सम्पादकीय

एक ही राशनकार्ड जरूरी


सर्वोच्च न्यायालयका सभी राज्योंको एक राष्टï्र, एक राशन कार्ड योजना लागू करनेका निर्देश प्रवासी कामगारोंके हितमें उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है। न्यायमूर्ति अशोकभूषण और  न्यायमूर्ति एम.आर. शाहकी पीठने प्रवासी श्रमिकोंकी समस्यापर स्वत: संज्ञान लेकर शुक्रवारको सुनवाईके दौरान पश्चिम बंगाल सरकारकी तकनीकी दिक्कतोंका हवाला देकर योजनाको लागू करनेमें हिलाहवालीपर कोर्टने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि इस मामलेमें कोई बहाना नहीं चलेगा और सभी राज्योंको इस योजनाको लागू करना है। पीठने यह टिप्पणी तब की जब महाराष्टï्र और पंजाब सरकारने कोर्टको अवगत कराया कि उन्होंने ‘एक राष्टï्र, एक राशन कार्डÓ योजनाको लागू कर दिया है। यह योजना वर्तमान समयमें ३२ राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशोंमें लागू है जिसे कड़ाईसे अमल करनेकी जरूरत है। कोर्टने पश्चिम बंगालको यह योजना तत्काल लागू करनेका निर्देश दिया है। सुनवाईके दौरान यह बात भी सामने आयी कि तीन करोड़ असंघटित श्रमिक राशन कार्डके अभावमें इस योजनाके लाभसे वंचित हैं। शीर्ष न्यायालयने इसे गम्भीरतासे लेते हुए असंघटित श्रमिकोंके पंजीकरणके डाटा बेसके लिए एक राष्ट्रीय पोर्टल बनानेमें देरीपर कड़ी नाराजगी जतायी और कहा कि पोर्टल बनानेका काम अब नौकरशाहीपर नहीं छोड़ा जा सकता है। प्रवासी श्रमिकोंतक लाभ पहुंचानेके लिए पहचान और पंजीकरण पहला कदम है, लेकिन अगस्त, २०२० में शुरू हुई परियोजनाका अबतक एक भी माड्ïयूल तैयार नहीं हुआ जो गम्भीर चिन्ताका विषय है। अधिकारियोंकी कछुआ चाल कार्यप्रणाली परियोजनाको प्रभावित करनेवाली है, इसपर निगाह रखनेकी जरूरत है। यह जिम्मेदारी राज्योंकी है। कोरोना संकटकालमें परिस्थितियां बदली हैं जिससे निबटनेके लिए केन्द्र और राज्यको मिलकर काम करनेकी आवश्यकता है। एक राष्टï्र एक राशन कार्ड जनहितमें न्यायसंगत फैसला है। इससे प्रवासी कामगारोंको वहीं राशन मिल जायगा जहां वे काम कर रहे हैं। इसका लाभ उन्हें मिलेगा जो सरकारी राशनकी दुकानोंसे खाद्यान्न लेते हैं। शीर्ष न्यायालयके फैसलेको निर्धारित समयमें लागू करनेकी जरूरत है। इस दिशामें त्वरित गतिसे कार्य होना चाहिए।

बच्चोंको बनायें निर्भीक

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालयके बाल रोग विशेषज्ञोंका कोरोना संक्रमित बच्चोंपर किया गया शोध बच्चोंके अभिभावकोंके लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। शोधकर्ताओंने दावा किया है कि डर या अवसादसे पीडि़त बच्चोंमें आम बच्चोंकी तुलनामें कोरोना संक्रमणका गम्भीर खतरा अधिक होता है। देशमें कोरोनाकी रफ्तार भले ही धीमी पड़ी है, लेकिन खतरा अभी बना हुआ है, क्योंकि कोरोना संक्रमण लगातार अपना रूप बदल रहा है। यदि पहली लहरसे तुलना की जाय तो दूसरी लहरमें कोरोना पाजीटिव बच्चोंका आंकड़ा दोगुनेसे भी अधिक हो गया, लिहाजा इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता है कि तीसरी लहरमें बच्चोंमें संक्रमण बढ़ सकता है। ऐसेमें अभिभावकोंके साथ ही आनलाइन पढ़ानेवाले शिक्षकोंका दायित्व है कि वे बच्चोंको अवसादसे बचानेके साथ उनमें निर्भीकताका भाव जागृत करें। व्यक्तित्व विकासके लिए व्यक्तिका निर्भीक होना मनोवैज्ञानिक दृष्टिïसे जरूरी है। वयस्कोंकी तरह बच्चोंमें भी अवसाद सम्भव है। १९ सालके होनेसे पहले हर चारमेंसे एक बच्चेको अवसाद होता है इसलिए माता-पिताकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह बच्चेपर पूरा ध्यान दें जिससे उनका समुचित विकास हो और उनमें डरका कोई स्थान न हो। व्यक्तिका डर उसके विकासको अवरुद्ध कर देता है, इसलिए यह जरूरी है कि बच्चोंको निर्भीक बनाया जाय जिससे वह किसी भी स्थितिसे मुकाबलेको तैयार हो सके। ऐसे बच्चोंमें कोरोना संक्रमणका खतरा भी कम हो जायगा और उनका समुचित विकास भी हो सकेगा। शोधकर्ता कैलिफोर्निया विश्वविद्यालयके एमडी एनाबेले डी सेंट मैरिसने बताया है कि आठ सौ अस्पतालोंमें ४३ हजार बच्चोंपर किये गये शोधमें पाया गया कि एक सालसे कम उम्रके बच्चे या जिनको पहलेसे अस्थमा, मधुमेह, जन्मजात हृदयरोग, मोटापा या तंत्रिका सम्बन्धी कोई बीमारी है उन्हें कोरोना संक्रमणका खतरा ज्यादा है और इसकी वजहसे कई बच्चोंको जान गंवानी पड़ी है। ऐसेमें बच्चोंके प्रति विशेष सतर्क रहनेकी जरूरत है, उनकी हर गतिविधियोंपर पैनी नजर अभिभावकोंको रखनी होगी।