रांची, । Jharkhand News तसर सिल्क के उत्पादन में पूरे देश में पहले नंबर पर मौजूद झारखंड अब इस तमगे से आगे बढ़कर नई संभावनाओं की ओर देख रहा है। झारखंड सरकार की कोशिश है कि कोकून उत्पादन से आगे बढ़कर इससे निर्मित रेशम के वस्त्रों के उत्पादन में भी झारखंड आगे बढ़े और यहां के लोगों को रोजगार मिले। इसके तहत बुनकरों, शिल्पियों और रेशम कृषको को विभिन्न प्रशिक्षण माध्यमों से तैयार भी किया जा रहा है। इसके आगे सरकार की यह भी कोशिश है कि झारखंड में इन कपड़ों के उत्पादन को लेकर नहीं कंपनियां खुलें और उन्हें स्थानीय स्तर पर ही अच्छे प्रशिक्षित कामगार मिल जाएं। इसके लिए विभिन्न माध्यमों से योजनाएं संचालित हो रही हैं। वित्तीय वर्ष 2021-22 में झारखंड में लगभग 900 टन रेशम का उत्पादन हुआ है। इसका उपयोग परिधानों के निर्माण और अन्य कार्यों के लिए हो सकेगा। इसका बड़ा हिस्सा दूसरे राज्यों में संचालित कंपनियों के पास चला जाता है। रीलिंग, स्पिनिंग तथा पोस्ट कुकुन क्रियाकलापों से संबंधित विभिन्न योजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं।
आर्गेनिक रेशम के उत्पादन में भी आगे बढ़ रहा राज्य
झारखंड का खरसावां-कुचाई आर्गेनिक रेशम उत्पादन के लिये पूरे देश में प्रसिद्धि पा चुका है और यहां यहां रेशम कीट पालन से लेकर कोसा उत्पादन तक में किसी प्रकार के रसायन का उपयोग नहीं होता है। यहां के कुकून की भारी मांग है।
तसर को बढ़ावा देने के लिए कार्य हो रहे
झारखंड में तसर उत्पादन की बहुत संभावनाएं है। जलवायु और मौसम से लिहाज से यह प्रदेश अनुकूल है। इसलिए लगातार यहां पर तसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए कार्य किए जा रहे हैं। इस कार्य में बड़े पैमाने पर महिलाओं को जोड़ा जा रहा है। इसके लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित जेएसएलपीएस द्वारा महिलाओं को इसकी खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। तसर के लिए 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है और झारखंड के अधिकांश हिस्सों में इस तरह का वातावरण मौजूद है।