ओशो
तिलक हमारी तीसरी आंखका बिंदु है, वह हमारे संकल्पका भी बिंदु है। उसको योगमें आज्ञाचक्र कहते हैं। हमारे जीवनमें जो कुछ भी अनुशासन है वह उसी आज्ञाचक्रसे पैदा होता है। दोनों आंखोंके बीचमें जो तीसरा नेत्र है वही जगह आज्ञाचक्रकी है। इस आज्ञाके संबंधमें थोड़ी बात समझ लेनी जरूरी है। जिन लोगोंके भी जीवनमें यह चक्र प्रारंभ नहीं होगा, वह हजार तरहकी गुलामियोंमें बंधे रहेंगे, इस चक्रके बिना कोई स्वतंत्रता नहीं है। यह बहुत हैरानीकी बात मालूम पड़ेगी। क्योंकि जिस व्यक्तिका आज्ञाचक्र सक्रिय नहीं है, वह किसी न किसी तरहकी गुलामीमें रहेगा। एक गुलामीसे छूटेगा, दूसरीमें पड़ेगा, दूसरीसे छूटेगा तीसरीमें पड़ेगा, वह गुलाम रहेगा ही। उसके पास मालिक होनेका तो अभी चक्र ही नहीं है, जहांसे मालकियतकी किरणें पैदा होती हैं। उसके पास संकल्प जैसी कोई चीज ही नहीं है। वह अपनेको आज्ञा दे सके ऐसा उसका सामथ्र्य नहीं है, बल्कि उसका शरीर और उसकी इंद्रियां ही उसको आज्ञा दिये चली जाती हैं। पेट कहता है भूख लगी है तो उसको भूख लगती है। शरीर कहता है बीमार हूं तो वह बीमार हो जाता है। शरीर कहता है, बूढ़ा हो गया तो बूढ़ा हो गया। शरीर आज्ञा देता है, आदमी आज्ञा मानकर चलता है। लेकिन यह जो आज्ञाचक्र है, इसके जागते ही शरीर आज्ञा देना बंद कर देता है और आज्ञा लेना शुरू कर देता है। पूराका पूरा आयोजन बदल जाता है और उल्टा हो जाता है। वैसा मनुष्य यदि बहते हुए खूनको कह दे, रुक जाओ तो बहता हुआ खून रुक जायगा। वैसा मनुष्य यदि कहे हृदयकी धड़कनको कि ठहर जाय तो हृदयकी धड़कन ठहर जायगी। वैसा मनुष्य कहे अपनी नब्जसे कि मत चल तो नब्ज चल न सकेगी। परन्तु इस चक्रके बिना शुरू हुए मालिक नहीं होता। इस चक्रका स्मरण जितना ज्यादा रहे, उतना ही ज्यादा आपके भीतर स्वयंकी मालिकी पैदा होनी शुरू होती है। आप गुलामकी जगह मालिक बनना शुरू होते हैं। तिलक भी एक प्रयोग है। स्मरणपूर्वक यदि चौबीस घंटे आज्ञा चक्रपर बार-बार ध्यानको ले जाता है तो बड़े परिणाम आते हैं। यदि तिलक लगा हुआ है तो बार-बार ध्यान जायगा आज्ञा चक्रपर। तिलकके लगते ही वह स्थान पृथक हो जाता है। यदि तिलक ठीक जगह लगा है तो आप हैरान होंगे, आपको स्वयं उसकी याद करनी ही पड़ेगी। संभवत: शरीरमें वह सर्वाधिक संवेदनशील जगह है। उसकी संवेदनशीलताका स्पर्श करना और वह भी खास चीजोंसे स्पर्श करनेकी विधि है जैसे चंदनका तिलक लगाना। सैकड़ों और हजारों प्रयोगोंके बाद तय किया था कि चंदनका क्यों प्रयोग करना है। एक तरहकी रेजोनेंस है चंदनमें और उस स्थानकी संवेदनशीलतामें। चंदनका तिलक उस बिंदुकी संवेदनशीलताको और गहन करता है। हर कोई तिलक नहीं करेगा।