चंदौली। परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी ने वर्ष 1990 के शारदीय नवरात्र के द्वितीया तिथि को उपस्थित श्रद्धालुओं व भक्तगणों को अपने आर्शीवचन में कहा कि जो कोई भी अपने पास जो कोई भी पथिक है उससे इतना ही संबंध रखे जितना की जरूरत है, अधिक न मालूम जिसका हम कुल और शील न जानते हो उससे ज्यादा सम्पर्क भी नहीं करें, उसके काम से काम तक ही सम्पर्क रखना ठीक है, अधिक हमे उलझना में डाल सकता है, मोह में भी डाल सकता है, बन्धुओं बार-बार हमसे आप मिलेंगे तो हमारे प्रति आपको मोह होगा आप के प्रति हमे भी मोह होगा, हम दोनों मोहाग्नि में जलते रहेंगे बन्धुओं न हम आप का भला कर सकते है न मेरा आप भला कर सकते है, आप जितना नजदीक रहते है, अपने पुत्र-पौत्र बन्धुओ के पास अपने माता-पिता के पास आप में यदि कठोरता न रहे तो उनके मोहाग्नि में आप जलते रहते है। उनके लिये हर कृत्य करते है अपराध से अपराध करते है, यहां तक की अपने भाईयों के साथ भी आप बड़ा ही दुष्कर्म करने के लिए भी तैयार हो जाते है, यह आज ही के युग जुग, में नहीं यह पहले भी त्रेता में भी राम ही का परिवार ऐसा नहीं था कि अपने भाई के प्रति श्रद्धा रखता था, उसी समय में सुग्रीव भी था, बालि भी तो था कितने कठोर युद्ध करता था वह भी तो भाई था। उसी समय में रावण भी तो था, विभीषण भी तो था अपने भाई के प्रति भाई के मन में कितना दुषिता भरा हुआ था, भले हम किसी कथा को रोचक बनाकर आप से कहे कि यह तो युग बहुत अच्छा है यह तो बात बहुत अच्छी है, यह तो समय बहुत अच्छा है यह तो इसयुग में यही हुआ कि ऐसा बात नहीं है, बन्धु इसलिये जो कुछ आप इस तरह की अपने व्यवहार से कुछ दिगर आप को समझ आता है, और आप को अपनी व्यवहार से ही अपनों को भी असन्तुलित देखते है तो यह आप अवश्य सोचे की हमारी जो यह कृत्य है और इस कृत्य का यह परिणाम है यह परिणाम न अपने लिये न अपने राष्ट्र के लिये न अपने समाज के लिये न अपने संस्कृति के लिये न अपने घर परिवार परिजनों के लिये है, और ऐसा ही होता रहेगा इस तरह की पूजा इस तरह के दर्शन अशोभनीय हो जायेगा बन्धुओं और इस अशोभनीय में तमाम लोग घीरे हुए है, क्या मैं उनकी सबको में खेउंगा या एक.एक मिलकर ग्यारह होउंगा या एक.एक मिलकर क्या मैं दो ही रहूंगा तो एक-एक मिलकर तो दो बहुत है, करोड़ो है, अरबो है, मै एक.एक मिलकर ग्यारह होना चाहता हूं, मुझे वह ग्यारह कैसे होगा। जब उन सब से कुछ भिन्न रहूंगा हम अपने गुरूजनों पूर्वजजनों के प्रति और अपने माता-पिता के प्रति अपने आए गये जो मित्रों के प्रति हमारा अलग-अलग धर्म होना चाहिये, सुबह का धर्म क्या, दोपहर का धर्म क्या, शाम का धर्म क्या माता की धर्म क्या, पिता का धर्म क्या किस वक्त किस क्या धर्म होना चाहिये। माता के सामने क्या धर्म होना चाहिये, माता के सामने क्या धर्म होना चाहिये, बहन के सामने क्या धर्म होना चाहिय, बुआ के सामने क्या धर्म होना चाहिये, वही पत्नी वाला धर्म हमस ब जगह सब महिलाओं के साथ अंगीकार करे तो वह दुखद होगा। सभी महिलाओं पर हम माता का ही धर्म का अधिकार करें तो मेरी पत्नी भी मुझसे त्रास मानेगीए मेरी बहन भी मुझसे ईष्र्या मानेगीए मेरी बुआ भी मुझसे ईष्र्या मानेगी। सौजन्य से बाबा कीनाराम स्थल खण्ड-८