सम्पादकीय

तालिबानके बढ़ते वर्चस्वसे खतरा


तारकेश्वर मिश्र      

तालिबानने एक भारतीय फोटोग्राफरकी हत्या कर दी। इस खबरसे पूरे मीडिया जगतमें शोककी लहर है। अपने इस्लामिक शासनकी स्थापनाकी वैधताके लिए तालिबानके प्रतिनिधि कुछ प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियोंके साथ वार्ता भी कर रहे हैं। हालांकि अब पहलेवाला तालिबान नहीं रह गया है, अपने प्रभाव क्षेत्र और इस्लामिक गौरवकी पुन: बहालीके लिए वह हठधर्मिता छोड़कर सर्किय हुआ है। अफगानिस्तानमें हालके दिनोंमें जिस तरह तालिबानका कब्जा नये इलाकोंपर हो रहा है उसे लेकर भारतके राजनयिक हलकोंमें चिंता है। तालिबानने दावा किया है कि यदि वह चाहे तो दो हफ्तोंमें पूरे मुल्कपर कब्जा कर सकता है। फिलहाल माना जा रहा है कि अफगानिस्तानके एक-तिहाई हिस्सेपर इस चरमपंथी संघटनका कब्जा हो चुका है। अफगानिस्तानमें काम कर चुके विदेशी फौजोंके जनरलने कहा है कि मुल्कमें जो स्थिति तैयार हो रही है वह गृह युद्धकी तरफ इशारा कर रही है।

तालिबानका अफगानिस्तानपर कब्जा भारतके हितोंके लिए अनुकूल कभी नहीं कहा जा सका। ऐसेमें संयुक्त राष्टï्र एक वैश्विक मंच है, जो आपसी सहमति और लोकतांत्रिक मूल्योंका संबोधन-स्थल है। आजके दौरमें विश्वके अधिकतर राष्टï्र, बेशक सुपर अमीर हो या कोई पिछड़ा, गरीब देश, सभी समान हैं और एक कुटुम्बकी तरह व्यवहार करते हैं। ऐसे परिदृश्यमें अफगानिस्तानके तालिबान अमानवीय, असैन्य और आतंकवादी हैं। वह सेना और सुरक्षाके अंतरराष्टï्रीय मानकोंको न तो जानते हैं और न ही उन्हें मान्यता देते हैं। वह २१वीं सदीमें भी ‘जंगलीÓ हैं और कबीलोंके प्राचीन संघर्षोंकी तर्जपर सिर्फ मारना-काटना ही जानते हैं। सबसे महत्वपूर्ण और नैतिक सवाल तो अमेरिकापर है कि उसने अपनी सेनाएं अफगानिस्तानमें क्यों भेजी थीं? यदि अलकायदा और उसके तालिबान लड़ाकोंका सूपड़ा साफ करना था तो वह क्यों नहीं कर पाया? अमेरिकाने अफगानिस्तानमें एक समानांतर सेनाको प्रशिक्षित कर स्थापित क्यों नहीं किया? अमेरिकाने अफगानिस्तानमें तालिबानको जिन्दा क्यों रहने दिया और आज वह गाजर-मूलीकी तरह लोगोंको काट रहे हैं? पूर्व अमेरिकी राष्टï्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुशतकने अफगानिस्तानसे नाटो सेनाओंकी वापसीपर टिप्पणी की है कि तालिबान द्वारा लोगोंको मार दिये जानेके लिए अफगानिस्तानको अकेला छोड़ दिया गया है। यह बहुत बड़ी गलती की गयी है। फिलहाल तालिबानने ७० फीसदीसे ज्यादा अफगान इलाकोंपर कब्जे कर लिये हैं। साउथ कंधारमें एक अहम व्यापारिक मार्गपर भी कब्जा कर लिया है। यह मार्ग चमन और कंधारको जोड़ता है।

पाकिस्तान और अफगानके बीचका यह इतना अहम मार्ग है कि रोजाना सामानसे लदे करीब ९०० ट्रक ईरान समेत मध्य एशियाके देशोंमें जाते हैं। कब्जेके बाद शुल्क और राजस्व तालिबानके हाथों ही जायगा। हालांकि अफगान हुकूमतने ऐसे कब्जेका खंडन किया है। सबसे खौफनाक और अनैतिक दृश्य तब सामने आया, जब आत्मसमर्पण कर चुके २२ अफगान कमांडो और सैनिकोंको तालिबानके आतंकियोंने सरेआम गोलियोंसे भून दिया। पाकिस्तानके खैबर पख्तून इलाकेमें हमले कर फौजियोंको मार डाला। क्वेटामें मुख्य मंत्रीदफ्तरपर तालिबानोंने जुलूस निकाला, लिहाजा पाकिस्तानको अपना बॉर्डर बंद करना पड़ा है। पाकिस्तानके लिए भी तालिबान ‘भस्मासुरÓ साबित हो रहे हैं। एक बसपर विस्फोटक हमला किया गया, जिसमें नौ चीनी इंजीनियरों समेत १३ मारे गये। कई जख्मी भी हुए हैं। क्या ‘सुपर पॉवरÓ चीन भी तालिबानके ऐसे हमलोंको झेलता रहेगा? एक अमेरिकी सेना ही तो लौट रही है, उसके अलावा रूस, चीन, भारत, तजाकिस्तान, पाकिस्तान सरीखे कई और देश ऐसी हिंसा और बर्बरताके मूकदर्शक बने रहेंगे क्या? हालांकि तजाकिस्तानके दुशांबेमें शंघाई सहयोग संघटनके देशोंके विदेश मंत्रियोंकी बैठक हुई है। अफगानिस्तानकी सुरक्षा, शांति, जन-स्वास्थ्य और आर्थिक सुधार जैसे मुद्दे प्राथमिक रहे। ईरान और अफगानिस्तानके बीच ९४५ किलोमीटर लंबी सीमा है। एक दिन पहले ही तालिबानने इस्लाम कलां इलाकोंपर कब्जा कर लिया है, जो ईरानकी सीमाके पास है। शियाबहुल ईरानने यूं तो कभी तालिबानका खुला समर्थन नहीं किया है लेकिन उसने कभी-कभी सुन्नी चरमपंथी संघटन तालिबान और अफगानिस्तान सरकारके प्रतिनिधियोंके बीच शांति वार्ताकी मेजबानी की है। ईरान ऐतिहासिक तौरपर अफगानिस्तानमें अमेरिकाकी मौजूदगीका विरोध करता रहा है और इसे अपनी सुरक्षाके लिए ख़तरा मानता रहा है।

भारतके परराष्टï्रमंत्री वर्तमानमें उन सभी क्षेत्रीय शक्तियोंसे कूटनीतिक स्तरपर मिलकर उनसे वार्तामें लगे हैं जिनकी सुरक्षा व्यवस्थापर तालिबान प्रभाव डाल सकता है। हालमें भारतके परराष्टï्रमंत्रीने ईरानके विदेश मंत्री जवाद जरीफके साथ मुलाकात की है। भारतीय परराष्टï्रमंत्रीने तेहरानमें नव-निर्वाचित राष्टï्रपति इब्राहिम रईसीसे मुलाकात कर उन्हें अफगानिस्तान तालिबान मुद्देपर भारतके दृष्टिïकोणसे अवगत कराया। ठीक इसी समय तेहरानमें अफगानिस्तान सरकार और तालिबानका एक प्रतिनिधि मंडल भी वहां मौजूद था। भारतके परराष्टï्रमंत्री एस.जयशंकरने साफ कहा कि अफगानिस्तानका भविष्य उसका अतीत नहीं हो सकता। दुनिया हिंसा और बल द्वारा सत्ता हथियानेके खिलाफ है। भारतका बहुत कुछ दांवपर है। भारतने खंडहर हो चुके अफगानिस्तानमें अभीतक तीन अरब डालरका निवेश किया है। अफगानका संसद भवन हमने बनाया है। योजना आयोगको स्थापित किया है। एक बड़े बांधका निर्माण कराया जा रहा था। अफगानिस्तानके पुनरुत्थान और नये निर्माणमें भारतकी भूमिका और योगदान बेहद अहम हैं। तालिबान बुनियादी तौरपर आतंकवादी हैं। उनकी पिछली हुकूमतका मुखिया मुल्ला उमर था, जो अलकायदाके संस्थापक सरगना ओसामा बिन लादेनका दामाद था। एक अमेरिकी हवाई हमलेमें वह मारा गया था। तालिबानका मानस आज भी आतंकवादी रहा है और उसकी बर्बरताओंके जरिये वह साफ दिख भी रहा है। क्या यह आतंकी इतने ताकतवर और हथियारबंद हैं कि रूस, चीन और भारत सरीखे देश उनपर पलटवार कर उनका सफाया नहीं कर सकते? यह चुनौती संयुक्त राष्टï्रके लिए भी है। अमेरिकाको अपनी शेष सेनाकी वापसीपर पुनर्विचार करना चाहिए। वैसे अमेरिकी सेना जिस भी देशमें गयी है, वहांसे नाकामी लेकर ही लौटी है, लिहाजा अब अमेरिकाको दादागीरीसे भी बाज आ जाना चाहिए। भारत सरकारकी निगाहें अफगानिस्तानके तेजीसे बदलते माहौलपर लगी हैं। परराष्टï्रमंत्री लगातार सक्रिय हैं। जानकारोंके मुताबिक सरकारको इस मोर्चेपर लगातार ध्यान देनेकी जरूरत है। वरना तालिबानका बढ़ता प्रभाव भारतमें नयी टेंशन पैदा कर सकता है।