डा. जयंतीलाल भंडारी
हालमें वित्त मंत्रालयने मासिक आर्थिक समीक्षामें कहा कि कोरोना महामारीकी दूसरी लहरसे बढ़ते संक्रमणके कारण लाकडाउन और पाबंदियां लगानेसे यद्यपि चालू वित्त वर्ष २०२१-२२ की अप्रैल-जून तिमाहीमें आर्थिक गतिविधियोंमें गिरावट आनेका खतरा है, लेकिन अर्थव्यवस्थापर इसका असर पिछले वर्ष २०२० की पहली लहरके मुकाबले कम रहनेकी उम्मीद है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडियाकी मौद्रिक नीति समितिने कहा कि चालू वित्त वर्ष २०२१-२२ में कोरोनाकी दूसरी लहर भारतीय अर्थव्यवस्थाकी रिकवरीकी राहमें बड़ी बाधा बन गयी है। उल्लेखनीय है कि वैश्विक स्तरपर सभी अध्ययनमें यह माना गया है कि कोरोनाकी दूसरी लहरसे उनके द्वारा भारतकी विकास दरके पूर्व निर्धारित अनुमानोंमें कुछ गिरावट जरूर आयगी, लेकिन कोई बड़ी गिरावट नहीं आयगी। अमेरिकी ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सैक्सने चालू वित्त वर्ष २०२१-२२ के लिए भारतकी आर्थिक वृद्धिके पूर्वानुमानको ११.७ प्रतिशतसे घटाकर ११.१ प्रतिशत कर दिया है। जापानकी कंपनी नोमुराने वित्त वर्ष २०२१-२२ के लिए भारतके जीडीपी वृद्धि अनुमानोंको १३.५ फीसदीसे घटाकर १२.६ फीसदी कर दिया है। इसी तरह जेपी मॉर्गनने भी चालू वित्त वर्षमें भारतके लिए विकास दरके अपने पूर्व निर्धारित अनुमानको १३ फीसदीसे कम करके ११ फीसदी कर दिया है।
नि:संदेह कोरोनाकी दूसरी लहरके कारण रोजगार और नौकरियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के द्वारा प्रकाशित रिपोर्टमें कहा गया है कि मार्च २०२१ की तुलनामें अप्रैल २०२१ महीनेमें देशने ७५ लाख नौकरियां गंवायी हैं। इसके कारण बेरोजगारी दर बढ़ी है। लेकिन रिपोर्टमें कहा गया है कि कोरोना महामारी बढऩेके साथ कई राज्योंने लाकडाउन समेत अन्य पाबंदियां लगायी हैं। इससे आर्थिक गतिविधियोंपर प्रतिकूल असर पड़ा है और फलस्वरूप नौकरियां प्रभावित हुई हैं। इससे अप्रैल २०२१ में बेरोजगारी दर चार महीनेके उच्च स्तर आठ प्रतिशतपर पहुंच गयी है। शहरी क्षेत्रोंमें बेरोजगारी दर ९.७८ प्रतिशत है जबकि ग्रामीण स्तरपर बेरोजगारी दर ७.१३ प्रतिशत है। इससे पहले मार्च २०२१ में बेरोजगारी दर ६.५० प्रतिशत थी और अप्रैल २०२१ की तुलनामें ग्रामीण तथा शहरी दोनों जगह यह दर अपेक्षाकृत कम थी। इस रिपोर्टमें यह भी रेखांकित किया गया है कि कोरोनाके दूसरे घातक संक्रमणके बीच फिलहाल रोजगार परिदृश्यपर स्थिति उतनी बदतर नहीं है जितनी कि २०२० में पहले देशव्यापी लाकडाउनमें देखी गयी थी। उस समय बेरोजगारी दर २४ प्रतिशततक पहुंच गयी थी। चूंकि देशमें पिछले वर्ष २०२० की तरह पूरी तरहसे देशव्यापी कठोर लाकडाउन नहीं लगाया गया है, अतएव विनिर्माण सेक्टरकी आपूर्तिपर कोई अधिक बुरा असर नहीं पड़ा है। यही कारण है कि भारतके वाणिज्यिक वस्तुओंका निर्यात पिछले साल २०२० के अप्रैल माहकी अवधिकी तुलनामें अप्रैल २०२१ में करीब तीन गुना बढ़कर ३०.२१ अरब डालर हो गया। पिछले साल अप्रैलमें लाकडाउनके कारण आर्थिक गतिविधियां ठहर जाने और इसकी वजहसे कम आधार होनेके कारण निर्यातमें बड़ी कमी आयी थी। अब निर्यात बढऩेका कारण यह भी है कि पश्चिमी देशों सहित कुछ विकासशील देश कोरोनाके बुरे दौरसे निकल चुके हैं। ऐसेमें विदेशोंसे मांग बढ़ रही है।
भारत इस समय आपूर्तिमें सक्षम है और निर्यात आदेशोंकी उपयुक्त पूर्ति कर रहा है। नि:संदेह सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक महामारीकी दूसरी लहरके बीच अर्थव्यवस्थाके विभिन्न क्षेत्रोंकी मददके लिए उपयुक्त रूपसे आगे बढ़ रहे हैं। पिछले माह २३ अप्रैलको केंद्र सरकारने गरीब परिवारोंके लिए एक बार फिर प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजनाका ऐलान किया है। इस योजनाके तहत केंद्र सरकार राशनकार्ड धारकोंको मई और जून महीनेमें प्रति व्यक्ति पांच किलो अतिरिक्त अन्न, चावल या गेहूं मुफ्तमें देगी। इससे ८० करोड़ लाभार्थी लाभान्वित होंगे। प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजनापर २६००० करोड़ रुपयेसे ज्यादा खर्च होंगे। यह भी महत्वपूर्ण है कि ५ मईको आरबीआईने व्यक्तिगत कर्जदारों एवं छोटे कारोबारोंके लिए कर्ज पुनर्गठनकी जो सुविधा बढ़ायी है और कर्जका विस्तार किया है, उससे छोटे उद्योग-कारोबारको लाभ होगा। इन नयी सुविधाके तहत २५ करोड़ रुपयेतकके बकायेवाले वह कर्जदार अपना ऋण दो सालके लिए पुनर्गठित करा सकते हैं, जिन्होंने पहले मॉरेटोरियम या पुनर्गठनका लाभ नहीं लिया है। यह नयी घोषित सुविधा ३० सितंबर २०२१ तक उपलब्ध होगी। स्वास्थ्य क्षेत्रकी वित्तीय जरूरतोंको पूरा करनेके लिए आरबीआईने ५०,००० करोड़ रुपयेकी नकदीकी व्यवस्था की है। इस योजनाके तहत बैंक टीकों और चिकित्सकीय उपकरणोंके विनिर्माण, आयात या आपूर्तिसे जुड़े कारोबारियोंको ऋण दे सकेंगे। इसके अलावा बैंक अस्पतालों, डिस्पेंसर और पैथॉलजी लैब्सको भी ऋण दे सकेंगे। लेकिन अभी कोरोना लहरके घातक रूपको देखते हुए कुछ और प्रभावी कदम उठाये जाने जरूरी हैं। एमएसएमईको संभालनेके लिए राहतके अधिक प्रयासोंकी जरूरत होगी। जीएसटीसे हो रही मुश्किलें कम की जानी होंगी।
एमएसएमईके लिए एक बार फिरसे लोन मोरेटोरियम योजना लागू की जानी लाभप्रद होगी। आपात ऋण सुविधा गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) को आगे बढ़ाने या उसे नये रूपमें लाने जैसे कदम राहतकारी होंगे। आरबीआईके द्वारा एमएसएमईके कर्जको गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की श्रेणीमें डालनेके नियम आसान बनाये जाने होंगे। एमएसएमई क्षेत्रमें कर्जको एनपीए माननेके लिए मौजूदा ९० दिनकी अवधिको बढ़ाकर १८० दिन किया जाना लाभप्रद होगा। चूंकि इस समय कई औद्योगिक राज्योंसे बड़ी संख्यामें प्रवासी श्रमिक अपने गांवोंकी ओर लौटे हैं, ऐसेमें मनरेगाको एक बार फिर प्रवासी श्रमिकोंके लिए जीवनरक्षक और प्रभावी बनाना होगा। हालमें प्रकाशित एसबीआईकी रिसर्च रिपोर्टके मुताबिक पिछले माह अप्रैल २०२१ में मनरेगाके तहत गांवोंमें कामकी मांग अप्रैल २०२० के मुकाबले लगभग दोगुनी हो गयी है। जहां अप्रैल २०२० में मनेरगाके तहत करीब १.३४ करोड़ परिवारोंको रोजगार दिया गया था, वहीं अब अप्रैल २०२१ में करीब २.७३ करोड़ परिवारोंको रोजगार दिया गया है। ऐसेमें मनरेगाके माध्यमसे रोजगार उपलब्ध कराने हेतु चालू वित्त वर्ष २०२१-२२ के बजटमें मनरेगाके मदपर रखे गये ७३००० करोड़ रुपयेके आवंटनको बढ़ाया जाना जरूरी होगा। हम उम्मीद करें कि कोरोना संक्रमणकी दूसरी घातक लहरसे जंगमें सुनियोजित लाकडाउन तथा स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मानकोंको और कड़ा किये जानेकी रणनीतिसे देश जहां पीड़ादायक मानवीय चुनौतीको नियंत्रित कर सकेगा, वहीं आर्थिकी और रोजगार अवसरोंकी बड़ी गिरावटको रोकनेमें सक्षम होगा।