News सम्पादकीय

बेहद चिन्ताजनक है कोरोनाकी दूसरी लहर


स्वास्थ्य मन्त्रालय द्वारा ९ अप्रैलकी सुबह जारी आंकड़ोंके अनुसार २४ घण्टे में १,३१,९६८ नये मामले सामने आये और ७८० लोगोंकी मृत्यु हो गयी। इस तरहसे देशमें कोरोना संक्रमितोंकी कुल संख्या एक १,३०,६०,५४२ हो गयी है। जो निरन्तर बढ़ रही है। वहीं कोविड-१९ से अबतक मरनेवालोंका आंकड़ा १,६७,६४२ पर पहुंच गया है। यद्यपि इस बीमारीसे लड़कर ठीक होनेवालोंकी संख्या भी १,१९,१३,२९२ हो गयी है। जो राहतकारी है परन्तु सन्तोषजनक नहीं है। शोधसे पता चला है कि कोरोना वायरसका नया वैरिएंट ज्यादा शक्तिशाली और जानलेवा है, जो शरीरकी प्रतिरक्षा प्रणालीको आसानीसे पार कर सकता है। इसलिए अब नौजवानोंके लिए भी कोरोना संक्रमणका खतरा बढ़ गया है। कोविड-१९ की दूसरी लहरमें कई नये लक्षण भी सामने आये हैं, जिनमें बुखार, शरीरमें दर्द, गन्ध और स्वाद न मिलना, ठण्ड लगना, सांस फूलना, दस्त, उल्टी, पेटमें ऐंठन और दर्द आदि हैं। इसके अलावा आंखोंका गुलाबी होना या आंख आना भी कोरोना संक्रमणका लक्षण है। इसमें आंखें लाल हो जाती हैं, आखोंमें सूजन बढ़नेके साथ पानी भी आने लगता है। कोविड-१९ का संक्रमण सुननेकी क्षमताको भी प्रभावित कर रहा है।
देश ें कोरोना संक्रमणसे सर्वाधिक प्रभावित राज्योंमें महाराष्ट्रको पहले स्थानपर तथा छतीसगढ़को दूसरे स्थानपर बताया जा रहा है, जबकि उत्तर प्रदेश और दिल्ली क्रमश: तीसरे और चौथे स्थानपर हैं। वहीं चुनाववाले राज्य पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु तथा केन्द्रशासित प्रदेश पुदुचेरीमें कोरोना संक्रमणकी नियन्त्रित स्थिति आश्चर्यचकित करती है, जहां कोविड नियमोंकी खुलेआम धज्जियां उड़ रही हैं। बड़ी-बड़ी चुनावी सभाओंमें उमड़ती लाखोंकी भीड़, हजारों लोगोंके साथ नेताओंका रोड शो, न मास्क, न शारीरिक दूरी। फिर भी इन राज्योंमें कोरोनाके मामले महराष्ट्र और छत्तीसगढ़के मुकाबले बेहद कम आना स्वास्थ्य मन्त्रालयकी नीति-रीतिपर प्रश्नचिह्नï खड़ा करता है। महाराष्ट्रमें जहां २४ घण्टेमें कोरोना संक्रमणके ५६,२८६ नये मामले दर्ज हुए वहीं चुनाववाले राज्य केरलमें ४,३५३, तमिलनाडुमें ४२७६, पश्चिम बंगालमें २७८३, पुदुचेरीमें २९३ तथा असममें मात्र २४५ मामले सामने आये हैं। इससे तो यही सिद्ध होता है कि या तो मास्क और शारीरिक दूरीका कोरोनासे कोई सम्बन्ध नहीं है या फिर इन राज्योंके सही आंकड़ोंको जान-बूझकर छिपाया जा रहा है। आम आदमीकी भलाई और सुख-समृद्धिका डंका पीटते हुए सताकी अन्धी दौड़में भागते राजनीतिक दलोंके द्वारा आम जनके स्वास्थ्यके साथ खुलमखुल्ला खिलवाड़ करना उनकी नीति और नियतकी स्वत: पोल खोल देता है। ऐसेमें यदि स्वास्थ्य विभागके कर्मचारी किसी कोरोना संक्रमित मरीजके साथ लापरवाही बरतते हैं तो इसमें आश्चर्य कैसा। ताजा मामला मध्य प्रदेशके सतना जिलेका है। जहां स्वास्थ्य विभागकी लापरवाहीसे किसी आम आदमीकी नहीं, बल्कि अपर सत्र न्यायाधीशकी कोरोना संक्रमणसे मृत्यु हो गयी। कोविड वार्डोंमें कोरोना संक्रमितोंके साथ स्वास्थ्य कर्मियोंकी असंवेदनशीलता तथा लापरवाहीके आरोप बहुत पहलेसे लग रहे हैं। जिससे आम आदमीका इनसे भरोसा टूटना स्वाभाविक है।
हालांकि सभी स्वास्थ्यकर्मी एक जैसे नहीं हैं। अपनी जानकी परवाह किये बिना मरीजोंकी जान बचानेवालोंकी संख्या लापरवाहोंकी अपेक्षा बहुत अधिक है। अनेक स्वास्थ्यकर्मी तो दूसरोंकी जान बचाते हुए स्वयं कोरोनाकी चपेटमें आकर जीवनसे ही हाथ धो बैठे। ऐसे जाबाज कर्मियोंके कारण ही यह देश बिना किसी टीके और दवाके इस गम्भीर बीमारीसे लड़नेमें सफल रहा। मुख्य मन्त्रियोंको सम्बोधित करते हुए प्रधान मन्त्रीने कहा भी कि देशने बिना टीकेके कोविड-१९ से लड़ाई जीती है। अब तो हम ज्यादा संसाधनोंसे युक्त हैं तो दूसरी लहरको काबू करनेमें ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। अपने सम्बोधनमें उन्होंने कोविड-१९ के प्रबन्धनपर जोर देनेकी बात कही है। अब प्रश्न उठता है कि इस प्रबन्धनका घटक कौन-कौन है। क्या केवल स्वास्थ्य महकमेके ऊपर ही सारा दारोमदार टिका हुआ है। क्या चुनावी सभाएं और रोड शो करनेवाले नेताओंकी इसमें कोई भूमिका नहीं है। क्या चुनावके नामपर आम आदमीके जीवनके साथ इस तरहसे खिलवाड़ करना किसी भी दृष्टिसे जायज कहा जा सकता है। क्या चुनाव प्रचारके अन्य विकल्पोंका प्रयोग नहीं किया जा सकता है। ऐसे अनेक सवाल कोविड-१९ की प्रबन्धन शैलीपर खड़े होना स्वाभाविक है। जिनका जवाब शायद ही किसीके पास हो। अन्ततोगत्वा यही कहा जा सकता है कि आम जनको अपनी सुरक्षाके प्रति स्वयं ही सजग होना पड़ेगा। मास्क और शारीरिक दूरीकी अनिवार्यताका अनुपालन कानूनके भयसे नहीं, बल्कि अपने जीवनकी सुरक्षाके प्रति जागरूक होकर करना चाहिए। साथ ही बिना किसी झिझक एवं किन्तु-परन्तुके शीघ्रातिशीघ्र कोरोनाकी वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए। देवताओंके लिए दुर्लभ मानव जीवन अनमोल है। इसलिए हमें स्वयं ही अपनी सुरक्षाके प्रति संवेदनशील बनना पड़ेगा।