पटना: बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के कार्यकाल में कोरोना जांच के नाम पर हुए फर्जीवाड़े का मामला अभी ठंडा भी नही हुआ है कि विधानसभा के चुनाव में मनमाने तरीके से खर्च और फर्जीवाड़ा किए जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है.
यह मामला तब पकड़ में आया है जब लोकसभा चुनाव की तुलना में कई गुना ज्यादा राशि का बिल एजेंसियों ने दे दिया. मामले का खुलासा होने के बाद इसकी जांच शुरू कर दी गई है.
चुनाव के दौरान फर्जीवाड़े का सनसनीखेज मामला
प्राप्त जानकारी के अनुसार शुरुआती जांच में यह पता चला है कि अर्द्धसैनिक बल के जवान जिस जगह पर ठहरे ही नहीं हैं, वहां का भी टेंट पंडाल लगाने का बिल दे दिया गया है. इतना ही नहीं दस दोपहिया वाहनों का नंबर बस का बताकर बिल दिया गया है.
मामला सामने आने के बाद पटना के जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने बिल के सत्यापन करने का आदेश दिया है. बताया जाता है कि बिहार विधानसभा के चुनाव के लिए पटना जिले में 7346 मतदान केंद्र बनाए गए थे.
इसके लिए अर्द्धसैनिक बलों की 215 कंपनियां आई थीं. इन्हें ठहराने के लिए 400 जगह चिह्नित किए गए थे. यहां हुए खर्च के लिए एजेंसियों ने 42 करोड़ रुपये का बिल दे दिया था.
बाद में सत्यापन कमेटी ने इसे घटाकर 31 करोड़ 40 लाख कर दिया. हालांकि तब भी जिलाधिकारी ने पाया कि लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार दस गुना ज्यादा खर्च हुए हैं. इसके बाद जिलाधिकारी ने पुन: अधिकारियों को निर्देश दिया कि मामले की अपने स्तर से जांच करें.
बिहार चुनाव: बिलों में फर्जीवाड़े को लेकर पहले से था संदेह
सूत्रों के अनुसार इस बिल पर पहले भी पटना के तत्कालीन जिलाधिकारी कुमार रवि ने संदेह जताया था. उन्होंने इसकी जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई थी.
इसमें तत्कालीन अपर समाहर्ता राजस्व राजीव कुमार श्रीवास्तव, डीआरडीए के निदेशक अनिल कुमार, जिला भविष्य निधि पदाधिकारी और अवर निर्वाचन पदाधिकारी मसौढी राजू कुमार शामिल थे.
कमेटी ने तब खर्च का आंकलन 31 करोड़ 40 लाख करते हुए भुगतान के लिए जिलाधिकारी को अनुशंसा कर दी थी. 2014 में लोकसभा चुनाव के समय पटना जिले में 60 अर्द्धसैनिक बलों की कंपनियां आई थीं.
अर्द्धसैनिक बल के जवानों पर उस समय दो करोड़ 30 लाख रुपये का खर्च आया था, जबकि 2020 में 215 कंपनियों पर खर्च का आकलन 42 करोड़ दिखाया गया है.
अधिकारियों के मुताबिक टेंट पंडाल लगाने के लिए खर्च का जो विवरण दिया गया है. यदि उस पर सरकार और प्रशासन खुद टेंट पंडाल लगाता तो यह खर्च एक करोड़ में हो जाता.