सम्पादकीय

भयावह वायु प्रदूषण


वायु प्रदूषणसे देशमें जन-धनकी हो रही भारी क्षतिका अनुमान केन्द्र सरकारकी संस्था भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद (आईसीएमआर) की ताजा रिपोर्टसे लगाया जा सकता है, जो अत्यन्त ही भयावह और गम्भीर रूपसे चिन्ताजनक है। लीसेट प्लेनेटरी हेल्थमें प्रकाशित रिपोर्टमें कहा गया है कि वर्ष २०१९ में वायु प्रदूषणके चलते १६ लाख ७० हजार लोगोंको अपनी जानसे हाथ धोना पड़ा और २६०००० करोड़ रुपयेसे अधिककी आर्थिक क्षति हुई है। उत्तरी और मध्य भारतीय राज्य भारी आर्थिक क्षति उठा रहे हैं। इनमें उत्तर प्रदेश और बिहार सबसे अधिक प्रभावित हैं। वायु प्रदूषणसे देशको कुल सकल घरेलू उत्पादके १.४ प्रतिशतके बराबरकी क्षति हो रही है। उत्तर प्रदेशकी जीडीपीका २.१५ प्रतिशतके बराबरकी क्षति वायु प्रदूषणसे होनेवाली मौतों, बीमारियों और उत्पादकतामें कमीसे होती है। यह लगभग ३६ हजार करोड़से भी अधिक है। दूसरे स्थानपर बिहार है, जहां जीडीपीका १.९५ प्रतिशतके बराबरकी क्षति वायु प्रदूषणसे होती है। यह असाधारण क्षति है जिसे उत्तर प्रदेश और बिहार झेलनेके लिए विवश हैं। वर्षाके महीनोंको छोड़कर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार जैसे राज्योंमें रहनेवाले लोग लगभग पूरे वर्ष वायु प्रदूषणकी मार झेलते हैं। दिल्लीसे लेकर लखनऊमें रहनेवाले लोग इस समय जिस हवामें सांस ले रहे हैं वह स्वस्थ लोगोंको भी बीमार बना सकती है और यह बीमारी प्राणघातक भी हो सकती है। रिपोर्टका यह आंकड़ा भी भयावह है, जिसमें कहा गया है कि वायु प्रदूषणसे होनेवाली मौतोंमें १९९० से २०१९ तक ६४ प्रतिशतकी कमी आयी है लेकिन हवामें मौजूद प्रदूषणकी वजहसे होनेवाली मौतोंमें ११५ प्रतिशतकी वृद्धि हुई है। आईसीएमआरके महानिदेशक बलराम भार्गव स्वीकार करते हैं कि फेफड़ोंसे जुड़ी बीमारियोंके ४० प्रतिशत मामलोंके लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और समयसे पूर्व पैदा होनेवाले नवजात बच्चोंकी मौतके लिए वायु प्रदूषण ६० प्रतिशततक जिम्मेदार हैं। यह पहला अवसर है जब सरकारने वायु प्रदूषणसे होनेवाली मौतों और आर्थिक क्षतिका आंकड़ा जनताके सामने रखा है लेकिन दुख और चिन्ताका विषय यह है कि वायु प्रदूषणको प्रभावी ढंगसे रोकनेके लिए मजबूत कदम नहीं उठाये गये। देशमें तमाम मुद्दोंपर आन्दोलन होते हैं लेकिन वायु प्रदूषणका महत्वपूर्ण मुद्दा अबतक जन-आन्दोलनका हिस्सा नहीं बन पाया। जनताको इसके लिए जागरूक और सक्रिय होना पड़ेगा अन्यथा हर वर्ष इसी तरह जन-धनकी भारी क्षति होती रहेगी। वायु प्रदूषणको रोकनेकी जिम्मेदारी जनता और सरकार दोनोंकी है लेकिन सरकारकी भूमिका विशेष मायने रखती है। इस दिशामें सरकारको शीघ्र कदम उठानेकी जरूरत है।
पाकिस्तानका नाटक
आतंकवादको राजकीय संरक्षण देनेवाले पाकिस्तानका एक नया अदालती नाटक सामने आया है। इसके पीछे उसका मुख्य उद्देश्य दुनियाकी आंखोंमें धूल झोंकना है। वहांकी एक आतंकवादरोधी अदालतने मुम्बईपर हुए आतंकी हमलेके मास्टरमाइण्ड और जमात-उद-दावाके मुखिया हाफिज सईदको दहशतगर्दीका वित्तपोषण करनेके लिए एक और मामलेमें गुरुवारको १५ सालकी कैदकी सजा सुनायी है। ७० वर्षीय सईदपर दो लाख रुपयेका जुर्माना भी लगाया गया है। इसके पहले भी सईदको आतंकवादके वित्त पोषणके चार मामलोंमें दोषी ठहराया जा चुका है और उसे २१ वर्षकी सजा भी हुई है। पांच मामलोंमें उसे कोट लखपत जेल लाहौरमें ३६ वर्षोंकी सजा काटनी होगी। सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी। वस्तुत: पाकिस्तानकी यह अदालती काररवाई पूरी तरह दिखावेकी है। वह दुनियाको यह बताना चाहता है कि पाकिस्तान अब आतंकवादके खिलाफ ठोस कदम उठा रहा है। इसके पीछे उसका उद्देश्य यह भी है कि काली सूचीमें नाम डाले जानेसे वह बच सके। लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है।ं सईदको पहले भी जेलकी सजा हुई है लेकिन वह जेलमें सभी सुख-सुविधाओंके साथ दिखावेके लिए रह रहा था। सईद जेलमें कम रहता था और बिना रोक-टोक बाहर ही रहता था। सरकार उसे पूरी सुरक्षा और संरक्षण देती है। सईदको जेलकी सजाका कोई मतलब ही नहीं है। पाकिस्तान यह जानता है कि यदि वह ऐसी दिखावेकी काररवाई नहीं करेगा तो काली सूचीमें शामिल किये जानेका खतरा उसपर मंडराता रहेगा। एक बार यदि पाकिस्तानका नाम काली सूचीमें आ जाता है तो उसे काफी आर्थिक परेशानीका सामाना करना पड़ेगा। वैसे ही पाकिस्तान अनेक वर्षोंसे आर्थिक संकटसे जूझ रहा है। वह भीषण बदहालीके दौरसे गुजर रहा है। अर्थव्यवस्था पूरी तरहसे जर्जर हो चुकी है और दूसरे देशोंसे उसे भीख मांगनी पड़ती है जिससे कि देशकी आर्थिक गतिविधियां संचालित की जा सकें। पूरे विश्वको पाकिस्तानके ऐसे नाटकसे सजग रहनेकी जरूरत है। यदि वह नहीं सुधरता है तो उसके देशका नाम काली सूचीमें अवश्य शामिल किया जाना चाहिए।