सम्पादकीय

क्वाडसे भयभीत चीन


संजय राय

कोरोना महामारीके बाद बदले हालातमें चीनने दुनियाकी महाशक्ति बननेके अपने सपनेको परवान चढ़ानेके प्रयास तेज कर दिये हैं। इस प्रयासमें वह भारत और पड़ोसी देशोंके साथ अमेरिकाको धौंस-पट्टी दिखा रहा है। इन दिनों चीन भारत-अमेरिका-जापान और ऑस्ट्रेलियाके बीच बने चतर्भुज सुरक्षा वार्ता समूह (क्वाड) को लेकर बयानबाजी और चेतावनी देनेमें जुटा हुआ है। वर्ष २००४ में क्वाड जैसा समूह बनानेकी बात तब आयी जब सुनामीकी भीषण आपदाके समय भारतने अपने एवं अन्य प्रभावित पड़ोसी देशोंके लिए अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा जापानके साथ मिलकर बचाव एवं राहतका काम किया। सुनामीसे सबसे बुरी तरह प्रभावित जापानके प्रधान मंत्री शिंजों आबेने सबसे पहले किसी भावी आपदासे निबटनेके लिए इस तरहका समूह बनानेका विचार पेश किया था। शिंजो आबेके प्रस्तावपर अगस्त २००७ में क्वाड सुरक्षा वार्ताकी पहली बैठक मनीलामें आयोजित की गयी, जिसमें जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका वरिष्ठ अधिकारियोंने हिस्सा लिया। इसी वर्ष क्वाडमें शामिल चार देशों और सिंगापुरने बंगालकी खाड़ीमें एक नौसेनिक अभ्यास किया। इस अभ्यासको चीनने अपने खिलाफ एक गठजोड़के रूपमें देखा।

चूंकि चीन लंबे समयसे दुनियाकी महाशक्ति बननेका सपना पाले हुए है और इसके लिए जी-तोड़ मेहनत भी कर रहा है, इसलिए स्वाभाविक रूपसे उसे ऐसा लगा कि यह गठबंधन अमेरिकाके नेतृत्वमें उसके खिलाफ बनाया गया है। इस गठजोड़से भारतके घोषित दुश्मन देश पाकिस्तानको कोई समस्या नहीं दिखी, लेकिन चीन इस कदर भयभीत हुआ कि उसने भारतको न सिर्फ जुबानी तौरपर बल्कि सैन्य बलके सहारे भी धमकानेका प्रयास किया। अब वह इसमें शामिल सभी देशोंको खुलेआम धमका रहा है। चीनको लगता है कि यह चारों देश उसकी बढ़ती ताकतको रोकनेके लिए गठजोड़ किये हैं। उसे लगता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्रमें यह समूह उसके लिए बहुत बड़ी चुनौतीके रूपमें उभर सकता है और उसकी प्रसारवादी महत्वाकांक्षापर लगाम लगा सकता है। यही कारण है कि जैसे ही चीनको कहींसे भनक लगी कि इस समूहमें बंगलादेश भी शामिल हो सकता है तो उसने बंगलादेशको धमकाना दिया। पिछले मई महीनेमें ही बंगलादेशमें चीनके राजदूतने वहांकी प्रधान मंत्रीको इस समूहसे दूर रहनेकी चेतावनी दी है, जबकि बंगलादेशकी तरफसे अभीतक क्वाडमें शामिल होनेकी कोई पहल भी नहीं की गयी है। पूरे विश्व देख रहा है कि आर्थिक विकासमें तेजीसे आगे बढऩेके बाद अब चीनकी महात्वाकांक्षा कुलांचे भर रही है। अपनी प्रसारवादी नीतिके तहत चीन लंबे समयसे दक्षिण चीन सागरमें भी अपना दबदबा बढ़ाकर पड़ोसी आसियान देशोंको लगातार परेशान कर रहा है। वह समुद्रके इस इलाकेमें कुछ कृत्रिम द्वीप भी बना चुका है और इन द्वीपोंपर अपने सैन्य ठिकाने बना रहा है।

चीनकी इन हरकतोंको देखते हुए आसियान और क्वाड देशोंको भी लग रहा है कि वह इस इलाकेसे होनेवाले अंतरराष्ट्रीय व्यापारको नियंत्रित करनेका मंसूबा पाले हुए है। चीन कई बार इस सागर क्षेत्रको अपना बता चुका है। इसीलिए भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलियाकी तरफसे कई बार बयान दिया गया है कि समुद्री क्षेत्रमें एक नियम आधारित व्यवस्था होनी चाहिए। पिछले वर्ष नवंबर महीनेमें जब भारतकी नौसेनाने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापानके साथ हिंद महासागरमें ‘मलाबारÓ सैन्य अभ्यास किया तो उस समय भी चीनके तेवर तीखे हो गये थे। क्वाडको चीन अपने खिलाफ अपने खिलाफ गठबंधनके रूपमें देख रहा है, लेकिन यह समूह एक नियम आधारित व्यवस्था बनानेके अपने मौलिक उद्देश्यकी दिशामें प्रभावी तरीकेसे आगे बढ़ रहा है। उदाहरणके लिए कोरोना महामारीके बाद बदले हुए वैश्विक माहौलमें नयी एक नयी वैश्विक आपूर्ति श्रृखला बनानेकी बात हो रही है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीने भी कई बार वैश्विक मंचोंपर इस पहलकी पुरजोर वकालत की है। मोदीने कहा है कि दुनियाको केवल एक ही देशपर आपूर्तिके लिए निर्भर रहनेके दुष्परिणामको कोरोना संकटने उजागर कर दिया है। ऐसेमें समान विचारधारावाले, समान मूल्योंमें विश्वास करनेवाले देशोंको वैकल्पिक व्यवस्थाके रूपमें बहुपक्षीय वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बनानेके बारेमें गंभीरतासे विचार करना चाहिए। भारतको पता है कि कोरोनाको लेकर चीनकी हरकतोंसे परेशान अमेरिका, यूरोपीय देश, असियान और समान विचारधारावाले लगभग सभी देश आपूर्ति श्रृंखलामें चीनपर निर्भरताको कम करनेके लिए तैयार हैं। चीनको लग रहा है कि यदि भारतकी यह पहल कामयाब रही तो भारत उसका विकल्प बन सकता है। अमेरिका और यूरोपीय देश चीनपर अति निर्भरताका खामियाजा कोरोना संकटके दौरान भुगत चुके हैं। वह भी चीनपर अपनी निर्भरता कम करनेका रास्ता तलाश रहे हैं। ऐसेमें भारत उनके लिए एक उपयुक्त देश बन सकता है। इन सभी घटनाक्रमोंसे चीन तिलमिलाया हुआ है। अपने इस प्रयासमें उसने पाकिस्तानको भी साथमें ले लिया है।

महाशक्ति बननेके चीनके सपनेमें सबसे बड़े रोड़ेके रूपमें सामने खड़ा अमेरिका चीनके खेलको काफी पहले ही समझ चुका है। अमेरिका और चीनके साथ कारोबारी संबंधोंका दायरा बहुत बड़ा है। इस दायरेको ध्यानमें रखकर ही अमेरिका अपने कदम आगे बढ़ायेगा। ब्रिटेनके कार्नवालमें जी-७ सम्मेलनमें भाग लेने गये अमेरिकाके राष्ट्रपति जो बाइडेनने खुलासा किया कि चीनने अमेरिकाको क्वाडको लेकर चीनके एक नेताने राष्ट्रपतिका पद ग्रहण करनेसे पहले क्वाडसे दूर रहनेकी सलाह दी थी। इससे पहले ११ फरवरीको चीनके राष्ट्रपति शी जिनपिंगने बाइडेनसे कहा था कि अमेरिका क्वाडसे दूरी बना लें। सुनामीके बाद आपसमें सहयोगके लिए बना क्वाडका यह गठजोड़ पूरी तरह चीनके खिलाफ एक बड़े गठबंधनके रूपमें उभर चुका है। कोरोना महामारीके बीच इस वर्ष १२ मार्चको हुई इस समूहकी डिजिटल बैठकमें जो बाइडेनने सभी सदस्य देशोंके लिए मुक्त और खुले हिंद-प्रशांतकी जरूरतपर संकल्प व्यक्त किया था कि अमेरिका अपने सहयोगियों और क्षेत्रमें गठबंधनवाले देशोंके साथ खड़ा है। इसी बैठकमें क्वाडके सदस्योंने जॉनसन एंड जॉनसनकी एक अरब खुराक लेकर अगले साल हिंद-प्रशांत क्षेत्रके देशोंमें बांटनेका संकल्प भी लिया था। संकेत है कि प्रधान मंत्री मोदी क्वाडकी अगली बैठकमें भाग लेने अमेरिका जा सकते हैं। इस दौरान वह पहली बार अमेरिकाके राष्ट्रपतिसे मुलाकात करेंगे। माना जा रहा है क्वाडके इस सम्मेलनमें चारों देश कोरोना संकटमें चीनकी संदेहास्पद भूमिकाको लेकर मुख्य रूपसे चर्चा कर सकते हैं।