योगेश कुमार गोयल
कोरोनापर जीत दर्ज कर चुके सैंकड़ों लोग ब्लैक फंगसके शिकार हो रहे हैं, जिनमेंसे कुछकी आंखोंकी रोशनी चली गयी है तो कुछकी मौत हो गयी। हरियाणामें तो सरकार द्वारा अब इसे अधिसूचित रोग घोषित कर दिया गया है। दरअसल ब्लैक फंगस शरीरमें बहुत तेजीसे फैलता है, जिससे आंखोंकी रोशनी चली जाती है और कई मामलोंमें मौतें भी हो रही हैं। कोरोना संक्रमणके कारण यह रोग अधिक खतरनाक हो गया है, इसीलिए सरकार द्वारा अब चेतावनी देते हुए कहा गया है कि ब्लैक फंगससे बचनेकी जरूरत है क्योंकि इसके कारण कोरोनासे होनेवाली मौतोंका आंकड़ा बढ़ रहा है। नीति आयोगके सदस्य डा. वी.के. पालके मुताबिक यह रोग होनेकी संभावना तब ज्यादा होती है, जब कोरोना मरीजोंको स्टेरॉयड दिये जा रहे हों और मधुमेह रोगीको इससे सर्वाधिक खतरा है, इसलिए स्टेरॉयड जिम्मेदारीसे दिये जाने चाहिए और मधुमेहको नियंत्रित किया जाना जरूरी है क्योंकि इससे मृत्यु दरका जोखिम बढ़ जाता है।
वैसे अभीतकके मामलोंका अध्ययन करनेसे यह बात तो स्पष्ट हो गयी है कि ब्लैक फंगस नामक बीमारीके सबसे ज्यादा मामले ऐसे कोरोना मरीजोंमें ही देखनेको मिल रहे हैं, जिन्हें जरूरतसे ज्यादा स्टेरॉयड दी गयी हों। इस संबंधमें कुछ डाक्टरोंका कहना है कि यदि मरीजका आक्सीजन लेवल ९० के आसपास है और उसे काफी स्टेरॉयड दिया जा रहा है तो ब्लैक फंगस इसका एक साइड इफैक्ट हो सकता है। ऐसा मरीज यदि कोविड संक्रमणसे ठीक भी हो जाय लेकिन ब्लैक फंगसका शिकार हो जाय तो बीमारीको शीघ्र डायग्नोस कर उसका तुरंत इलाज शुरू नहीं करनेपर जान जानेका खतरा रहता है। आईसीएमआरने भी फंगस इंफैक्शनका पता लगानेके लिए जांचकी सलाह देते हुए कहा है कि कोरोना मरीज ब्लैक फंगसके लक्षणोंकी अनदेखी न करें और लक्षण होनेपर चिकित्सक से परामर्श करें, साथ ही लक्षण मिलनेपर स्टेरॉयडकी मात्रा कम करने या बंद करनेका भी सुझाव दिया गया है। स्वास्थ्यमंत्री डा. हर्षवर्धनका कहना है कि यदि लोगोंमें इस बीमारीको लेकर जागरूकता हो और शुरुआतमें ही लक्षणोंकी पहचान कर ली जाय तो बीमारीको जानलेवा होनेसे रोका जा सकता है। इस संक्रमणका पता सीटी स्कैनके जरिये लगाया जा सकता है और फिलहाल एम्फोटेरिसिन नामक ड्रगका इसके इलाजमें इस्तेमाल किया जा रहा है।
ब्लैक फंगस ऐसा फंगल इंफैक्शन है, जो कोरोना वायरसके कारण शरीरमें ट्रिगर होता है, जिसे आईसीएमआरने ऐसी दुर्लभ बीमारी माना है, जो शरीरमें बहुत तेजीसे फैलती है और उन लोगोंमें ज्यादा देखनेको मिल रही है, जो कोरोना संक्रमित होनेसे पहले किसी अन्य बीमारीसे ग्रस्त थे या जिन लोगोंकी इम्युनिटी बेहद कमजोर है। पहलेसे स्वास्थ्य परेशानियां झेल रहे शरीरमें वातावरणमें मौजूद रोगजनक वायरस, बैक्टीरिया या दूसरे पैथोजन्ससे लडऩेकी क्षमता कम हो जाती है, ऐसेमें शरीरमें इस फंगल इंफैक्शनके होनेका खतरा रहता है। कोरोनाके जिन मरीजोंको आईसीयूमें तथा आक्सीजनपर रखा जाता है, उनमें भी ब्लैक फंगसके संक्रमणकी कुछ आशंका रहती है। एम्स निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया कहते हैं कि कोरोना मरीजोंको लिम्फोपेनियाकी ओर ले जाता है और इलाजके दौरान स्टेरॉयडके इस्तेमालसे शरीरमें शुगरकी मात्रा बढ़ जाती है। उनके मुताबिक जांचमें पता चल रहा है कि ब्लैक फंगसवाले सभी मरीजोंको कोरोनाके इलाजके दौरान स्टेरॉयड दी गयी थी, जिनमेंसे ९०-९५ फीसदी ऐसे मरीज हैं, जिन्हें मधुमेह है।
मधुमेह, कोरोना पॉजिटिव तथा स्टेरॉयड लेनेवाले रोगियोंमें फंगल संक्रमणकी संभावना बढ़ जाती है। डा. गुलेरियाके अनुसार म्यूकोर्मिकोसिस बीजाणु मिट्टी, हवा और भोजनमें भी पाये जाते हैं लेकिन वह कम विषाणुवाले होते हैं और आम तौरपर संक्रमणका कारण नहीं बनते। कोरोनासे पहले इस संक्रमणके बहुत कम मामले थे लेकिन कोरोनाके कारण अब यह मामले बड़ी संख्यामें सामने आ रहे हैं। पहले यह उन लोगोंमें ही दिखता था, जिनका शुगर बहुत ज्यादा हो, इम्युनिटी बेहद कम हो या कीमोथैरेपी ले रहे कैंसरके मरीज लेकिन स्टेरॉयडका ज्यादा इस्तेमाल करनेसे ब्लैक फंगसके अब बहुत ज्यादा मामले आ रहे हैं। किसी विशेषज्ञ डाक्टरकी सलाहके बिना स्टेरॉयडका सेवन भी ब्लैक फंगसकी वजह बन सकता है। बहुतसे लोग बुखार, खांसी और जुकाम होते ही कोरोनाकी दवाएं शुरू कर रहे हैं लेकिन डाक्टरोंका मानना है कि बिना कोरोना रिपोर्टके ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। बिना कोरोनाके लक्षणोंके पांच-सात दिनतक स्टेरॉयडका सेवन करनेसे इसके दुष्प्रभाव दिखने लगते हैं और बीमारी बढऩेकी आशंका रहती है।
यदि ब्लैक फंगसके प्रमुख लक्षणोंकी बात करें तो बुखार, तेज सिरदर्द, खांसी, नाक बंद होना, नाकमें म्यूकसके साथ खून, छातीमें दर्द, सांस लेनेमें तकलीफ होना, खांसते समय बलगममें या उल्टीमें खून आना, आंखोंमें दर्द तथा सूजन, धुंधला दिखाई देना या दिखना बंद हो जाना, नाकसे खून आना या काले रंगका स्राव, आंखों या नाकके आसपास दर्द, लाल निशान या चकत्ते, मानसिक स्थितिपर असर पडऩा, गालकी हड्डीमें दर्द, चेहरेमें एक तरफ दर्द, सूजन या सुन्नपन, मसूडोंमें तेज दर्द या दांत हिलना, कुछ भी चबाते समय दर्द होना इत्यादि ब्लैक फंगस संक्रमणके प्रमुख लक्षण हैं।
ब्लैक फंगस संक्रमण मरीजमें सिर्फ एक त्वचासे शुरू होता है लेकिन यह शरीरके अन्य भागोंमें फैल सकता है। चूंकि यह शरीरके विभिन्न हिस्सोंको प्रभावित करता है, इसलिए इसके उपचारके लिए अस्पतालोंमें कई बार अलग-अलग विशेषज्ञोंकी जरूरत भी पड़ सकती है। यही कारण इसका इलाज कोरोनाके इलाजसे भी महंगा है और जानका खतरा भी ज्यादा है। मरीजको इस बीमारीमें एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन दिनमें कई बार लगाया जाता है, जो प्राय: २१ दिनतक लगवाना पड़ता है। इसके गंभीर मरीजके इलाजपर प्रतिदिन करीब २५ हजारतक खर्च आता है जबकि मेडिकल जांच और दवाओं सहित कोरोनाके सामान्य मरीजके इलाजका औसत खर्च करीब दस हजार रुपये है। ब्लैक फंगसका शुरुआती चरणमें ही पता चलनेपर साइनसकी सर्जरीके जरिये इसे ठीक किया जा सकता है, जिसपर करीब तीन लाख रुपयेतक खर्च हो सकता है लेकिन बीमारी बढऩेपर ब्रेन और आंखोंकी सर्जरीकी जरूरत पड़ सकती है, जिसके बाद इलाज काफी महंगा हो जाता है और मरीजकी आंखोंकी रोशनी खत्म होने तथा जान जानेका भी खतरा बढ़ जाता है। कुछ मरीजोंका ऊपरी जबड़ा और कभी-कभार आंख भी निकालनी पड़ जाती है।
ब्लैक फंगस संक्रमणसे बचनेके लिए आक्सीजन थैरेपीके दौरान ह्यूमिडीफायर्समें साफ एवं स्टरलाइज्ड पानीका ही इस्तेमाल करें और घरमें मरीजको आक्सीजन देते हुए उसकी बोतलमें उबालकर ठंडा किया हुआ पानी डालकर ठीकसे साफ करें। चूंकि ब्लैक फंगस संक्रमणका सबसे बड़ा खतरा मधुमेह रोगियोंको है, इसलिए जरूरी है कि कोरोनासे ठीक होनेके बाद भी ऐसे मरीजोंका ब्लड ग्लूकोज लेवल मॉनीटर करते रहें और हाइपरग्लाइसीमिया अर्थात् रक्तमें शर्कराकी मात्राको नियंत्रित करनेकी कोशिश करें। बिना विशेषज्ञकी सलाहके स्टेरॉयड अपनी मर्जीसे न लें। बेहतर है कि ब्लैक फंगसके लक्षण नजर आनेपर अपनी मर्जीसे दवाओंका सेवन शुरू करनेके बजाय जरा भी समय गंवाये बिना तुरंत अपने डॉक्टरसे सम्पर्क करें क्योंकि प्रारम्भिक अवस्थामें इसे एंटी-फंगल दवाओंसे ठीक किया जा सकता है।