शिवप्रसाद ‘कमल’
आज विज्ञानका युग है। हाथों द्वारा किया जानेवाला श्रम हम नहीं कर पा रहे हैं। अब जीवनमें मशीनों-यंत्रोंका महत्व अधिक हो गया है। इन मशीनोंने हमारा समय बचाया अवश्य किन्तु हमें बेकार-सा कर दिया है। इससे हम सही विश्राम नहीं कर पाते। एक बार सुप्रसिद्ध दार्शनिक कन्फ्यूशियसका एक शिष्य किसी गांवमें गया। विश्रामके लिए एक बगीचेमें गया तो उसेने देखा बगीचेका माली अपने बेटेके साथ बगीचेको सींच रहा था। बूढ़ा माली खुद कुएंके पास मोटमें जुता हुआ था। मालीका लड़का भी यही कर रहा था। वह शिष्य बूढ़े मालीके पास जाकर बोला, अब तो मेरे दोस्त पानी निकालनेके लिए बैल और घोड़े जोते जाते हैं। तुम अपने जवान बेटेके साथ क्यों जुते हो? बूढ़ेने कहा, धीरे बोलो मेरा बेटा सुन लेगा। मैं तुमसे बादमें बात करूंगा। वह अभी रोटी लेने जानेवाला है। कुछ देर बार लड़का चला गया। शिष्यने पूछा, यह तुमने क्यों कहा कि धीरे बोलो मेरा लड़का सुन लेगा। मालीने कहा, लड़का जवान है अभी उसकी समझ भी क्या है। लेकिन मैं अपने जीवनके अनुभवसे कहता हमें कि मैंने श्रमके क्षणोंमें ही आनन्द प्राप्त किया है। घोड़े और बैल तो लाये जा सकते हैं, लेकिन तब यह लड़का क्या करेंगा। निश्चय ही तब लड़का विश्राम करने लगेगा। इसपर कन्फ्यूशियसका शिष्य बोला, करने दो उसे विश्राम। समय भी तो बचेगा। माली बोला, लेकिन मैं तब क्या करूंगा। बेकार और व्यर्थकी लतोंमें हम पड़ जायेंगे। मैं नहीं चाहता कि मेरा लड़का श्रमसे दूर हो। यह तय है कि जिस दिन मैं और लड़का श्रमसे दूर हो जायंगे, उस दिन जीवनसे दूर हो जायंगे। श्रम जरूरी है चाहे जिस किसी कामके लिए हो। श्रम प्रार्थना है-जीवनको चैतन्य रखनेकी प्रार्थना। आदमी खाली रहेगा तो तरह-तरहकी अनर्गल बातें सोचेगा। व्यर्थके कामोंमें अपनी ऊर्जा नष्टï करेगा, क्योंकि जिस दिन वह श्रमसे दूर हो जायगा, उसी दिन जीवनसे दूर हो जायगा। श्रम करनेवाला आदमी भोला होता है। रोजी-रोटी कमाये कि झगड़े-उपद्रव करे। श्रम करनेवाले व्यक्तिके लिए फालतू बातें सोचनेका समय नहीं है। इसलिए जब वह रातको सोता है घोड़े बेचकर सोता है। अमीर और श्रम करनेवाला व्यक्ति कभी भी शान्तिपूर्वक सो नहीं पाता। जो दिनभर आराम करेगा उसे रातमें अच्छी नींद नहीं आ सकती। बूढ़े मालीकी बात एकदम सच है। विश्रामके हकदार वही हैं जो श्रम करते हैं। कोई श्रमसे चूक जायगा तो विश्रामसे भी चूक जायगा। आज हमने श्रम छोड़ देनेके सभी उपाय किये हैं। सारी-सारी रात इसीसे हम छककर नहीं सो पाते। जीवनका वास्तविक रूप है कर्म। इसे हम भूलते जा रहे हैं।