सम्पादकीय

मूल्यांकनमें क्रांतिकारी बदलावकी जरूरत


डा. जितेन्द्र सिंह गोयल

कोरोना महामारीकी दूसरी लहरके कारण देश और राज्योंमें दसवीं कक्षा और कई अन्य परीक्षाओंको रद होते ही शिक्षक, विद्यार्थी और अभिभावक अब यह महसूस करने लगे हैं कि वास्तवमें अब यह परीक्षाएं नहीं हो भी पायंगी। लेकिन बिना परीक्षा पास किये उत्तीर्ण विद्यार्थी भविष्यमें अपरिहार्य प्रतियोगी परीक्षाएं और भविष्यमें आनेवाली चुनौतियोंका सामना कर पायंगे। कई शिक्षकों और छात्रोंको ऐसे प्रश्नोंका सामना करना पड़ रहा है। पिछले कई महीनोंसे सरकार यह दावा कर रही है कि यह परीक्षा होगी। शिक्षाके अधिकारके तहत कोई भी विद्यार्थी पहलीसे आठवींतक फेल नहीं हो सकता। पिछले साल कक्षा नौमें विद्यार्थियोंने परीक्षा पास नहीं की थी। अब वह छात्र दसवीं कक्षामें हैं और वह एक बार फिर बिना परीक्षा पास करेंगे। इसका मतलब है कि इन विद्यार्थियोंका सही अर्थोंमें कठोरतासे मूल्यांकन नहीं किया गया है। पूरे वर्षके दौरान अधिकांश स्कूलोंमें बहुविकल्पीय प्रश्नोंके आधारपर विद्यार्थियोंका मूल्यांकन किया गया। ग्रामीण क्षेत्रोंमें कई विद्यार्थी मोबाइल फोन, इंटरनेट आदिकी कमीके कारण शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। कोरोनामें पहली लहरके पश्चात् उत्तर प्रदेशमें स्कूलोंकी शुरुआत नवंबर २०२० में हुई, जहां दसवीं कक्षाकी तैयारी नौवीं कक्षाके अंतसे शुरू हुई। ऐसी स्थितिमें यदि १०वीं-१२वींकी परीक्षाओंके दौरान संक्रमितोंकी संख्या बढ़ गयी या दूसरी लहरने परीक्षाओंको आफलाइन कराना असंभव बना दिया तो इसके बारेमें सशक्त कार्ययोजना बनाना अनिवार्य था। सीबीएसई, आईसीएसई बोर्डके स्कूलोंमें विद्यार्थियोंका मूल्यांकन वर्षके प्रत्येक चरणमें किया जाता है, इसलिए यदि अंतिम परीक्षा आयोजित भी नहीं की जाती है तो भी इन बोर्डोंके लिए वर्षभर विभिन्न मानदंडों और प्रदर्शनके आधारपर उनका मूल्यांकन करना संभव है।

आज भी माध्यमिक शिक्षा परिषद् प्रयागराज द्वारा मान्यता प्राप्त स्कूलोंमें सब कुछ वार्षिक परीक्षापर निर्भर करता है। माध्यमिक शिक्षा परिषद् बोर्डके स्कूलोंमें मूल्यांकनका एकमात्र तरीका परीक्षा है। यहांतक कि इन स्कूलोंकी पाठ्य-पुस्तकोंमें पाठके तहत विभिन्न गतिविधियोंका सुझाव दिया जाता है। उसी परीक्षाको रद करनेके साथ स्वाभाविक रूपसे यह सवाल उठना लाजिमी है दसवींका प्रमाण-पत्र विद्यार्थियोंको अपने मनचाहे कालेजमें प्रवेश लेनेके लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रवेशके लिए पात्रताका प्रमाण एक मार्कशीट है। अब केवल मार्कशीट ही नहीं, प्राप्त किये गये अंकोंका प्रतिशत भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वर्तमानमें प्रवेश परीक्षा देकर इस संकटका हल खोजनेका संघर्ष चल रहा है। लेकिन एक वर्ग ऐसा है जो कहता है, हमें कालेजोंमें क्लासेज ही नहीं चली है, फिर हम परीक्षा कैसे पास करेंगे। यह सवाल भी है कि विभिन्न बोर्डोंके विद्यार्थियोंके लिए एक सामान्य परीक्षा लेनेकी अनिवार्यता कैसे पूरी होगी। कई सवाल उठाये गये हैं कि क्या कोरोना द्वारा बनायी गयी अपरिहार्य स्थितिका शिक्षा क्षेत्रपर कोई दूरगामी प्रभाव पड़ेगा, क्या कक्षा दसवीं-बारहवींकी परीक्षाओंका महत्व कम हो जायगा। यह मुद्दा सभी कक्षाओंके विद्यार्थियोंके सामने होगा। महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि जिन विद्यार्थियोंको उचित शिक्षा नहीं मिली है, जटिल अवधारणाओंको स्पष्ट नहीं किया गया है, वह अधिक जटिल अवधारणाओंको समझ पायंगे।

पिछले एक सालमें विद्यार्थियों और शिक्षकोंने आनलाइन सीखनेके अवसरके साथ टेक्नोसेवी भी बन गये हैं लेकिन भविष्यमें आनलाइन सीखने और आमने-सामने सीखनेके बीचकी खाईंको पाटनेकी जरूरत है। विद्यार्थियोंको स्कूलमें शिक्षकोंकी उपस्थितिमें कम्प्यूटर, इंटरनेटके माध्यमसे जानकारी प्राप्त करनेका अवसर दिया जाना चाहिए। लगातार समग्र मूल्यांकन आठवींतकके छात्रोंके लिए उपयुक्त है। हालांकि नौवींसे परीक्षाएं आवश्यक हैं। आनलाइन शिक्षाके लिए मूलरूपसे कई आपत्तियां पिछले वर्षमें शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रोंके स्तरपर बतायी गयी थीं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रोंमें रहनेवाले छात्रोंका एक बड़ा वर्ग सुविधाओंकी अनुपलब्धताके कारण इस अवधिमें शिक्षासे वंचित रह गया। हमें हर विद्यार्थीके लिए शिक्षाके प्रवाहको लानेका प्रयास करना चाहिए था, लेकिन हम इस बातपर विचार किये बिना आनलाइन शिक्षाके विकल्पको स्वीकार करनेके लिए स्वतंत्र थे कि विद्यार्थियोंके पास स्मार्टफोन या कंप्यूटर उपलब्ध है या नहीं। केरलमें इस संबंधमें किये गये प्रयास सराहनीय हैं। वहां, ग्राम पंचायत कार्यालयमें एक टेलीविजन लगाया गया और सरकारने सभी छात्रोंके लिए शैक्षिक कार्यक्रम तैयार किये और उन्हें प्रसारित करना शुरू किया। हमें भी उस तरहका प्रयास करना चाहिए था। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकारने ई-ज्ञान गंगा और उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा डिजिटल लाइब्रेरीको स्थापित करके सराहनीय प्रयास किये हैं। केंद्र सरकार द्वारा भी राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी और स्वयं प्रभा जैसे लाभकारी पोर्टल स्थापित किये गये हैं, जो विद्यार्थीके लिए बहुत ही लाभकारी हैं जिन लोगोंकी राय है कि परीक्षा मूल्यांकनका एक उचित तरीका नहीं है, उन्हें लगता है कि मैट्रिक परीक्षा रद करना एक अच्छी बात है। अब हमारे मूल्यांकनके तरीकेको बदलनेका समय है। प्राकृतिक आपदाओंको दोष देनेसे समस्या हल नहीं होगी। समस्याओंको तत्काल समाधान करनेकी आवश्यकता है। लेकिन पिछले साल ऐसा कुछ नहीं हुआ। हमारी शिक्षा प्रणालीमें व्याप्त कमियां इस अवधिके दौरान सामने आयीं। आनलाइन लर्निंग ऐसी ही एक भ्रमित करनेवाली विधि है।

मात्र ह्वïाट्सएपपर कक्षाकार्य और गृहकार्य देना आनलाइन शिक्षा नहीं है, तकनीकी संसाधनोंकी कमीके कारण, यह शिक्षा कई बच्चोंतक नहीं पहुंची है। सवाल यह है कि जो बच्चे आनलाइन शिक्षासे लाभान्वित हो रहे हैं क्या उनका वास्तवमें समग्र विकास हो रहा है। इस विधिसे शिक्षकोंको भी काफी तनाव हुआ। जो शिक्षक तकनीक-प्रेमी भी नहीं हैं, उन्हें भी इस तकनीकमें महारत हासिल करनी पड़ी। इसके अलावा यह शिक्षक, जो छात्रोंके सामने खड़े होकर पढ़ाते थे, लेकिन अब आनलाइन शिक्षामें यह नहीं जान पाते थे कि विद्यार्थी सुन रहे थे या नहीं। वर्तमानमें शिक्षा प्रणाली सीखनेकी तुलनामें अधिकसे अधिक अंक प्राप्त करनेपर केंद्रित है। जिसे हम शिक्षा मानते हैं वह एक बच्चेकी कुल शिक्षाका केवल दस प्रतिशत है। इसके अलावा छात्रोंके समग्र विकासको खेल, कला, पाठ्यसहगामी क्रियाओंके माध्यमसे बढ़ाया जाता है। हालांकि भविष्यमें यह सरकारकी जिम्मेदारी है कि वह नौवीं-दसवीं और उच्च शिक्षाके लिए मूल्यांकनका एक नया तरीका खोजे, ताकि इसकी रूपरेखा निर्धारित की जा सके। हमें इस बारेमें बहुत सोचना होगा कि यह तरीका कैसा होना चाहिए। केवल प्रमोट कर देनेसे बात नहीं बननेवाली है, यह नयी शिक्षा नीतिके प्रभावी कार्यान्वयन और मूल्यांकनके रूपमें एक क्रांतिकारी परिवर्तन करनेका एक शानदार अवसर है। कोरोनाके बारेमें बड़ी अनिश्चितता है और इस अनिश्चितताके माहौलमें और ऐसी तात्कालिकताके साथ, शिक्षा बोर्ड और विश्वविद्यालयोंको इन परिवर्तनोंको लाने और प्रभावी विकल्प खोजनेकी चुनौतीका सामना करना पड़ेगा। यदि इस वर्ष भी विद्यार्थियोंकी परीक्षा रद हो गयी तब तो यह अब यह शिक्षा विभागके लिए भी कठिन परीक्षा होगी।