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पराली जलाई तो घटेगी कमाई, किसानों के साथ सभी का होगा नुकसान


नई दिल्ली। दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति गंभीर है। अक्तूबर माह में दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर रोजाना अति गंभीर स्थिति को भी पार कर जाता है। प्रदूषण बढ़ने की सबसे बड़ी वजहों में से एक बड़ा कारण पराली का जलाना माना जाता है। पराली जलाने से जहां एक तरफ प्रदूषण की समस्या बढ़ती है तो वहीं इस कारण से जमीन भी बंजर होने लगती है। जमीन के बंजर होने का असर सीधे तौर पर आपकी कमाई पर पड़ता है।

पराली जलाने से जमीन हो रही बंजर

कार्बन का नाम सुनते ही लगता है कोई खराब चीज है। आंखों के सामने काला धुआं दिखने लगता है। लेकिन ये कार्बन न हो तो आपको पेट भरने के लिए अनाज मिलना मुश्किल हो जाएगा। किसानों के हर साल पराली जलाने से जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन में कमी आ रही है। इस ऑर्गेनिक कार्बन की कमी से जमीन बंजर हो सकती है। आईसीएआर के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉक्टर ए.के.सिंह के मुताबिक किसान पराली को जला कर अपने खेतों को बंजर बना रहे हैं। मिट्टी के लिए ऑर्गेनिक कार्बन बेहद जरूरी है। अगर मिट्टी में इसकी कमी हो जाए तो किसानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल फर्टिलाइजर भी काम करना बंद कर देंगे। इसका फसलों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। अच्छी फसल के लिए मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन होना बेहद जरूरी है। मिट्टी में सामान्य तौर पर अगर आर्गेनिक कार्बन 5 फीसदी से ज्यादा है तो अच्छा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में देश के कई हिस्सों में मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 0.5 फीसदी पर पहुंच गई है जो बेहद खतरनाक स्थिति है।

आईसीएआर के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉक्टर ए.के.सिंह कहते हैं कि अगर किसान पराली न जलाए तो दूरगामी परिस्थिति में उनकी आय बढ़ सकती है। संभव है कि किसानों को जब तक ये बात समझ आए बहुत देर हो चुकी हो। लेकिन अगर वो इस बात को समझ जाएं तो उनकी आय तो बढ़ेगी ही उनके खेतों में हरियाली भी बढ़ेगी। देश के कई इलाकों में मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की कमी दर्ज की जा रही है जिसको लेकर विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं।

पराली का ऐसे कर सकते हैं इस्तेमाल

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने पूसा डीकंपोजर विकसित किया है। इसके इस्तेमाल से किसानों को खेतों में पराली जलानी नहीं पड़ती, पर्यावरण को बिल्कुल नुकसान नहीं पहुंचता और मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी बढ़ोतरी होती है।