नयी दिल्ली (एजेंसी)। दिन था 27 सितंबर 2019, मुंबई में रहने वाली 48 साल की ट्यूशन टीचर सुमन गुप्ता पंजाब महाराष्ट्र बैंक के सामने लगी भीड़ में खड़ी रो रहीं थीं। सुमन की जुबान यह कहते हुए लडख़ड़ाने लगती है कि उन्होंने 20 साल से पैसे जोड़े, लेकिन बेटी के एमबीए में एडमिशन के लिए वो अपना ही पैसा बैंक से नहीं निकाल पा रही हैं। वजह, आरबीआई ने पीएमसी के सभी मेजर बैंकिंग एक्टविटीज पर रिस्ट्रिक्शन लगा दी थी। जिसके चलते कोई भी एक दिन में 1 हजार रुपये से ज्यादा की रकम नहीं निकाल सकता था। पुरानी कहानी है, हम आपको क्यों सुना रहे हैं? दरअसल रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एनुअल स्टैटिकल रिपोर्ट पेश की है। इसमें नॉन-परफॉर्मिंग एसेट का भी जिक्र है। 2014 से लेकर 2020 यानी मोदी के 6 सालों में एनपीए की कुल रकम 46 लाख करोड़ रही। बीते दशक में 4 साल मनमोहन तो 6 साल मोदी सरकार रही। मनमोहन सरकार के आखिरी 4 साल (2011-2014) के बीच एनपीए की बढऩे की दर 175 प्रतिशत रही, जबकि मोदी सरकार के शुरुआती 4 साल में इसके बढऩे की दर 178 प्रतिशत रही। प्रतिशत में ज्यादा फर्क नहीं दिख रहा है, लेकिन इतना जान लीजिए कि मनमोहन ने एनपीए को 2 लाख 64 हजार करोड़ पर छोड़ा था और मोदी राज में ये 9 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि इससे हमें क्या? न, इस मुगालते में मत रहिए! ये मामला सीधे आपसे जुड़ा हुआ है। इसके लिए आपको एनपीए और इससे जुड़े आंकड़ों को इत्मिनान से समझना होगा। जब कोई व्यक्ति या संस्था किसी बैंक से लोन लेकर उसे वापस नहीं करती, तो उस लोन अकाउंट को क्लोज कर दिया जाता है। इसके बाद उसकी नियमों के तहत रिकवरी की जाती है। ज्यादातर मामलों में यह रिकवरी हो ही नहीं पाती या होती भी है तो न के बराबर। नतीजतन बैंकों का पैसा डूब जाता है और बैंक घाटे में चला जाता है। कई बार बैंक बंद होने की कगार पर पहुंच जाते हैं और ग्राहकों के अपने पैसे फंस जाते हैं। ये पैसे वापस तो मिलते हैं, लेकिन तब नहीं जब ग्राहकों को जरूरत होती है।
पीएमसी के साथ भी यही हुआ था, उसने एचडीआईएल नाम की एक ऐसी रियल स्टेट कंपनी को 4 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का लोन दे दिया था, जो बाद में खुद ही दिवालिया हो गई थी।
साल 2020 में बैंकों का जितना पैसा डूबा उसमें 88 प्रतिशत रकम सरकारी बैंकों की थी। कमोबेश पिछले 10 साल से यही ट्रेंड चला आ रहा है। सरकारी बैंक मतलब आपकी बैंक, इन्हें पब्लिक बैंक भी कहा जाता है। जब सरकारी बैंक डूब जाते हैं, तो सरकार या आरबीआई इनके मदद के लिए सामने आते हैं, जिससे सरकारी बैंक ग्राहकों के पैसों को लौटा सकें।