डा. अबुल बरकत तब भी अपने आंकड़ों के साथ खड़े थे और आज भी हैं। ‘दैनिक जागरण’ से दूरभाष पर हुई चर्चा में उन्होंने कहा- 30 साल को आप लगभग 25 साल कर लीजिए, क्योंकि मैंने यह आकलन वर्ष 2016 में दिया था। उस बात को लगभग पांच साल बीत चुके हैं। यह क्रम इसी दर से अब भी बना हुआ है।
डा. बरकत के आंकड़ें जितने सीधे व सपाट हैं, उनकी आवाज भी उतनी ही स्पष्ट हैं। दो देशों (भारत-बांग्लादेश) के बीच की दूरी, रीति-नीति, धर्म का फर्क कुछ भी इसके आड़े नहीं आता है। वे कहते हैं शोध के दौरान जब बांग्लादेश के गांव-गांव में पहुंचकर आंकड़े जुटा रहा था तो तस्वीर और उभरती जा रही थी। मुझे अंदाजा था कि जब मैं इन आंकड़ों के आधार पर अपना आकलन दुनिया के सामने रखूंगा तो विरोध सहना पड़ेगा। मैं अभी यह तो नहीं कह सकता कि हाल ही में दुर्गोत्सव के दौरान पंडालों में हमले के बाद कितने हिंदू पलायन कर गए, लेकिन इस तरह की घटनाएं पलायन के आंकड़ों में थोड़ी और तेजी ला देती है।