सम्पादकीय

असंघटित मजदूरोंका संकट


डा. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा  

कोरोनाकी दूसरी लहरके पीकके समाचारोंके बीच यह सुखद खबर है कि  दो करोड़से ज्यादाने जंग जीती है तो करीब पौने तीन लाखने दम भी तोड़ा है परन्तु आज आवश्यकता मौतके आंकड़ोंके स्थानपर ठीक होनेवालोंके समाचारोंकी है, ताकि सकारात्मक माहौल बन सके। क्योंकि कोरोना महामारीकी भयावहताको हम नकार नहीं सकते। परन्तु लोगोंको दहसतमें जीनेसे तो हम बचा सकते हैं। देश-दुनियामें नंबरोंका यह खेल किसी भी तरहसे तुलनीय नहीं हो सकता क्योंकि दुनियाके किसी भी देशमें कोरोनाके कारण ही नहीं, अपितु किसी भी कारणसे एक भी व्यक्तिकी मौत होती है तो वह अपने आपमें गंभीर चिंतनीय है। हालांकि यह आंकड़े बेहद चिंतनीय होनेके साथ ही कोरोनाकी दूसरी लहरकी गंभीरताको चेता रहे हैं। लाख मारामारीके बावजूद वैक्सीनेशनकी स्थितिमें भी सुधार हो रहा है। आक्सीजनकी उपलब्धता बढ़ी है। हालातोंमें लगातार सुधार हो रहा है। लोगोंमें आत्मविश्वास जगने लगा है। पिछले दिनों देशमें जिस तरहसे आक्सीजनकी मारामारी हुई और आक्सीजन सिलेण्डरोंकी अनुपलब्धताके कारण तड़पती हुई मौतोंसे साक्षात्कार हुआ उस स्थितिमें सुधार आने लगा है। अब यदि सबसे अधिक आवश्यकता है तो वह है देशमें कमियोंको उजागर करने, नकारात्मकताको दिखानेके वक्तव्यों या समाचारोंके स्थानपर देशमें हिम्मत और सकारात्मकताका संदेश देनेकी है। आज आवश्यकता चिकित्सकों, दवाओं, आवश्यक उपकरणोंके साथ ही लगभग इनके बराबर ही मनोविज्ञानियोंकी है जो संक्रमणसे जूझ रहे या संक्रमणके डरसे भयभीत लोगोंमें आशाका संचार पैदा कर सके। समस्या संक्रमित व्यक्तिकी ही नहीं है अपितु कोरोनाके कारण जो परिवार प्रभावित हुआ है चाहे वह परिवार कोरोनाको हरानेमें सफल रहा हो या कोरोनाकी जंगमें हारा हो परन्तु आज सबसे अधिक उस परिवारको मनोवैज्ञानिक सहारेकी है तो दूसरी ओर लोगोंको कोरोनासे डरानेकी नहीं, बल्कि उससे लडऩेकी, हेल्थ प्रोटोकालकी पालना करनेके लिए प्रेरित करनेकी है। हो क्या रहा है कि टीवी चैनलोंपर एवं मीडियाके अन्य माध्यमोंपर जिन्दगी हारते लोगोंकी तस्वीरें प्रशासनकी नाकामियोंको उजागर करते समाचार प्राथमिकतासे दिखाये जा रहे हैं उससे मानवताका कोई भला नहीं होनेवाला नहीं है। हद तो सोशल मीडियाके तथाकथित ज्ञानियोंने कर दी है जो या तो दिनभर ज्ञान बांटते रहते हैं या फिर नकारात्मक तस्वीरोंसे दहशतका माहौल बना रहे हैं। आज आवश्यकता कमियां निकालने या अभावोंका दुखड़ा रोनेकी नहीं, अपितु जो है उसे ही बेहतर करनेकी हो गयी है। कहीं कोई कमी है तो उसे सही प्लेटफार्मपर उजागर करे और वह भी उसके निराकरणके सुझावके साथ तो उससे इस महामारीकी भयावह स्थितिसे हम अधिक ताकतके साथ लड़ सकेेंगे।

हालांकि मानवताके दुश्मनोंने अपनी करनीसे कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कोई अस्पतालोंमें बेड उपलब्ध करानेकी बोली लगा रहा था तो कोई जीवनरक्षक दवाओंकी कालाबाजारीमें लिप्त हो रहा था। कोई आवश्यक उपकरणों यहांतक कि थर्मामीटर, आक्सीमीटर मनचाहे दामोंमें बेचनेमें लगे हैं तो कुछ दवाओंका स्टाक जमा कर बाजारमें कृत्रिम अभाव पैदा करनेमें लगे हैं। यहांतक कि हालात इस तरहके बना दिये कि लोगोंमें भय अधिक व्याप्त हो गया। हमारा भी फर्ज हो जाता है कि इस तरहके मानवताके दुश्मनोंको सार्वजनिक करें और प्रशसनको सहयोग कर ऐसे लोगोंको सामने लायें। ऐसे लोग व्यवस्थाको बिगाडऩे और लोगोंमें दहशत पैदा करनेमें कामयाब हो जाते हैं और उसका खामियाजा समूचे समाजको भुगतना पड़ता है।

पिछले दिनों देशभरमें जिस तरहसे आक्सीजनकी कमी कारण लोगोंके मरनेके समाचारों और बेड़ नहीं होनेके समाचारोंको प्रमुखता दी गयी उससे देशभरमें भयका माहौल बना। लोग घबराने लगे और इसीका परिणाम रहा कि देशभरमें मारामारीवाले हालात बने। यह सही है कि प्रशासनकी कमियोंको उजागर किया जाय परन्तु उसमें संयम बरतना आजकी आवश्यकता ज्यादा हो जाती है। आज कमियां गिनानेका समय नहीं है। सरकार अपने स्तरपर प्रयास कर रही है। समझना होगा कि एक सालसे भी अधिक समयसे कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। प्रवासी मजदूरों एवं असंघटित मजदूरोंके सामने दो रोटीका संकट आ रहा है तो स्थायी रोजगारवालोंके भी वेतनमें कटौती हो रही है तो छंटनीका डर सता रहा है। सरकार चाहे केन्द्रकी हो या राज्योंकी संसाधनोंकी सीमाएं सब जानते हैं। यह भी सही है कि पेनिक करनेसे समाधान भी नहीं हो सकता। ऐसेमें यदि सरकारको अलग फोरमपर सुझाव तो मीडियामें सकारात्मकताका संदेश दिया जाय तो इस संकटसे देशवासी जल्दी ही उभरनेकी स्थितिमें होंगे। अच्छा लगा जब यह जानकारी सामने आयी कि देशमें दो करोड़से ज्यादा लोगोंने कोरोनाके खिलाफ जंग जीती है। कोरोना संक्रमितोंका आंकड़ा जो चार लाखको छूने लगा था वह अब करीब ढाई लाखपर आया है तो ठीक होनेका आंकड़ा चार लाख प्रतिदिनको पार कर रहा है। रिकवरी रेटमें लगातार सुधार हो रहा है। हालांकि देशमें करीब ३५ लाख संक्रमित हैं, कोरोनाकी जंग जीतनेके लिए संघर्ष कर रहे हैं। परन्तु हिम्मत और सकारात्मक सोच एवं समाचारोंसे उन्हें रिकवर होनेमें अधिक आसानी होगी। इसलिए आज आवश्यकता संक्रमितोंको बचानेके साथ ही लोगोंमें विश्वास पैदा करनेकी है। लोगोंसे यह डर निकालना होगा कि अस्पताल गये तो वहां देखनेवाला कोई नहीं हैं, कभी भी आक्सीजनकी कमी हो सकती है या दवाओंके लिए भटकना पड़ सकता है। गैर-सरकारी संघटन यदि सहयोगीकी भूमिकामें आगे आते हैं तो हालातोंको जल्दी ही सुधारा जा सकता है। कोरोनाके पहले दौरमें जिस तरहसे भयमुक्त वातावरण बनाकर लोगोंको बचाया गया वैसा ही प्रयास किया जाता है तो दूसर लहरसे भी निबटना आसान हो जायगा। यदि सकारात्मक हालातोंको प्रमुखता दें तो मानवताके गिद्धोंपर अंकुश लगेगा, लोगोंमें विश्वास जगेगा और दवा या अन्यकी अनुपलब्धताके भयसे मौतोंको रोका जा सकेगा।