इतिहास यही बताता है कि राष्ट्रपति के चुनाव में सत्ताधारी दल के प्रत्याशी की ही जीत होती है, लेकिन विपक्ष अपना प्रत्याशी उतारकर जनता को एक संदेश देता है। इस बार वह ऐसा नहीं कर सका। भले ही विपक्ष ने राष्ट्रपति चुनाव को अलग-अलग विचारधाराओं के बीच की लड़ाई बताया हो, लेकिन यशवंत सिन्हा के माध्यम से वह यह बताने में नाकाम रहा कि वह किस विचारधारा पर बल दे रहा है? इसी कारण न केवल द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में क्रास वोटिंग हुई, बल्कि उनकी जीत का अंतर भी अनुमान से अधिक रहा।
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होना केवल जनजाति समुदाय के लिए ही गर्व का क्षण नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की उस सामर्थ्य का परिचायक भी है, जो हर किसी को शीर्ष पद तक पहुंचने के अवसर उपलब्ध कराता है। चूंकि द्रौपदी मुर्मू पहली ऐसी राष्ट्रपति होंगी, जो अनुसूचित जनजाति समुदाय से आती हैं, इसलिए देश के समस्त वनवासी समाज के बीच उत्साह और उमंग की कल्पना की जा सकती है। वास्तव में राष्ट्रपति के रूप में उनका निर्वाचन भारतीय लोकतंत्र का गौरव गान भी है।
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति निर्वाचित होना जनजाति समाज के साथ-साथ देश के समस्त वंचित, पिछड़े वर्ग के लोगों के बीच आशा का संचार करने और उनमें आत्मविश्वास का यह भाव भरने वाला है कि संघर्ष और समर्पण के माध्यम से किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है।
द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्ष, सेवा, समर्पण और सादगी की एक मिसाल है। उनका जीवन इसलिए और अधिक प्रेरणा का स्रोत है, क्योंकि अपने जीवन में तमाम अभाव और आघात सहते हुए भी उन्होंने समाजसेविका, विधायक, मंत्री और फिर राज्यपाल के रूप में अपने दायित्वों के निर्वहन में एक आदर्श स्थापित किया। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि वह राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्र को प्रेरित करने का भी काम करेंगी।