के.के. वर्मा
भारतमें पेट्रोलियम उत्पादोंकी कीमतोंमें निरन्तर इजाफा देश कई समस्याओंका जनक कहा जा सकता है। महंगी चरमपर है। हर चीज महंगी हो गयी है। रोटी, कपड़ा और मकान मूलभूत जरूरत है, वह भी आसानीसे मुहैया नहीं हो पा रही है। नियंत्रण करनेकी दिशामें कहनेको कुछ कहनेकी आजादी है परन्तु होता कुछ दूर-दूरतक दिखाई नहीं दे रहा है। पेट्रोल और डीजलके दाम बढऩेको लेकर हो-हल्ला पहले खूब मचता रहा है, किंतु अब जैसे फर्क ही नहीं पड़ रहा है। जो चिल्लानेके आदी थे, अब खुद दाम बढऩेके लिए जिम्मेदार हैं। आज हुक्मरान हैं, इसलिए अब आवाज शांत हैं। पासा पलट गया है। लेकिन जनताके मनमें गुबार है और सही मौकेपर बाहर आ सकता है। देशके नौ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, ओडिशा और लद्दाखमें पेट्रोलने सौ रुपये प्रति लीटरका आंकड़ा पार कर लिया है। मेट्रो शहरोंमें मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरुमें पेट्रोल पहले ही सौ रुपये प्रति लीटरसे ऊपर है और अब चेन्नईमें दरें इस दिशामें बढ़ रही हैं। ३० दिनमें ७.७१ रुपये प्रति लीटर पेट्रोलके दाम बढ़े हैं। एक मईसे अबतक ३० बार पेट्रोलके दामोमें वृद्धि हुई है। आज पेट्रोल-डीजलके दाममें जबरदस्त इजाफा हुआ है। दिल्लीमें पेट्रोल और डीजल दोनों ३५.३५ पैसे प्रति लीटर महंगा हो गया है। इस वृद्धिके बाद राजधानीमें पेट्रोलका दाम ९८.११ रुपये प्रति लीटरपर चला गया वहीं डीजल भी ८८.६५ रुपये प्रति लीटर है। पेट्रोलकी कीमतें पहली बार सौ रुपयेके पार गयीं। पिछले दिनोंसे पेट्रोल १०४.२२ रुपये प्रति लीटर और डीजल ९६.१६ रुपये प्रति लीटर है। चेन्नईमें पेट्रोल ९९.१८ रुपये प्रति लीटर और डीजल ९३.२२ रुपये प्रति लीटरके भाव है। कोलकातामें पेट्रोल ९७.९९ रुपये और डीजल ९१.४९ रुपये प्रति लीटरपर है। लखनऊमें पेट्रोल ९५.२९ रुपये और डीजल ८९.०६ रुपये प्रति लीटर, चंडीगढ़में पेट्रोल ९४.३५ रुपये और डीजल ८८.२९ रुपये प्रति लीटर, रांचीमें पेट्रोल ९३.८२ रुपये और डीजल ९३.५७ रुपये प्रति लीटर, भोपालमें पेट्रोल १०६.३५ रुपये और डीजल ९७.३७ रुपये प्रति लीटर, पटनामें पेट्रोल १००.१३ रुपये और डीजल ९४.०० रुपये प्रति लीटर, बेंगलुरुमें पेट्रोल १०१.३९ रुपये और डीजल ९३.९८ रुपये प्रति लीटर, नोएडामें पेट्रोल ९५.४० रुपये और डीजल ८९.१४ रुपये प्रति लीटर है।
देशमें तेल कीमतोंका निर्धारण अंतरराष्ट्रीय बाजारमें कच्चे तेलके दामोंपर निर्भर है। यह बात कह सकती हैं परन्तु केन्द्रकी मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारीसे नहीं बच सकती है। देशकी जनता अब जागरूक है और यह जानना चाहती है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजारमें एक बैरल कच्चा तेल ११० डालरमें आता था, तब भी डा. मनमोहन सिंहके नेतृत्ववाली यूपीएकी सरकार अधिकतम ७० रुपये प्रति लीटर पेट्रोलकी बिक्री करवा रही थी। अब एक बैरल कच्चा तेल ७० डालरमें मिल रहा है, तब देशमें पेट्रोलके दाम सौ रुपये प्रति लीटर क्यों हैं। इस सीधी-सी गणितका जवाब मोदी सरकारको देशकी जनताको देना चाहिए। यह भी सही है कि राज्य सरकारें २० से लेकर ४० प्रतिशततक टैक्स वसूल रही हैं। इसकी वजहसे भी पेट्रोल और डीजलके दाम बढ़ रहे हैं। यह कोई नयी बात नहीं है। राज्य सरकार ऐसी टैक्स वसूली पहले भी करती थीं। कहनेको सरकारके समर्थक यह तर्क दे सकते हैं कि कोरोनाका टीका फ्री लगानेके लिए कमसे कम ५० हजार करोड़ रुपये चाहिए। किसानोंके खातेमें प्रतिवर्ष छह हजार रुपयेकी नकद राशि डाली जा रही है। मनरेगासे लेकर घर-घर शौचालय बनाने जैसी कई कल्याणकारी योजनाओंका आर्थिक बोझ सरकारपर है। सच तो यही है कि पेट्रोल-डीजलकी मूल्यवृद्धिसे आम आदमी परेशान है। थालीसे मनपसन्दकी चीजें महंगीके कारण लुप्त हो गयी हैं। बाइकमें पेट्रोल डलवाकर घर-घरतक खाद्य सामग्री पहुंचायी जाती है। जो कारका इस्तेमाल करते हैं, उनका घरेलू बजट भी पेट्रोलने बिगाड़ दिया है।
भले ही राज्य सरकारें पेट्रोल-डीजलपर ४० प्रतिशत टैक्स वसूलती हों, लेकिन मूल्यवृद्धिकी सारी बुराई मोदी सरकारके माथे ही मढ़ी जा रही है। जहां-जहां डबल इंजन कही जा रही सरकारे हुकूमतमें हैं, वहां भी मूल्य कम तो नहीं हैं। जब कच्चे तेलकी कीमत कम हो रही थी, तब केन्द्र सरकारने टैक्समें वृद्धि कर दी थी। बीचमें एक बैरल कच्चे तेलकी कीमत ४० डालरतक हो गयी थी, अब यदि अंतरराष्ट्रीय बाजारमें कच्चे तेलकी कीमत बढ़ रही है तो सरकारको टैक्समें कटौती कर देनी चाहिए। इस संबंधमें राज्योंके साथ भी सहमति बनानी चाहिए। राजस्थान जैसे राज्य जो ३८ प्रतिशत टैक्स वसूल रहे हैं, उन्हें भी टैक्समें कटौती करनी चाहिए। राजस्थानमें केन्द्रके बराबर ही राज्य सरकार भी टैक्सकी वसूली कर रही है, लेकिन इसके बाद भी तेल मूल्यवृद्धिके लिए मोदी सरकारको ही जिम्मेदार माना जा रहा है। मोदी सरकारके समर्थक माने या न माने, लेकिन पेट्रोल-डीजल मूल्यवृद्धिसे युवा वर्ग ज्यादा नाराज है। क्योंकि सर्वाधिक वही वाहनका इस्तेमाल करते हैं। एक लीटर पेट्रोलकी कीमत सौ रुपये बहुत ज्यादा है। जनतासे हमदर्दीमें जितना मुनासिब हो, केंद्र और स्टेट गवर्नमेंट अपने-अपने टैक्समें कमी करके मूल्य नियंत्रित कर सकती हैं। मनमोहन सिंहकी सरकारको पेट्रोलियम उत्पादोंकी कीमतोंको बहुत अधिक करार देकर सत्तासे जनताने बेदखल कर दिया था। तब जनताके बीच दहाडऩेवाली भाजपा ही सबसे अग्रणी थी। अंतत: यूपीए सरकार हटी और भाजपानीत मोदी सरकार सत्तारूढ़ हुई।