डा. उत्तम कुमार सिन्हा
पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छ ऊर्जाको बढ़ावा देनेका प्रयास स्पष्ट तौरपर दिख रहा है। वर्ष २०१५ के पेरिस जलवायु समझौतेके आधारपर भारत इसके लिए प्रतिबद्ध है। हमने अतिरिक्त प्रयासके रूपमें संचित कॉर्बन सिंकके लिए भी लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है। यानी २.५२३ बिलियन टन कॉर्बन डाइऑक्साइडके आधारपर २०३० तक अतिरिक्त वन्य क्षेत्रमें वृद्धि की जायेगी। इसके मुताबिक २५ से ३० मिलियन हेक्टेयर वनावरण होना चाहिए। पेरिस समझौतेके समय ही २०१५ में ग्रीन इंडिया मिशन लांच किया गया था, यह एक प्रकारका नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज है। ग्रीन मिशनका उद्देश्य सीधे तौरपर पेरिस जलवायु समझौतेसे जुड़ा हुआ है। कॉर्बन सिंक और वन आवरण क्षेत्रमें वृद्धिके लिए हमने जो प्रतिबद्धता ली है, वह ग्रीन इंडिया मिशनके तहत आ जाता है। सवाल है कि हम निर्धारित लक्ष्यको अगले दस वर्षोंमें हासिल कर पायेंगे। हालांकि स्पष्ट तौरपर कुछ कहना बहुत जल्दी होगा। अभी हमारे पास दस वर्षका समय है और काफी उम्मीदें हैं। यदि हम अच्छी योजना बनायें और उसे लागू करें तो यह संभव है। सरकारकी प्रतिबद्धतासे इसका संकेत मिल रहा है। प्रधान मंत्री मोदी जब वैश्विक मंचोंपर प्रतिबद्धता जाहिर करते हैं तो एक विश्वास होना चाहिए कि इस सरकारमें यह प्राथमिकतामें है।
हालांकि सरकार यह भी कहती है कि आर्थिक विकास जरूरी है, इसे कैसे संतुलित किया जाये, यह बड़ी चुनौती है। नवीकरणीय ऊर्जाके लक्ष्यको पूरा करनेकी दिशामें हम आगे बढ़ रहे हैं। प्रधान मंत्रीने भी कहा था कि २०२२ तक हम १७५ गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यको प्राप्त कर लेंगे और २०३० तक ४५० गीगावाटका लक्ष्य होगा। नवीकरणीय ऊर्जा हमारी राष्ट्रीय प्रतिबद्धताके लक्ष्यको हासिल करनेमें एक अहम घटक होगी। सौर ऊर्जाका तेजीसे विस्तार हो रहा है। लागतमें भी कमी आ रही है। ऐसे तमाम संकेतक बता रहे हैं कि हम अपने लक्ष्यकी दिशामें बढ़ रहे हैं। स्वच्छ ऊर्जा हमारे एनडीसी (नेशनली डिटर्मिंड कंट्रीब्यूशन) का अहम घटक है। लगभग ४० प्रतिशत संचयी विद्युत शक्ति गैर-जीवाश्म ईंधनोंसे होगी, यानी कोयला या पेट्रोलियमपर निर्भरता कम होगी। यह बड़ा बदलाव होगा। लेकिन इसमें हमें अंतरराष्ट्रीय सहयोगकी भी जरूरत है। इसके लिए विकसित देशोंसे तकनीकी हस्तांतरण और कम लागतमें अंतरराष्ट्रीय वित्त उपलब्धता आवश्यक है। वर्ष २०१५ में बने ग्रीन क्लाइमेट फंडमें विकसित देश अंशदान करते हैं। उससे अंतरराष्ट्रीय स्तरपर वित्त पोषण किया जाता है। भारतका कहना है कि हमारे पास कोयला एक अहम प्राकृतिक संसाधन है और भविष्यमें इसका इस्तेमाल करेंगे। लेकिन यह प्रदूषणकारी है। इससे विरोधाभास उत्पन्न होता है। हम कोयलेका इस्तेमाल करेंगे, लेकिन क्लीन कोल टेक्नोलॉजीके माध्यमसे, जो अंतरराष्ट्रीय सहयोगके आधारपर ही आयेगी। निर्धारित लक्ष्यतक पहुंचनेमें कई कठिनाईयां और चुनौतियां हैं। कोविडके कारण अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। हमें अर्थव्यवस्थाको गति देनी है और इसके लिए ज्यादासे ज्यादा ऊर्जाका इस्तेमाल करेंगे। इसके लिए हमें अपनी योजनापर नये सिरेसे काम करना होगा। वन आवरण बढ़ानेमें विज्ञान और तकनीकीकी महत्वपूर्ण भूमिका है। रिमोट सेंसिंग तकनीकसे पता लगा सकते हैं कि पूरे देशमें कितनी अनुपयोगी जमीन है। जहां-जहां ऐसी जमीनें हैं, वहां हमें वानिकी करना होगा।
यदि हम इस भूभागपर वानिकी करें तो हम अपने उद्देश्यको पूरा कर सकेंगे। दूसरा, हमें पारदर्शी व्यवस्था बनानी होगी। अपनी प्रगतिका मूल्यांकन करना होगा। यदि हमें मालूम होगा कि कहीं कोई कमी आ रही है तो हम प्रयासोंको और तेज कर सकेंगे। तीसरा, फंडिंग एक बड़ा मसला है। एनडीसीमें जितनी भी कवायद है, उसके लिए बजटकी आवश्यकता है। निर्धारित उद्देश्योंको पूरा करनेके लिए हमारा बजट पर्याप्त नहीं है। उम्मीद है कि जब अर्थव्यवस्था सुधरेगी तो ग्रीन इंडिया मिशनका बजट आवंटन बढ़ेगा। विभागीय भ्रष्टाचार भी बड़ी समस्या है। पारदर्शिताके मुद्देपर गंभीर होना होगा। जब कोई प्रतिबद्धता होती है, खासकर जलवायु परिवर्तन, वन कार्ययोजना, नदी, बाढ़ राहत आदिमें तो प्रभावी प्रशासनिक व्यवस्थाका होना जरूरी है। बजट बढ़ाने, भ्रष्टाचारको घटाने और क्षमता वृद्धिपर ध्यान देना होगा। तीसरा, केंद्र और राज्य संबंधोंको मजबूत करना होगा। केंद्रकी सोच वैश्विक है, लेकिन कई बार राज्यकी चिंताएं केंद्रके साथ संतुलन नहीं बैठा पाती हैं। जलवायु परिवर्तन कार्ययोजनाके मामलेमें तालमेल नहीं बैठता है। केंद्रकी सोचके इतर राज्योंकी अलग व्यवस्था होती है। इसमें केवल अधिकारी ही नहीं, बल्कि किसानों, ग्रामीणों और सामान्य नागरिकोंकी सोचमें भी बदलाव लाना होगा। उन्हें भी व्यापक स्तरपर इस मुहिमका हिस्सा बनाना होगा। चौथा, हमें कृषिवानिकीपर फोकस करना होगा। वानिकीका उद्देश्य केवल पौधारोपणतक ही सीमित नहीं होना चाहिए। इसे कृषिवानिकीके माध्यमसे लाभकारी भी बनाया जा सकता है। इसके माध्यमसे आप अनुपयोगी जमीनको इस्तेमालमें ला सकते हैं। कुछ वर्ष पूर्व वानिकीसे जुड़ा एक कानून बना था कि यदि व्यावसायिक उद्देश्यके लिए वनोंको काटा जाता है तो उसे संतुलित करनेके लिए कंपनियोंको वानिकी हेतु अनुदान देना होगा। यह एक महत्वपूर्ण प्रतिपूरक प्रावधान है। समय आ गया है कि इस फंडका प्रभावी तरीकेसे वानिकीके लिए इस्तेमाल किया जाये।