जग्गी वासुदेव
मनुष्यके सिवाय दुनियाका हर प्राणी शालीनतासे मरना जानता है। यदि आप जंगलमें जायं, उसमें भी, जहां बहुत सारे जंगली जानवर हों तो किसी शिकारी जानवरके मारे हुए प्राणियोंको छोड़कर आपको किसी भी प्राणीकी लाश ऐसे ही पड़ी हुई नहीं मिलेगी। जंगल क्यों, शहरोंमें भी, जहां आजकल पक्षियोंके नामपर बस कुछ कौवे ही नजर आते हैं, आपको कोई मरा हुआ कौवा ऐसे ही पड़ा हुआ नहीं मिलेगा। वह सभी यह जानते हैं कि उनके मरनेका समय कब है और उस समयपर वे किसी शांत, सुनसान क्षेत्रमें चले जाते हैं और शांतिसे मरते हैं। सिर्फ मनुष्य ही है जो इससे अनजान रहता है और यातना सहते मरता है। जब मृत्यु आती है तो जिन लोगोंको ये पता नहीं है कि जीते कैसे हैं, उनको मरनेके बारेमें निश्चित रूपसे समस्या आती है। जब आप मृत्युके नजदीक जाते हैं तो यह एक अवसर है क्योंकि अब ऊर्जाएं कमजोर पड़ गयी हैं और वह शरीरको छोडऩेकी तरफ आगे बढ़ रहीं हैं तो अपने अस्तित्वके बारेमें जागरूक होना ज्यादा आसान है। आप जब बच्चे थे तो सब कुछ बहुत सुंदर था परन्तु आप बड़े होनेके लिए उत्सुक थे, क्योंकि आप जीवनका अनुभव लेना चाहते थे। जब आप युवा हो गये तो आपकी बुद्धिमता आपके हार्मोंस उड़ा ले गये। जान-अनजाने आप जो भी करते थे वह आपको उसी दिशामें धक्का देकर आगे बढ़ाता था। बहुत कम लोगोंमें यह योग्यता होती है कि वह अपने जीवनको हार्मोंस द्वारा उड़ाये जानेसे बचा पायें और जीवनको स्पष्टताके साथ देख सकें। बाकी सब इस जालमें फंस जाते हैं। जवानीमें जब शरीर जोशपूर्ण होता है तो अपने आपको जागरूक बनाना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि आप अपनी पहचानको अपने शरीरके साथ इस कदर जोड़े रखते हैं कि उसके परे आप कुछ भी नहीं देखते। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, ये कम होने लगता है। जैसे-जैसे शरीरकी गतिशीलता कम होती जाती है, आपकी जागरूकता बढ़ती जाती है, क्योंकि अब आप अपनी पहचान उस शरीरके साथ नहीं जोड़ते जो कम हो रहा है। जब आप बुढ़ापेमें आते हैं तो सब इच्छाएं पूरी हो चुकी होती हैं और जीवनका अनुभव आपके पीछे होता है तो फिरसे आप बच्चे जैसे होने लगते हैं परन्तु आपके पास अब बुद्धिमानी और जीवनका अनुभव भी है। ये आपके जीवनका बहुत अद्भुत और उपयोगी समय हो सकता है। यदि आप अपनी कायाकल्पकी प्रक्रियाको ठीकसे संभालें तो बुढ़ापा आपके जीवनका एक चामत्कारिक भाग हो सकता है। दुर्भाग्यसे अधिकतर मनुष्य बुढ़ापेमें पीड़ा सहन करते हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी कायाकल्पकी प्रक्रियाको ठीकसे नहीं संभाला होता। अपने बुढ़ापेमें बहुत कम लोग मुस्करा भी पाते हैं और ये इसलिए है क्योंकि अपने जीवनमें उन्होंने जो कुछ भी जाना है वह बस भौतिक शरीर है। जब यह शरीर कमजोर पडऩे लगता है, घटने लगता है तो वह निराश होने लगते हैं। बुढ़ापा और मृत्यु भी आनन्दपूर्ण अनुभव बन सकते हैं। इसके लिए आपको जानना होगा कि कब जाना है और शालीनताके साथ जाना होगा।