पटना

बेगूसराय: थाली खरीद और मसाला खरीद घोटाले के साथ-साथ कई योजनाओं में हुआ गबन


बेगूसराय (आससे)। विद्यालय को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है और शिक्षक ज्ञानदाता कहलाता है। अगर शिक्षा के मंदिर के रखवाले ही पथभ्रष्ट हो जाए तो भला देश का क्या होगा? ऐसा ही वाकया मटिहानी प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय जगदीशपुर मथार का है। जहां 2015 से 2020 तक 2 प्रभारी प्रधान ने रांशि की लूट मचा रखी थी। परिभ्रमण राशि, खेलकूद की राशि, शौचालय मद की राशि एवं थाली खरीद घोटाला से लेकर दुकान से मसाला खरीदारी तक घोटाला किया गया।

बताते चलें कि ग्राम कचहरी गोरगामा के सरपंच ने आरोप पत्र दायर किया जिसमें वित्तीय अनिमिता का आरोप लगाया है। 2015 और 2016 एवं 2016 से 2017 में परिभ्रमण मद की ₹20000 सामग्री मद की राशि 5000 शौचालय मद में ₹50500 एवं थाली मद में ₹12500 के हिसाब नहीं मिलने का आरोप लगाया गया है। जिसमें प्रभारी प्रधान शंभू कुमार ने खर्च में 43 एवं 52 पैसे मसाला खरीद ने की बात की है। 2016 में 209 थाली मध्यान भोजन योजना के तहत खरीदना था जिसके लिए ₹12540 मिला लेकिन मात्र 50 थाली ही खरीद की गई। इसी को लेकर जिला शिक्षा पदाधिकारी ने 30 जनवरी 2021 को प्रखंड विकास पदाधिकारी को पत्र लिखा है और कार्रवाई करने को कहा है।

सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि शंभू कुमार ने 16 अक्टूबर 2018 को सिकंदर साह को विद्यालय का प्रभार सौंपा। लेकिन यह भी विद्यालय मद की राशि का गबन करने लगे जिसका आरोप मटिहानी प्रखंड के राजद प्रखंड अध्यक्ष कैलाश यादव ने आरोप पत्र दायर कर लगाया है। सिकंदर साह प्रभारी प्रधान रहते हुए अपने पुत्र नीरज कुमार को खाते में रांशि देते रहे। इन पर आरोप है कि 75000 रुपये पुस्तक मद से राशि बेटे के खाते में ट्रांसफर किए हैं। वहीं विद्यालय में लगभग 100 छात्र ही उपस्थित होते थे। लगभग 750  विद्यार्थियों की उपस्थिति दर्ज कर मध्यान्ह भोजन योजना में भी घोटाला करते रहे हैं।

जबकि उक्त विद्यालय में स्नातक प्रशिक्षित शिक्षक रंजीत कुमार के रहते हुए पूर्व प्रधान शंभू कुमार ने सिकंदर साह को प्रभार सौंप कर चलते बने। सिकंदर शाह ने 4 जनवरी को 45000 रुपये, 20 जनवरी को 50000 रुपये और 22 दिसंबर 2019 को 1 लाख की निकासी चेक के माध्यम से किए। इसके बाद पुनः 26 जून 2020 को 50,000 रुपये एवं 27 जून 2020 को 1 लाख10 हजार अपने खाते में जमा किए अर्थात 6 माह तक विद्यालय के खाते से राशि इधर उधर होता रहा। या यूं कहें कि बेटे के खाते में उक्त राशि को डाल दिया गया था। जब जांच की गई तो गबन का मामला परत दर परत खुलने लगा।

अब सवाल उठता है कि जिस विद्यालय विकास का दारोमदार विद्यालय प्रधान पर होता है वही विद्यालय प्रधान राशि के गबन करते रहे। ऐसे प्रभारी प्रधान से ही शिक्षा का मंदिर बदनाम हो रहा है। जबकि जिले में ऐसे भी विद्यालय है जहाँ विद्यालय प्रधानाध्यापक अपने घर की तरफ विद्यालय के विकास में योगदान देते हैं जिनके बदौलत जिले का नाम रोशन होता है क्या सभी विद्यालय के प्रधान विद्यालय के विकास हित में कार्य नहीं कर सकते हैं।