राजेश माहेश्वरी
जो दृश्य इस समय बंगालमें है उससे प्रतीत होता है कि इस बार पश्चिम बंगालका चुनाव रोमांचक और आक्रामक होगा। वर्तमान विधानसभामें तृणमूलके २११ और भाजपाके मात्र तीन विधायक हैं। ममता बनर्जी लगभग एक दशकसे ही मुख्य मंत्री हैं, लिहाजा कुछ स्तरोंपर सत्ता-विरोधी लहर और रूझान दृष्टिïगोचर हो रहा है। फिर भी ममता दीदी मजबूतीसे मैदानमें डटी हैं। वहीं भाजपाने भी बंगालमें सारी ताकत झोंकनेकी तैयारी कर ली है। भाजपाके तेवरोंसे लगता है इस बार बंगालपर राज करनेकी ठान ली है। अमित शाहके अध्यक्ष-कालमें ही यह तय हुआ था यदि संपूर्ण भारतकी पार्टी बनना है तो बंगाल, केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु सरीखे अनछुये राज्योंमें विस्तार और चुनावी मौजूदगी जरूरी है। शायद उसी रणनीतिके तहत बंगाल चुनाव का ‘चाणक्यÓ शाहको बनाया गया है। किसी भी चुनावमें भाजपाकी रणनीति बनानेमें अमित शाह और पार्टीके पक्षमें हवा बनानेमें नरेंद्र मोदीकी भूमिका अहम होती है। अतिम शाहने बंगालमें ममता दीदीको घेरनेके लिए व्यूह रचना रची है। शाहके ताजा बंगाल दौरेके बाद बंगालका सियासी तापमान बढ़ गया है। बोलपुर, बीरभूम अब ममता बनर्जीकी पार्टीका गढ़ है। वहां स्वराष्टï्रमंत्री अमित शाहका रोड शो आयोजित किया गया। हालके वर्षोंमें हमने ऐसा भीड़वाला शो नहीं देखा। शाहके साथ उनकी टीम भी बंगालमें खून पसीना बहा रही है। जिस वक्त बोलपुरमें रोड शो कर रहे थे और दूसरी तरफ बंगालके अलग-अलग जिलोंमें उनके सिपहसालार पार्टीकी जमीन मजबूत करनेमें लगे थे। भाजपा नेताओंके लगातार बंगाल दौरोंको देखते हुए ही तृणमूल कांग्रेसने चुनावका मुद्दा स्थानीय बनाम बाहरी कर दिया है। दो दिनके बंगाल दौरेपर जब अमित शाह बोलपुरमें व्यस्त थे तो कोलकातामें उत्तर प्रदेशके उपमुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्य संघटनको मजबूत करनेके लिए आ चुके थे। केशव प्रसाद मौर्यको अमित शाहने बंगाल चुनावमें विशेष जिम्मेदारी दी है। अमित शाहने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव २०२१ के लिए छह नेताओंको विशेष जिम्मेदारी दे रखी है।
भाजपा सूत्रोंकी मानें तो अमित शाहने इन छह लोगोंको राज्यकी छह-छह लोकसभा सीटोंकी जिम्मेदारी दी है। अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा हर महीने बंगालका दौरा करेंगे। बंगालके बुनियादी तेवरकी बात की जाय तो राजनीतिक हत्याओंसे जमीन लगातार लाल हो रही है। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ताओंके बीच हिंसा और हत्याकी खबरें आम हैं। देशके स्वराष्टï्रमंत्रीने भी उल्लेख किया है कि भाजपाके तीन सौसे अधिक कार्यकर्ताओंकी हत्याएं की जा चुकी हैं। विडंबना है कि इस मुद्देपर प्रधान मंत्री मोदीको भी बोलना पड़ा कि राजनीतिक हिंसा और हत्याओंसे जनादेश नहीं मिला करते। हालांकि वाममोर्चाका ३४ साल लंबा शासन-काल पीछे छूट चुका है, लेकिन उस दौरान भी एक लाखसे अधिक हत्याएं करायी गयीं। हैरानी है कि ममता उस हिंसात्मक राजनीतिका विरोध करते हुए सत्तामें आयी, लेकिन उनके शासन-कालमें भी हत्याएं जारी हैं। बीते २०१८ के पंचायत चुनावोंमें ही करीब ५० हत्याएं की गयीं। हालांकि तृणमूलके कार्यकर्ता भी मारे जाते रहे हैं। फिलहाल अन्य मुद्दोंके साथ यह भी भाजपाका सरोकारी मुद्दा है।
वहीं पश्चिम बंगालमें तृणमूल कांग्रेस और भाजपाके बीच बढ़ते सियासी टकरावके बीच कांग्रेस और वाम दलोंकी धड़कनें तेज हैं। कांग्रेस और लेफ्ट मानते हैं कि जिस तरह मुख्य मंत्री ममता बनर्जी और भाजपा एक-दूसरेके खिलाफ तलवार खींच रहे हैं, उससे डर है कि चुनावमें मतदाता इन दोनों दलोंके बीच उलझकर रह जायगा। विधानसभा चुनावमें कांग्रेस और वाम दलोंके सामने अपना अस्तित्व बचाये रखनेकी चुनौती है। क्योंकि इन चुनावमें दोनों पार्टियां मतदाताओंकी उम्मीदोंपर खरा नहीं उतरी तो प्रदेशमें मुख्य विपक्षी दलका तमगा भी खो देंगी। इसलिए कांग्रेस और लेफ्ट एक बार फिर गठबंधनमें विधानसभा चुनाव लडऩेकी तैयारी कर रहे हैं। पश्चिम बंगालमें भाजपाकी एंट्रीके लिए लेफ्ट ममता बनर्जीको जिम्मेदार मानती है। इसलिए भाजपाके मुकाबले तृणमूल कांग्रेससे नाराजगी ज्यादा है। कांग्रेस भी मानती है कि पश्चिम बंगालमें भाजपाकी एंट्रीके लिए ममता बनर्जी जिम्मेदार हैं। पार्टीके एक नेताने कहा कि टीएमसी सरकारने लेफ्ट और कांग्रेसियोंको विपक्षकी भूमिका नहीं निभाने दी। इससे एक शून्य पैदा हुआ और भाजपाने वह जगह ले ली। चुनावसे ठीक पहले इस तरहके टकरावके जरिये ममता बंगालमें भाजपा को और मजबूती दे रही है। पश्चिम बंगालमें भाजपाके बढ़ते प्रभावको रोकनेके लिए सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ‘नरम हिंदुत्वÓ का सहारा ले रही है। २०२१ के विधानसभा चुनावसे पहले हिंदू पुजारियोंको भत्ता देनेकी तृणमूल सरकारकी योजना, करीब ३७,००० पूजा समितियोंको ५०-५० हजार रुपये देना तुष्टïीकरणके आरोपोंकी काट और भाजपाको मात देनेकी सोची-समझी रणनीति प्रतीत होती है। राज्यकी २७ फीसदी मुस्लिम आबादीका करीब ८० फीसदी समर्थन ममताकी पार्टीको है। पार्टीने प्रशांत किशोर और उनकी टीमको अपना चुनावी रणनीतिकार बनाया है। अमित शाहके दौरेमें ११ विधायक, एक सांसद, एक पूर्व सांसद और पूर्व मंत्री, १५ पार्षद, ४५ चेयरमैन और दो जिला पंचायत अध्यक्ष तृणमूल, वामदल और कांग्रेस छोड़कर भाजपामें शामिल हुए हैं, लेकिन ममता बनर्जी आज भी अपने विरोधियोंके लिए गंभीर चुनौती हैं। वह संघर्षशील नेता रही हैं, वाममोर्चेसे लड़-भिड़कर सरकारमें आयी हैं और उनके जनाधारकी बुनियाद आज भी पुख्ता है। बेशक आज बंगालमें परिवर्तनकी हवाएं भाजपाके साथ हैं, लेकिन बंगाल निवासी किसे अपने प्रदेशकी बागडोर सौपेंगे ये तो आनेवाला वक्त ही बतायगा।