डा. भरत झुनझुनवाला
जलविद्युतके उत्पादनके लिए नदियोंको अवरोधित किया जा रहा है और मछलियोंकी जीविका दूभर हो रही है। लेकिन मनुष्यको बिजलीकी आवश्यकता भी है। अक्सर किसी देशके नागरिकोंके जीवन स्तरको प्रति व्यक्ति बिजलीकी खपतसे आंका जाता है। अतएव ऐसा रास्ता निकालना है कि हम बिजलीका उत्पादन कर सकें और पर्यावरणके दुष्प्रभावोंको भी सीमित कर सकें। अपने देशमें बिजली उत्पादनके तीन प्रमुख स्रोत हैं। पहला, थर्मल यानी कोयलेसे निर्मित बिजली। इसमें प्रमुख समस्या यह है कि अपने देशमें कोयला सीमित मात्रामें ही उपलब्ध है। हमें दूसरे देशोंसे कोयला भारी मात्रमें आयात करना पड़ रहा है। यदि कोयला आयात करके हम अपने जंगलोंको बचा भी लें तो आस्ट्रेलिया जैसे निर्यातक देशोंमें जंगलोंके कटने और कोयलेके खननसे जो पर्यावरणीय दुष्प्रभाव होंगे वह हमें भी प्रभावित करेंगे ही। कोयलेको जलानेमें कार्बनका उत्सर्जन भारी मात्रामें होता है जिसके कारण धरतीका तापमान बढ़ रहा है और तूफान, सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाएं उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही हैं।
बिजली उत्पादनका दूसरा स्रोत जल विद्युत अथवा हाइड्रोपावर है। इस विधिको एक साफ-सुथरी तकनीक कहा जाता है चूंकि इससे कार्बन उत्सर्जन कम होता है। थर्मल पावरमें एक यूनिट बिजली बनानेमें लगभग ९०० ग्राम कार्बनका उत्सर्जन होता है जबकि जलविद्युत परियोजनाओंको स्थापित करनेमें जो सीमेंट और लोहा आदिका उपयोग होता है उसको बनानेमें लगभग ३०० ग्राम कार्बन प्रति यूनिटका उत्सर्जन होता है। जलविद्युत्में कार्बन उत्सर्जनमें शुद्ध कमी ६०० ग्राम प्रति यूनिट आती है जो कि महत्वपूर्ण है। लेकिन जलविद्युत् बनानेमें दूसरे तमाम पर्यावर्णीय दुष्प्रभाव पड़ते हैं। जैसे सुरंगको बनानेमें विस्फोट किये जाते हैं जिससे जलस्रोत सूखते हैं और भूस्खलन होता है। बराज बनानेसे मछलियोंका आवागमन बाधित होता और जलीय जैव-विविधिता नष्ट होती है। बड़े बांधोंमें सेडीमेंट जमा हो जाता है और सेडीमेंटके न पहुंचनेके कारण गंगासागर जैसे हमारे तटीय क्षेत्र समुद्रकी गोदमें समानेकी दिशामें हैं। पानीको टर्बाइनमें माथे जानेसे उसकी गुणवत्तामें कमी आती है। इस प्रकार थर्मल और हाइड्रो दोनों ही स्रोतोंकी पर्यावर्णीय समस्या है।
सौर ऊर्जाको आगे बढ़ानेसे इन दोनोंके बीच रास्ता निकल सकता है। भारत सरकारने इस दिशामें सराहनीय कदम उठाये हैं। अपने देशमें सौर ऊर्जाका उत्पादन तेजीसे बढ़ रहा है। विशेष यह कि सौर ऊर्जासे उत्पादित बिजलीका दाम लगभग तीन रुपये प्रति यूनिट आता है जबकि थर्मल बिजलीका छह रुपये और जलविद्युत्का आठ रुपये प्रति यूनिट। इसलिए सौर ऊर्जा हमारे लिए हर तरहसे उपयुक्त है। यह सस्ती भी है और इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभाव भी तुलनामें कम हैं। लेकिन सौर ऊर्जामें समस्या यह है कि यह केवल दिनके समयमें बनती है। रातमें और बरसातके समय बादलोंके आने-जानेके कारण इसका उत्पादन अनिश्चित रहता है। ऐसेमें हम सौर ऊर्जासे अपनी सुबह-शाम और रातकी बिजलीकी जरूरतोंको पूरा नहीं कर पाते हैं। इसका उत्तम उपाय है कि स्टैंड अलोन यानी कि स्वतंत्र पम्प स्टोरेज विद्युत् परियोजनाएं बनायी जायं। इन परियोजनायोंमें दो बड़े बनाये जाते हैं। एक तालाब ऊंचाईपर और दूसरा नीचे बनाया जाता है। दिनके समय जब सौर ऊर्जा उपलब्ध होती है तब नीचेके तालाबसे पानीको ऊपरके तालाबमें पम्प करके रख लिया जाता है। इसके बाद सायंकाल और रातमें जब बिजलीकी जरूरत होती है तब ऊपरसे पानीको छोड़कर बिजली बनाते हुए नीचेके तालाबमें लाया जाता है। अगले दिन उस पानीको पुन: ऊपर पम्प कर दिया जाता है। वही पानी बार-बार ऊपर-नीचे होता रहता है। इस प्रकार दिनकी सौर ऊर्जाको सुबह, शाम और रातकी बिजलीमें परिवर्तित किया जा सकता है।
विद्यमान जलविद्युत् परियोजनाओंको ही पम्प स्टोरेजमें ही तब्दील कर दिया जा सकता है। जैसे टिहरी बांधके नीचे कोटेश्वर जलविद्युत् परियोजनाओंको पम्प स्टोरेजमें परिवर्तित कर दिया गया है। दिनके समय इस परियोजनासे पानीको नीचेसे ऊपर टिहरी झीलमें वापस डाला जाता है और रातके समय उसी टिहरी झीलसे पानीको निकालकर पुन: बिजली बनायी जाती है। विद्यमान जलविद्युत् परियोजनाओंको पम्प स्टोरेजमें परिवर्तित करके दिनकी बिजलीको रातकी बिजलीमें बदलनेका खर्च मात्र ४० पैसे प्रति यूनिट आता है। इसलिए तीन रुपयेकी सौर ऊर्जाको हम ४० पैसेके अतिरिक्त खर्चसे सुबह शामकी बिजलीमें परिवर्तित कर सकते हैं। लेकिन इसमें समस्या यह है कि टिहरी और कोटेश्वर जल विद्युत् परियोजनाओंसे जो पर्यावरणीय दुष्प्रभाव होते हैं वह तो होते ही रहते हैं। कुंएसे निकले और खाईंमें गिरे। सौर ऊर्जाको बनाया लेकिन उसे रातकी बिजले बनानेमें पुन: नदियोंको नष्ट किया।
इस समस्याका उत्तम विकल्प यह है कि हम स्वतंत्र पम्प स्टोरेज परियोजना बनायें जैसा ऊपर बताया गया है। इन परियोजनाको नदीके पाटसे अलग बनाया जा सकता है। किसी भी पहाड़के ऊपर और नीचे उपयुक्त स्थान देखकर दो तालाब बनाये जा सकते हैं। ऐसा करनेसे नदीके बहावमें व्यवधान पैदा नहीं होगा। ऐसी स्वतंत्र पम्प स्टोरेज परियोजनासे दिनकी बिजलीको रातकी बिजलीमें परिवर्तित करनेमें मेरे अनुमानसे तीन रुपये प्रति यूनिटका खर्चा आयगा। अत: यदि हम सौर ऊर्जाके साथ स्वतंत्र पम्प स्टोरेज परियोजनाएं लगायें तो हम छह रुपयेमें रातकी बिजली उपलब्ध करा सकते हैं जो कि थर्मल बिजलीके मूल्यके बराबर होगा। इसके अतिरिक्त जब कभी अकस्मात ग्रिडपर लोड कम-ज्यादा होता है उस समय भी पम्प स्टोरेज परियोजनाओंसे बिजलीको बनाकर या बंद करके ग्रिडकी स्थिरताको संभाला जा सकता है। इसलिए हमें थर्मल और जल विद्युत्के मोहको त्याग कर सौर एवं स्वतंत्र पम्प स्टोरेजके युगलको अपनाना चाहिए। जंगल और नदियां देशकी धरोहर और प्रकृति एवं पर्यावरणकी संवाहक हैं। इन्हें बचाते हुए बिजलीके अन्य विकल्पोंको अपनाना चाहिए।