नई दिल्ली। आज भारतीय रेलवे की बात आते ही सबसे पहले वंदे भारत और वंदे भारत ट्रेन की चर्चा होती है। वंदे भारत को वर्तमान की सबसे बेहतरीन ट्रेन कहा जाता है तो वहीं बुलेट ट्रेन को भविष्य में भारत की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन कहा जाएगा।
हालांकि, इससे पहले 1980 और 1990 के दशक में शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनों को ऐसा ही दर्जा प्राप्त था, जिन्हें अक्सर ‘देसी बुलेट ट्रेन’ कहा जाता था। शताब्दी की भारत में कैसे शुरुआत हुई और इसको लाने का आइडिया कैसे आया, इसका जवाब नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया ने दिया है।
1988 में दिल्ली से झांसी में चली थी पहली शताब्दी
दरअसल, एक इंटरव्यू में पूर्व रेल मंत्री माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य ने भारत में शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनों की उत्पत्ति की कहानी बताई है। उन्होंने बताया कि माधवराव सिंधिया ने 1988 में जवाहरलाल नेहरू की जयंती के उपलक्ष्य में दिल्ली और झांसी को जोड़ने वाली पहली शताब्दी एक्सप्रेस का उद्घाटन किया।
बता दें कि माधवराव सिंधिया ने 1986 से 1989 तक राजीव गांधी सरकार के दौरान रेल मंत्री के रूप में काम किया था। उन्होंने अपने सपनों को साकार करने के लिए शताब्दी एक्सप्रेस की कल्पना की थी।
जापान और फ्रांस यात्रा में कई चीजें सीखी
ज्योतिरादित्य ने बताया कि जापान और फ्रांस की यात्राओं के दौरान उनके पिता ने हाई-स्पीड ट्रेन प्रणालियों का सर्वेक्षण किया। उन्होंने बताया कि उनके पिता माधवराव सिंधिया ने इन यात्राओं से ही भारत के रेलवे बुनियादी ढांचे में सुधार लाने की कोशिश की।
इंटरव्यू में सिंधिया ने कहा कि उनके पिता उन्हें इन सब का ज्ञान देने के लिए अपने खर्चे पर विदेश यात्राओं पर ले जाते थे।
बुलेट ट्रेन से मिला आइडिया
जापान की यात्रा के दौरान माधवराव सिंधिया बुलेट ट्रेन प्रणाली की दक्षता से प्रभावित हुए थे। बुलेट ट्रेन सीमित स्टॉप्स पर रुकती और तेज गति से चलती थी। इसी से भारत में शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनों की अवधारणा को बल मिला था।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया कि इसके बाद फ्रांस में हाई-स्पीड ट्रेनों में भोजन व्यवस्था को जब देखा तो वहां कैसरोल में भोजन परोसा जाता था। इससे भारतीय रेलवे द्वारा उपयोग की जाने वाली पारंपरिक धातु प्लेटों की जगह, शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेनों में फॉइल-आधारित भोजन परोसने की प्रणाली की शुरुआत हुई।