सम्पादकीय

अर्थव्यवस्थाका पुनरावलोकन आवश्यक


 डा. अम्बुज  

देशमें बैंकिंग प्रणालीका इतिहास दो सौ वर्षसे भी पुराना है जब देशमें पहली बार सन्ï १८०६ में बैंक आफ बंगाल शुरू हुआ। देशमें नवआर्थिक स्थितिको देखते हुए रिजर्व बैंक आफ इंडिया ऐक्ट १९३४ के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंककी स्थापना एक अप्रैल, १९३५ को कोलकातामें हुई। बैंकोंकी उपयोगिताको देखकर उस दौरके कई राज्योंने अपने बैंककी शुरुआतकी जो बहुत लाभमें रहे, अपने ईमानदारी, पारदर्शिता और रकमकी सुरक्षाके लिए जाने जाते रहे, जिन्होंने आमजनको बचतके लिए उत्साहित किया। देशकी आजादीके बाद बैंकोंकी उसी प्रकार स्वायत्ता कायम रही और सन्ï १९४९ को भारतीय रिजर्व बैंक देशका राष्टï्रीय आर्थिक उपक्रम बना। बैंकोंके कार्यप्रणाली उपयोगिता आवश्यकताको देखते हुए पहली बार १९५५ में इम्पीरियल बैंक आफ इण्डियाका भारतीय स्टेट बैंकके नामसे राष्टï्रीकरण किया गया। इसी प्रकार पुन: देशवासियोंके सुविधाओं एवं उनके द्वारा बचत की गयी रकमको ध्यानमें रखकर १४ जुलाई, १९६९ में १४ भारतीय बैंकोंका राष्टï्रीकरणका फैसला लिया गया जिसने देशके आर्थिक ढांचाको मजबूत करनेका काम किया था। भारतीय बैंकों द्वारा कमजोर तबकेको सबल बनाने कार्य शुरू हुआ जिससे देश एक मजबूत अर्थव्यवस्थाके साथ उभरकर वैश्विक पटलपर आया।

बैंक अपने खाताधारकोंके जमा पूंजीसे चलता है जो खाताधारकोंके धनकी सुरक्षाकी गारण्टी देता है तथा बदलेमें मूलधनपर ब्याज देता है, जो आमजनको खाता खोलकर बचत करनेके लिए प्रेरित करता है। बैंक खाताधारकोंके रकमको निजी क्षेत्रोंमें काम करनेवाले व्यवसायियोंको लोनके रूपमें ऋण देकर नवव्यापारको बढ़ावा देता है तथा उनसे लोनको मात्रात्मक रूपमें ब्याजपर मूलधनकी रकम जोड़कर किस्तके रूपमें वापस लेता है। यही व्यवसाय बैंक खाताधारकोंके बचत धनसे करता है। देशके विभिन्न क्षेत्रोंमें व्यापारिक ऋण देकर व्यापारमें बढ़ावा देता है जिससे देशके आर्थिक स्तरमें वृद्धि होती है। साथ ही नये रोजगारका सृजन भी होता है। मात्र इसी व्यवसायके बलपर बैंक अपने सामान्य खाताधारकोंको ब्याजके रूपमें अच्छी रकम देकर मजबूत करता है लेकिन जब तय बकाया ब्याजपर मूलधनकी किस्त नहीं चुकायी जाती है तो उसे एनपीए कहा जाता है। यानी बैंकका पैसा डूब गया। आईसीआरए एजेंसीके आंकड़ोंके मुताबिक वर्ष २०१८ में भारतीय बैंकोंका सबसे ज्यादा पैसा डूबा है। देशमें आर्थिक धोखाधड़ीके मामलोंको देखते हुए २०१४ में व्यवस्थाकी खामियोंको दूर करनेके लिए पीजे नायक समितिने ८२ सिफारिशोंकी एक रिपोर्ट भारतीय रिजर्व बैंकके गवर्नरको सौंपी, जिससे बैंकोंके धनकी रक्षा हो सके तथा ऐसे प्रावधानका निर्माण हो सके जिससे देशका पैसा लुटेरे लोगोंसे बचाया जा सके। लेकिन उन ८२ सिफारिशोंमेंसे केवल चार-पांचकी ही अभीतक लागू किया गया है। जबकि भारतीय रिजर्व बैंकने एनुअल स्टैटिकल रिपोर्ट पेश किया जिसमें नानपरफार्मिंग एसेटका उल्लेख है  जो २०१४ से लेकर २०२० तक यानी विगत छह सालोंमें एनपीएकी कुल रकम ४६ लाख करोड़ रही। २०१४ से २०१८ तक एनपीए सात लाख ३६ हजार करोड़ बढ़ा जो इसके बढऩेको दर १७८ फीसदी रही यही कारण था कि २७ सितम्बर, २०१९ को मुम्बईमें रहनेवाली ट्यूसन टीचर सुमनजी अपने पंजाब महाराष्टï्र बैंकके सामने खड़ी रो रही थीं कि उनका पैसा उनकी बेटीके एमबीए पढ़ाईके प्रवेशके लिए नहीं निकल पा रही थी। वजह था भारतीय रिजर्व बैंकने पीएमसी बैंकके सभी मेजर बैकिंगपर रोक लगा दी थी जिसके चलते खाताधारक एक हजार रुपयेसे ज्यादा नहीं निकाल सकता था। आखिर यह हालात कैसे पैदा हुए इसके लिए कौन जिम्मेदार है, सोचनेका विषय है।

देशके बड़े बैंक जिनका अधिकतर लोन डूब गया है उसमें अन्य बैंकको समाहित किया जा रहा है जो किसी किसी भी प्रकार बैंकोंके खाताधारकोंके लेन-देनकी चालू रखा जा सके और बड़े बैंक वित्तीय आपातकी स्थितिमें न पहुंच जाय। यह योजना वन नेशन, वन बैंकके नामपर चलायी गयी, जो कहीं एनपीएके कारण लूटे बैंकोंको चालू रखनेकी कवायद मात्र तो नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंकके गवर्नरने कोरोना कालके उपरान्त कहा कि वित्तीय स्थिरता कायम रखनेके लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है इसके लिए बैंकोंको अग्रिम बफरके रूपमें संसाधन जुटानेकी जरूरत है। देशके वित्तीय संस्थानोंको आर्थिक वृद्धिको आगे बढ़ानेके लिए कठिन हालातसे जूझना होगा एनपीएके वजहसे बैंकोंपर बहीखातोंपर काफी दबाव पड़ा है। इससे बैंकोंकी पूंजी घटी है शायद यही कारण है कि अबतक शेयरमें निवेशकोंके २.२३ लाख करोड़ रुपयेकी पूंजी डूब चुकी है। देशकी मुद्रा रुपयामें भी गिरावट देखनेको मिल रही है। विदेशी मुद्रा भण्डारमें भी २१ करोड़ डालर घटा है। बहुमूल्य धातु सोना एवं चांदीमें लगातार गिरावट देखनेको मिल रही है। इन सभी गिरते आर्थिक हालातके लिए कहीं न कहीं एनपीए एक मुख्य कारक है जिसके कारण देशमें आर्थिक अस्थिरताका माहौल व्याप्त है। एनपीए यानी जब कोई व्यक्ति या संस्था किसी बैंकसे लोन लेकर उसे वापस नहीं करती हैं तो उस लोन खाताको बन्द कर दिया जाता है। इसके बाद उसकी नियमोंके तहत धनप्राप्त करनेकी प्रक्रिया शुरू की जाती है। ज्यादातर मामलोंमें बैंकका मूलधन नहीं मिलता है। इस तरह बैंकका पैसा डूब जाता है और बैंक घाटेमें चला जाता है कई बार बैंक बन्द होनेकी कगारपर पहुंच जाते हैं। इसमें सबसे अधिक परेशान आम खाताधारक होता है।

षट्ïपदीवादके अनुसार देशके आधारभूत लक्ष्योंकी सिद्धिके लिए राज्यका कर्तव्य है कि वह आर्थिक क्षेत्रोंमें नियोजन, निर्देशन, नियमन, नियंत्रणका सामान्यत: तथा विशेष क्षेत्रों और स्थितियोंमें स्वामित्व एवं प्रबन्धका भी दायित्व ले जिसने पूंजीवादको व्यक्तिवाद माना है साथ ही स्वतन्त्रता एवं समानताको परस्पर पूरक बनानेपर जोर देता है। जो इस प्रकारकी बैंकिंग धोखाधड़ीके कारण सम्भव कैसे हो सकता है, क्योंकि रियल्टी क्षेत्रके कर्जके मामलेमें एनपीए जून २०१८ में ५.७४ फीसदीकी तुलनामें जून २०१९ में ७.५ फीसदी हो गया, जिस कारण भारतीय स्टेट बैंकको सिर्फ ६१ फीसदीका घाटा हुआ। ऐसे ही हालात लगभग सभी क्षेत्रोंका है यह सोचनेका विषय है। आखिर लोन कैसे दिया जाता है कि देशका पैसा डूब जाता है। बैंकका घाटा होता है और आम खाताधारकोंको समस्याओंका सामना करना पड़ता है। इन कारकोंका असर बैंक और उसकी कार्यप्रणालीपर पड़ा है। साथ ही आमजनपर भी दिखने लगा है। यही कारण है कि जनधनमें खुले खातोंमें लगभग दस करोड़से ऊपर खाते बन्द हो गये हैं तथा अधिकतर बन्द होनेके कगारपर हैं। ऐसेमें देश आत्मनिर्भरताके लक्ष्यको कैसे प्राप्त करेगा। यह भी समझनेका विषय है। एनपीएको लेकर जो काररवाई हो रही है सिर्फ वही काफी नहीं है, बल्कि जो कानून और नियम भारतीय रिजर्व बैंकके सुरक्षाके लिए बने हैं उनका पूर्ण अनुपालन शासन तंत्रकी जिम्मेदारी बनती है। यदि लोन धारक लोन नहीं चुकाता है तो समूचा शासन तंत्र क्या कर रहा है, क्योंकि आर्थिक अपराधका सीधा मतलब है देशके आम खाताधारकों एवं आमजन जो विभिन्न रूपोंमें देशको धन देता है। उनके साथ अपराध ऐसेमें यह लूट सिर्फ बैंकके साथ न होकर देश एवं देशवासियोंके साथ है जो एक नये प्रकारकी विषमता एवं संस्कृतिको जन्म दे रही है। वहीं दूसरी तरफ ऐसे व्यक्ति एवं संस्थाएं हैं जो बैंकोंको लूट रहे हैं फिर भी उनका नाम बैंक बतानेसे डरता है। ऐसेमें सोचना होगा कि देशके ऐसे हालातके लिए जिम्मेदार वह कौन लोग हैं जो विदेशी सोचसे देशका धन लूट रहे हैं, जो लूटमें सहायक है वह भी लुटेरेसे कम नहीं, ऐसेमें अर्थव्यवस्थाका पुनरावलोकन आवश्यक हो गया है, ताकि आमजनका आर्थिक शोषणसे रक्षा हो सके। मजबूत बैंकिंग प्रणालीसे ही देशकी अर्थव्यवस्थाको पटरीपर लाया जा सकता है।