सम्पादकीय

टीकाकरणकी गति बढ़ानी होगी


डा. श्रीनाथ सहाय    

विशेषज्ञ तीसरी लहरकी आशंका जता चुके हैं। ऐसेमें कोरोनासे बचावके लिए टीकेको कारगर माना जा रहा है। टीका लगानेके बाद व्यक्तिके शरीरमें वायरससे लडऩेकी क्षमता बढ़ जाती है। दुनियाभरमें कोरोना वैक्सीनका सबसे बड़ा निर्माता होनेके बाद भी भारतमें वैक्सीनेशनकी स्पीड काफी धीमी है। अमेरिकी राष्टï्रपतिके चिकित्सा सलाहकार एवं विश्व विख्यात महामारी विशेषज्ञ डा. एंथनी फाउची और विश्व स्वास्थ्य संघटनके बयान एक साथ सार्वजनिक हुए हैं। डा. फाउचीका कहना है कि भारत दुनियामें सबसे बड़ा टीका-निर्माता देश है। उसे न केवल अपने टीकाकरण अभियानकी गति बढ़ानी चाहिए, बल्कि उन देशोंकी मदद भी करनी चाहिए, जो कोरोना टीके बनानेमें अक्षम हैं। फिलहाल हमारे देशमें कोरोना टीकाकरणकी गति यह है कि जनवरीसे मईतक देशमें अबतक १८ करोड़ ७० लाख नौ हजार ७९२ लोगोंका टीकाकरण किया जा चुका है। वहीं लगभग चार करोड़ लोगोंको ही वैक्सीनकी दूसरी डोज दी गयी है। सही मायनोंमें यही संपूर्ण टीकाकरण है। क्या सरकार इन आंकड़ोंसे संतुष्टï है? ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि भारतके लगभग आधे जिलोंमें स्थितियां बेहद बदतर हैं। एक रिपोर्ट सामने आयी है कि ३०६ जिले ऐसे हैं, जहां कोरोना संक्रमण दर २० फीसदीसे ज्यादा है। उनमेंसे १४२ जिलोंमें टीकाकरण २० से ५० फीसदीतक घटा है। करीब ६२ जिले ऐसे हैं, जहां टीकाकरण २० फीसदीसे भी कम हुआ है।

भारत सरकारने सर्वोच्च न्यायालयमें दो सौ पन्नोंसे अधिकका जो हलफनामा दिया है, उसमें टीकाकरण नीतिको ‘उचितÓ करार दिया है और दावा किया है कि संविधानके अनुच्छेद १४ और २१ के तहत सभी नागरिकोंके मौलिक अधिकारोंकी रक्षा की जा रही है। यदि जन-स्वास्थ्यका अधिकार सुरक्षित होता तो आक्सीजनके अभावमें ही ‘नरसंहारÓ सामने न आते। यह शब्द इलाहाबाद उच्च न्यायालयके न्यायाधीशने इस्तेमाल किया था, लिहाजा उससे बदतर और बदहाल स्थितियां परिभाषित होती हैं। कोरोना संक्रमणने अब गांवोंमें भी पैर पसार रहा है। कोरोनाकी दूसरी लहरमें अब गांवके लोगोंकी भी बड़े पैमानेपर मौत हो रही है लेकिन इसके बावजूद ग्रामीण इलाकोंमें रहनेवाले लोग बहुत कम वैक्सीन लगवा रहे हैं। जानकरोंके मुताबिक वैक्सीनको लेकर जागरूकताका अभाव और कोविनपर रजिस्ट्रेशनकी तकनीकी जानकारी न होनेके चलते भी ग्रामीण इलाकोंमें टीकाकरणकी प्रक्रिया सुस्त है। ग्रामीणकी मांग है कि जैसे वोटके लिए गांव-गांव बूथ लगते हैं, वैक्सीन भी वैसे ही लगायी जाय। दूसरी बात, एक तो गांवमें स्मार्टफोन कम होते हैं और होते भी है तो लोगोंको इसे चलाना नहीं आता है। कोरोना संक्रमणसे बचावका सबसे कारगर तरीका टीकाकरण ही है लेकिन सरकारके सामने पहली दिक्कत करोड़ों वैक्सीनको उपलब्ध कराना और दूसरी चुनौती है ग्रामीण इलाकोंमें टीकाकरणकी प्रक्रियाको सरल और बड़े पैमानेपर चलाना। एक वक्त था जब भारतने एक दिनमें ४३ लाख टीका लगाकर रिकार्ड बनाया था जो अब घटकर औसतन दस लाख रोज टीका लगानेपर आ गये हैं। एक तरफ टीकेकी कमी, दूसरी तरफ गांवमें टीकेको लेकर हिचकिचाहट और तकनीकी जानकारीकी कमीके चलते ग्रामीण भारतमें टीकाकरण एक मुश्किल चुनौती है।

कोरोना वायरस महामारीकी मार झेल रहे दुनियाभरके देश तेजीसे टीकाकरण प्रोग्रामको आगे बढ़ा रहे हैं। वैक्सीनकी उपलब्धताके आधारपर विकसित देशोंमें टीकाकरणकी स्पीड काफी तेज है तो विकासशील देशोंमें काफी धीमी। वैक्सीनके सबसे बड़ा निर्माता देश भारतमें भी टीकाकरणकी रफ्तार काफी धीमी है। दुनियाकी दूसरी सबसे बड़ी आबादीवाला देश होनेके बावजूद भारतमें टीकाकरणकी रफ्तार उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए। वर्तमानकी स्पीडसे यदि भारतमें वैक्सीनेशन किया जाता रहा तो इसमें एक सालसे भी ज्यादाका समय लग सकता है। बेशक कोरोनाके खिलाफ हमारा टीकाकरण कार्यक्रम दुनियामें सबसे बड़ा और व्यापक है। तो सरकारको उसकी ठोस नीति तय करनी चाहिए थी। भारत सरकारको अहसास होना चाहिए था कि सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बॉयोटेक दोनों कम्पनियां ही भारतमें टीकाकरणके लिए पर्याप्त खुराकोंका उत्पादन नहीं कर सकतीं। दावे कुछ भी किये जायं, लेकिन यह शुरूसे ही स्पष्टï था कि टीकाकरण अभियान अवरुद्ध हो सकता है। कोरोनाकी मौजूदा लहरका बहाना भी बनाना छोड़ दें, क्योंकि हर स्थितिमें टीकाकरण तो किया ही जाना था। यह आकलन भी दिये गये थे कि कमोबेश करीब ९०-१०० करोड़ आबादीको टीका देना लाजिमी है, ताकि ‘हर्ड इम्युनिटी’ तक पहुंचा जा सके, लेकिन मोदी सरकार और भाजपाके प्रवक्ता सिर्फ यही गिनवाते रहते हैं कि १८ करोड़ टीके मुफ्त दे चुके हैं। राज्योंके पास ८४ लाख टीके जमा हैं और ५३ लाख खुराकें तीन दिनमें पहुंच जायंगी। सवाल है कि टीकाकरण अवरुद्ध क्यों है? लम्बी-लम्बी कतारें टीकाकरण केंद्रोंके बाहर क्यों लगी हैं? बूढ़े और जवान नागरिक बिना टीका लगवाये ही लौट क्यों रहे हैं? बेशक यह सियासत भी हो सकती है। सियासत आम आदमीकी जिंदगीसे भी खेल सकती है, लेकिन डा. फाउची और दुनियाके कई देश भारतके टीकाकरण और कोरोनाके नये विस्तारसे चिंतित क्यों हैं? शायद वह आंक रहे हैं कि कल भारत दुनियाके लिए संक्रमणका नया खतरा पैदा कर सकता है! इससे भी बड़ी चिंता यह है कि कोरोनाकी तीसरी लहरकी संभावनाओंके मद्देनजर बच्चोंके लिए टीकेका परीक्षणतक हमारे देशमें शुरू नहीं किया गया है। ६-१७ सालके बच्चोंकी आबादी भी करीब ४५ करोड़ है। चूंकि तीसरी लहरको बच्चोंके लिए गंभीर खतरा आंका गया है, लिहाजा बच्चोंके टीकाकरणका सवाल भी स्वाभाविक है। क्या सरकार विशेषज्ञोंकी सलाहके आधारपर विदेशी टीकोंको भी भारतमें मान्यता देनेका काम करेगी? सरकारको टीकाकरणकी गतिको बढ़ाना होगा। वहीं समाचार माध्यमों, जनप्रतिनिधियों, समाज सेवकों, कलाकारों, प्रबुद्ध वर्ग और समाजमें सक्रिय लोगोंके माध्यमसे टीकाकरणको लेकर फैली भ्रांतियोंको भी दूर करना होगा।