सम्पादकीय

बाधाओंका निराकरण हो


विश्वके सबसे बड़े टीकाकरण अभियानका तीसरा चरण कल एक मईसे प्रारम्भ होने जा रहा है, जिसमें  १८ से ४४ आयु वर्गको टीके लगाये जायंगे। वैश्विक महामारी कोरोनाके खिलाफ जंगका यह महत्वपूर्ण और अत्यन्त आवश्यक हिस्सा है, जिसमें सभी पात्र लोगोंको अनिवार्यत: टीके लगानेके लिए तत्पर होना होगा। इसके लिए पंजीकरणकी प्रक्रिया भी शुरू हो गयी है। टीकाकरण अभियानको सफल बनानेके लिए केन्द्र और राज्य सरकारोंको समन्वित रूपसे प्रयास करनेकी आवश्यकता है और जो बाधाएं तथा समस्याएं हैं, उनका भी निराकरण होना चाहिए। पिछले दो चरणोंके दौरान जो व्यवस्थागत खामियां सामने आयी हैं, उसपर विशेष ध्यान देनेकी जरूरत है। पर्याप्त मात्रामें टीकोंकी उपलब्धताके साथ ही इसकी बर्बादीपर भी रोक लगानेकी आवश्यकता है। राज्योंकी शिकायत है कि उनको आवश्यकताके अनुसार टीके नहीं मिल पा रहे हैं। इसके कारण कई राज्योंने पहली मईसे लक्ष्य आयु वर्गके लोगोंके लिए टीकाकरण प्रारम्भ किये जानेसे अपनी असमर्थता जतायी है। इनमें महाराष्टï्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़के साथ ही असम, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु भी शामिल हैं। इन राज्योंकी दिक्कतें अलग-अलग हैं लेकिन इनका निराकरण तो होना ही चाहिए। स्वराष्टï्रमंत्री अमित शाह टीकाकरणके तीसरे चरणके सम्बन्धमें उच्चस्तरीय बैठक कर रणनीतिको धार देनेकी कोशिश कर रहे हैं। चूंकि समय कम है, इसलिए अति सक्रियताके साथ उन विषयोंपर कार्ययोजना बनानी होगी जिससे कि बाधाओंको दूर कर अभियानको सफल बनानेकी मजबूत जमीन तैयार की जा सके। एक समस्या आनलाइन पंजीकरणको लेकर भी है, जिसमें टीके लगानेके पात्र लोगोंको दिक्कतें उठानी पड़ रही है। टीकाकरण केन्द्रोंपर पंजीकरणकी जो व्यवस्था चल रही है उसे जारी रखना अधिक व्यावहारिक और सुविधाजनक है क्योंकि इस आयु वर्गके ज्यादातर लोगोंके पास स्मार्टफोन और इण्टरनेटकी सुविधा नहीं है। सर्वरकी समस्या अलगसे है। टीकेके मूल्यको लेकर एकरूपता बनाये रखनेकी भी जरूरत है। टीका निर्माता कम्पनी सीरम इंस्टीट्यूटने राज्योंके लिए टीकेकी प्रति खुराकका मूल्य ४०० रुपयेसे घटाकर ३०० रुपये करके अच्छा किया है। इससे राज्य सरकारोंकी करोड़ों रुपयेकी बचत होगी लेकिन निजी अस्पतालोंके लिए मूल्यमें कमी नहीं की गयी, जिसका बोझ सीधे तौरपर जनतापर ही पड़ेगा। निजी अस्पतालोंके लिए टीकेके मूल्यमें कमी जरूरी है और इसका पूरा लाभ पात्र व्यक्तियोंको मिलना चाहिए।

बैंकोंपर उचित फैसला

सर्वोच्च न्यायालयने बैंकोंको सूचनाका अधिकार कानून (आरटीआई)के दायरेमें लाकर उसकी गिरती साखको बचानेकी दिशामें महत्वपूर्ण कदम उठाया है। बैंकोंके कार्योंमें पारदर्शिताके लिए यह जरूरी हो गया था, क्योंकि जिस तरह बैंकोंमें घोटाले सामने आये हैं और बैंकोंको बंद करने अथवा दूसरे बैंकोंमें विलयकी नौबत आयी है उससे लोगोंके मनमें बैंकोंके प्रति विश्वसनीयतामें भारी गिरावट आयी है। बैंकमें जमा धनराशिको लेकर असुरक्षाका भाव दूर करनेके लिए बैंकिंग सेवाका पारदर्शी होना जरूरी हो गया है। सर्वोच्च न्यायालयने स्पष्टï कर दिया है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) जिन बैंकों और वित्तीय संस्थाओंका नियामक है, उसके बारेमें सूचनाका अधिकार (आरटीआई) के माध्यमसे मांगी गयी जानकारियां उसे देनी होंगी। केनरा बैंक, बैंक आफ बड़ौदा, यूको बैंक और कोटक महिन्द्रा बैंक समेत कई वित्तीय संस्थानोंने जयंती लाल एन मिस्त्री मामलेमें सर्वोच्च न्यायालयके फैसलेको वापस लेनेकी गुहार की लेकिन सर्वोच्च न्यायालयने फैसलेको वापस लेनेसे इनकार कर उन बैंकोंको तगड़ा झटका दिया है, जो गोपनीयताके नामपर आरटीआईके तहत मांगी गयी जानकारी देनेमें आनाकानी करते हैं। न्यायमूर्ति एन. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति विनीत सरनने अपने फैसलेमें कहा है कि यह याचिकाएं सुनवाईके लायक नहीं है और कहा है कि रिजर्व बैंकको उन बैंकों और वित्तीय संस्थानोंके बारेमें सूचना देनी होगी  जो उसके नियमन है। न्यायालयका मानना है कि आरबीआईको आरटीआई कानूनके तहत काम करना चाहिए और सूचनाएं नहीं छिपानी चाहिए। वह आरटीआई कानूनके प्रावधानोंका अनुपालन करनेके लिए बाध्य है। केन्द्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) भी कई बार आरबीआईको आरटीआईके तहत मांगी गयी जानकारी देनेका आदेश दे चुका है परन्तु आरबीआई टालता रहा है लेकिन सर्वोच्च न्यायालयके इस महत्वपूर्ण फैसलेके बाद अब जानकारी देनेसे मुकर नहीं सकता। आरबीआईको इस फैसलेका अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए।