नई दिल्ली। आम बजट में सामाजिक क्षेत्र की प्राथमिकता बनी रहेगी। आर्थिक सर्वेक्षण ने इसके संकेत दे दिए हैं। साल 2014 में सरकार में आने के बाद से ही नरेन्द्र मोदी सरकार के बजट में हर साल सामाजिक क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ती रही है और पिछले साल 2021-22 के दौरान केंद्र और राज्य दोनों को मिलाकर सरकार के कुल खर्च का अकेले सामाजिक क्षेत्र पर 26.6 फीसद का खर्च किया गया।
पीएम मोदी की बढ़ती लोकप्रियता की एक वजह यह भी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लगातार बढ़ती लोकप्रियता की एक वजह सामाजिक क्षेत्र को दी गई प्राथमिकता को माना जा रहा है। सामाजिक क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य, खेलकूद, संस्कृति के साथ-साथ गरीबों व अन्य वर्गों के लिए चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाएं आती हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार मोदी सरकार के आने के बाद आठ सालों में सामाजिक क्षेत्र पर बजटीय खर्च दोगुना से भी अधिक हो गया है।
लगातार बढ़ता गया बजट
साल 2014-15 में केंद्र और राज्यों को मिलाकर सामाजिक क्षेत्र के लिए बजट में 32.85 लाख करोड़ रखा गया था जो 2021-22 में बढ़कर 71.6 लाख करोड़ पहुंच गया है। कोरोना संकट के पहले साल में 2020-21 में सामाजिक क्षेत्र में खर्च में 9.8 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई। उस दौरान तय बजटीय आवंटन की तुलना में संशोधित आवंटन में अतिरिक्त 54 हजार करोड़ का प्रविधान करना पड़ा।
स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ा
2021-22 में भी इसमें 8.6 फीसद की बढ़ोतरी की गई। सामाजिक क्षेत्र के कुल आवंटन में पिछले आठ सालों में शिक्षा में लगभग दोगुना और स्वास्थ्य में तीन गुना तक बढ़ोतरी हुई है। शिक्षा पर 2014-15 में 3.54 लाख करोड़ रुपये खर्च किये गए थे जो 2021-22 में बढ़कर 6.97 लाख करोड़ पहुंच गया। इसी अवधि में स्वास्थ्य पर खर्च 1.49 लाख करोड़ से बढ़कर 4.72 लाख करोड़ पहुंच गया।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का लक्ष्य आया करीब
स्वास्थ्य में होने वाली बढ़ोतरी कोरोना के खिलाफ लड़ाई के लिए जरूरी खर्च की वजह से भी आई है। पिछले दो सालों में इस क्षेत्र में खर्च में दो लाख करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है। 2019-20 में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजटीय आवंटन 2.73 लाख करोड़ रुपये था जो 2021-22 में बढ़कर 4.72 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया। वैसे कोरोना के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र में बढ़े खर्च की वजह से सरकार राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के लक्ष्य के करीब पहुंच गई है।
शिक्षा के क्षेत्र को मायूसी
हालांकि शिक्षा के क्षेत्र में ऐसी बढ़ोतरी देखने को नहीं मिली। 2017 में जारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में 2025 तक स्वास्थ्य क्षेत्र में कुल बजटीय आवंटन के 2.5 फीसद स्वास्थ्य पर खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है जो 2021-22 में ही 2.1 फीसद तक पहुंच गया है। जबकि 2014-15 में यह 1.2 फीसद था। वहीं शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी के छह फीसद खर्च के लक्ष्य के काफी पीछे है।
कल्याणकारी योजनाओं पर ज्यादा फोकस
2021-22 में इस क्षेत्र में जीडीपी का केवल 3.1 फीसद की खर्च किया जा सका है। आर्थिक सर्वेक्षण से साफ है कि शिक्षा के बजाय सरकार का मुख्य जोर स्वास्थ्य के साथ-साथ उज्जवला, स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास और हर घर में नल से जल जैसी कल्याणकारी योजनाओं पर ज्यादा रहा। इसी वजह से सामाजिक क्षेत्र में किये गए कुल खर्च में से शिक्षा की हिस्सेदारी लगातार कम होती रही। 2014-15 में सामाजिक क्षेत्र पर होने वाले कुल खर्च में 46 फीसद से अधिक अकेले शिक्षा पर होता था, जो 2021-22 में गिरकर 36.6 फीसद रह गया।