉ. आरपी प्रसाद


जाले (दरभंगा)(आससे)। आमों की अच्छी फसल के लिए बागों की सफाई बेहद जरूरी है। इसे देखते हुए केविके जाले के पौधा रोग वैज्ञानिक डॉ. आरपी प्रसाद ने बताया कि आम की फसल का बेहतर पैदावार के लिए आम के बागों में मधुआ कीट का प्रबन्धन बहुत जरूरी है।

इससे बचाव के लिए उन्होंने बताया कि इस कीट का आकार बहुत छोटा, मटमैला व भूरे रंग का फूदफु देने वाला होता है एवम कीट का प्रकोप दिसम्बर से अप्रैल माह तक तथा अगस्त में रहता है। आक्रांत वृक्षों से गुजरने पर झुंड में उड़ कर चेहरे में पर जाते है। ये कीट पत्तियों पर मधुरस श्राव करते है,जो सूर्य की रौशनी पर चमकता है। इस मधुरस पर एक काले फफूंद के आक्रमण से पत्तियां काली पड़ जाती है।

उन्होंने बताया कि इस कीट के लार्वा एवम बयस्क कीट कोमल पत्तियों व पुष्पक्रमो का रस चूसकर मंजर तथा फलों का डंठल कमजोर कर देता है एवम इसके बाद हल्की हवा चलने पर फल नीचे गिर जाते है। इसके जीवनचक्र पर चर्चा करते हुए डॉ. प्रसाद ने बताया कि इसकी मादा एक सौ से दो सौ तक अंडे नई पत्तियों एवम मुलायम प्ररोह में देती है एवम इसका जीवनचक्र 12 से 22 दिनों में पूरा हो जाता है। इसका प्रकोप जनवरी व फरवरी से शुरू हो जाता है।

इस कीट से बचाव के बारे में सुझाव देते हुए डॉ. प्रसाद ने बताया कि इस कीट से बचने के लिए किसान भाई अपने अपने बागों को साफ सुथरा रखे एवम बागों की गर्मी माह में अवश्य जुताई करें एवम फूल निकलने के समय सिंचाई नही करने की बात कही। उन्होंने कीट नियंत्रण हेतु जैविक दवा जैसे ब्युवेरिया बेसियाना फफूंद के पांच ग्राम प्रतिलीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें।

नीम तेल तीन हजार पीपीएम प्रति 2 मिली प्रति लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करने से निजात पाई जा सकती है। इसके अलावा रसायनिक दवा जैसे इमिडाक्लोपीड 17.8 एसएल एक एमएल प्रति तीन लीटर या डाईमेथेएट 30 ईसी. दो एमएल प्रति लीटर पानी मे घोल बनाकर छोडकाव करने से भी राहत मिल जाएगी।

दवा का छिड़काव कम से कम तीन बार,यथा पहला फुल आने से पहले दूसरा फुल खिलने से पूर्व तथा तीसरा मटर के दाने के आकार का फल बन जाने के बाद करने का सुझाव दिया। पहला छिड़काव में दवा पौधें के तनों, धड़ो, शाखों, टहनियों तथा पत्तियों पर अच्छी प्रकार से करें एवम तीन छिड़काव में दवा बदल-बदल कर दें।