सम्पादकीय

सामुदायिक संक्रमणकी आशंका


डा. श्रीनाथ सहाय          

ग्रामीण अंचलोंमें कोरोनाके प्रसारने सबकी चिंताको बढ़ा दिया है। बड़े शहरों और नगरोंके बाद कोरोना कस्बों और खासकर गांवोंकी तरफ फैलने लगा है। छत्तीसगढ़की तस्वीर डरानेवाली है, जहां करीब ८९ फीसदी संक्रमित मामले ग्रामीण इलाकोंसे आये हैं। इसके अलावा हिमाचल, बिहार, ओडिशा, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीरके गांवोंमें ६५ फीसदीसे ७९ फीसदीतक मामले दर्ज किये जाते रहे हैं और यह रुझान जारी है। यकीनन महाराष्टï्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदिके शहरोंमें, बीते कुछ दिनोंसे, कोरोनाके मरीज घटे हैं। कम टेस्टिंगके बावजूद संक्रमण-दर बढ़ी है। देशमें मंगलवारको १९ लाखसे ज्यादा टेस्ट किये गये हैं। यह संख्या भी कम नहीं है। पिछले साल जब कोरोनाकी पहली लहर आयी थी तो उस समय भी इस बातकी शंका थी कि कहीं कोरोना गांवोंको अपने पंजोंमें न जकड़ ले। लेकिन गनीमत रही कि पहली लहरमें कोरोना गांवोंसे दूर ही रहा। लेकिन दूसरी लहर इतनी प्रबल है कि वह गांवोंमें प्रवेश कर चुकी है। ऐसेमें सरकार और स्थानीय प्रशासनकी दिक्कतें तो बढ़ ही गयी हैं। वहीं कम्युनिटी ट्रांसमिशनका बड़ा खतरा भी सामने मंडराने लगा है। शहरों और गांवोंके रहन-सहन और जीवनमें काफी फर्क है। ऐसेमें गांवोंमें सामुदायिक संक्रमणकी संभावनाएं बढ़ जाती है।

सरकारी रिपोर्टकी माने तो कस्बों और ग्रामीण इलाकोंमें कोरोना लगातार फैल रहा है। देशके २४ मेंसे १३ राज्योंमें शहरोंसे अधिक संक्रमित मामले गांवोंमें मिले हैं। अन्य ११ राज्योंमें भी गांवोंमें कोरोनाका विस्तार जारी है। यह स्थिति तब है, जब अधिकतर गांवोंमें टे्रसिंग, टेस्टिंग और ट्रीटमेंट जैसी जरूरी सुविधाएं न के बराबर ही हैं। बेहतर और सुविधायुक्त अस्पतालोंकी तो कल्पना ही नहीं की जा सकती, बल्कि झोलाछापोंकी दुकानें फल-फूल रही हैं। पेरासिटामोल सरीखी दवा भी बेहद कम है। झोलाछाप पाउडर पीस कर मरीजोंको जो भी दे रहे हैं, उसे स्वीकार करना ग्रामीणोंकी विवशता है। कोरोनासे जुड़ी दवाएं तो अलग बात है, बुखारकी पेरासिटामोल, विटामिन-सीकी टैबलेट और यहांतककी खांसीके अच्छी कम्पनियोंके सिरपतक नहीं मिल रहे हैं। ज्यादातर ग्रामीण इलाकोंमें एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि खांसी और बुखार को लोग सामान्य फ्लू मानकर चल रहे हैं। वहीं गांवोंमें जांचकी स्थिति बहुत खराब है। लोग बीमार हैं फिर भी जांच कराने इसलिए नहीं जा रहे, क्योंकि जांच केंद्रोंपर ठीक व्यवस्था नहीं होती। एंटीजन टेस्टपर तो किसीको विश्वास ही नहीं है। आरटीपीसीआर टेस्टकी रिपोर्ट जल्दी आती नहीं। टेस्ट न करानेका एक कारण यह भी है कि लोगोंको लगता है कि गांवमें सब कोरोनाके बारेमें जान जायेंगे तो बदनामी होगी।

गांवोंमें कोरोनाके विस्तारकी खबरें सुर्खियां बनी हैं तो सरकारें सक्रिय हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्रोंमें कोरोना महामारीकी रोकथामके लिए राज्य सरकारें और स्थानीय प्रशासनने बचाव कार्य तेज कर दिये हैं। इसी कड़ीमें सवेदनशील गांवोंमें सैनिटाइजेशनका कार्य शुरू किया गया है। जिन स्थानोंपर कोरोना संक्रमित या खांसी एवं बुखारके मरीज ज्यादा है, उन स्थानोंपर फोकस करते हुए लगातार सैनिटाइजेशनका कार्य किया जा रहा है। सैनिटाइजेशनके दौरान गांवोंमें समूहके रूपमें इकठ्ठा न होने, मास्क और सैनिटाइजरके इस्तेमालकी अपील भी की गयी। इसमें कोई दो राय नहीं है कि ग्रामीण इलाकोंमें मौतें भी खूब हो रही हैं, क्योंकि ग्रामीणोंको कोरोना वायरसकी पर्याप्त जागरूकता नहीं है। वह उसे ‘रहस्यमयी बुखारÓ करार दे रहे हैं। ग्रामीण अब भी मलेरिया, टायफाइड आदितक ही सिमटे हैं। हैरानीसे सवाल करते हैं कि न जाने कैसा बुखार है, जो आसपास आनेवालोंको भी अपनी चपेटमें ले लेता है और लोग मरने लगते हैं। गांववाले उस बुखारको कोरोना नहीं मान पा रहे हैं। यह है भारतमें उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और हरियाणाके गांवोंका यथार्थ! ऐसे कई राज्योंके गांवोंसे चौंकानेवाले आंकड़े मिल रहे हैं। उत्तर प्रदेशके महराजगंज जिलेके गांवोंमें भी कोरोना पहुंच गया है। एक प्रमुख दैनिक अखबारकी रिपोर्टके मुताबिक इसके लक्षणसे ग्रामीण इलाके भी तप रहे हैं। हालमें सामने आये सर्वे रिपोर्टकी मुताबिक गांवोंमें ६३४३ मरीज, बुखार, खांसीके मिले हैं। इनमें १३५ कोरोना पाजिटिव पाये गये हैं। ग्रामीण क्षेत्रमें जिनके घरमें होम आइसोलेशनकी व्यवस्था नहीं है, उन्हें काफी परेशानियोंका सामना करना पड़ रहा है। जिलेपर समेकित विद्यालयको क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रोंमें अभी किसी स्कूल एवं पंचायत भवनको क्वारंटाइन सेंटर नहीं बनाया गया है। लक्षणवाले मरीज अपने घरपर ही क्वारंटाइन हैं। वहीं उत्तर प्रदेशके गौतमबुद्ध नगर जिलेमें कोरोनाका प्रकोप तेजीसे बढ़ रहा है। रिपोर्टके अनुसार, पिछले दस दिनोंमें ग्रामीण क्षेत्रोंमें ५० से अधिक मौते हुई हैं, बिसरख, जेवर, दादरीके गांवोंमें ज्यादातर लोग बीमार हैं। उत्तर प्रदेश ही नहीं, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्टï्र, बिहार, छत्तीसगढ़ और देशके अन्य राज्योंमें भी गांवोंमें कोरोना पहुंच गया है। हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। नतीजतन सरकारें मुगालतेमें न रहें कि कोरोनाका ‘पीकÓ अलग-अलग राज्योंमें गुजर रहा है और कोरोनाके मामले घटने लगे हैं।विशेषज्ञोंके अनुसार यह संभव नहीं है कि इतनी बड़ी आबादीके लिए कोई भी देश आक्सीजन उपलब्ध करा सके। मेडिकल व्यवस्थाएं पहलेसे ही ठीक नहीं रही हैं और अभी गांवोंकी स्थिति चिंताजनक है। गांवोंमें हर घरमें लोग बीमार हैं और उनमें लक्षण भी कोरोनाके हैं। ऐसेमें लोगोंको जागरूक करना बहुत जरूरी है।

सरकारको चाहिए कि वह गांव-गांव डुगडुगी पिटवाकर लोगोंको जागरूक करे। लोगोंको बतायें कि यदि आपमें यह लक्षण है तो तुरन्त जांच कराइये। विशेषज्ञ डाक्टरोंकी टीम हो जांच रिपोर्ट आनेसे पहलेसे ही लक्षणके आधारमें इलाज शुरू कर दें। गांवोंमें लोगोंका प्राथमिक इलाज उनके घरोंमें ही शुरू करना पड़ेगा और बीमारीके पहले सप्ताह ही शुरू करना पड़ेगा। ताकि गंभीर अवस्थामें पहुंचनेसे पहलेसे ही खत्म किया जा सके क्योंकि सबके लिए बेड उपलब्ध कराना मुश्किल होगा। सरकारको गांवोंकी स्थितिके बारेमें बहुत जल्द सोचना होगा। ग्रामीण भारतकी स्थिति सचमें ठीक नहीं है और इस ओर कोई ध्यान देनेवाला भी नहीं है। अब इसे प्राथमिकता देनेकी जरूरत है। यह जान लीजिए यदि गंावोंमें कोरोना संक्रमणने सामुदायिक संक्रमणका रूप धारण कर लिया तो फिर कोरोना बेकाबू होकर बहुत नुकसान पहुंचायगा। इसलिए समय रहते गांवोंमें कोरोना रोकथामके पर्याप्त उपाय करनेकी जरूरत है।