डा. भवदेव पांडेय की पुण्यतिथि पर संगोष्ठी
मिर्जापुर । विन्ध्याचल परिक्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक पीयूष कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि अच्छे कर्मों का फल अच्छा मिलता है जबकि बुरे कर्म से भले की कोई तात्कालिक उपलब्धि मिल गई हो लेकिन उसका अंत बुरा ही होता है। श्री श्रीवास्तव नगर के हिंदी साहित्य के शीर्ष समालोचक डॉ भवदेव पांडेय की 11वीं पुण्यतिथि पर गुरुवार को तिवराने टोला में धर्म एवं विज्ञान में सान्निध्य के आयाम विषयक परिचर्चा गोष्ठी में मुख्य अतिथि पद से बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि विद्वत समाज नई राह दिखाता है। श्री श्रीवास्तव ने कहा कि जीवन में एक समय आता है जब व्यक्ति खुद अपना मूल्यांकन करने लगता है। गोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप अपर आयुक्त (प्रशासन) रमेशचन्द्र कार्यक्रम उपस्थित रहे। निर्धारित धर्म एवं विज्ञान में सान्निध्य के आयाम विषय की शुरुआत करते हुए केबीपीजी कालेज के अवकाशप्राप्त गणित विभागाध्यक्ष डॉ कैलाशनाथ त्रिपाठी ने कहा कि सभी धर्मों में आस्था, प्रेरणा, शांति, प्रेम, उदारता का उल्लेख तो है लेकिन हकीकत में होता इसके विपरीत ही है। धर्म के नाम पर लोग जिंदा जलाए जाते हैं जो चिंता की बात है। इतिहास के पन्नों को पलटने पर धर्म के नाम पर अत्याचारों का विवरण मिलता है। उन्होंने कहा कि पूजा-पाठ, शादी और मांगलिक कार्यक्रम जितने भी हो रहे हैं, वह वेदों के अनुसार नहीं बल्कि पुराणों के आधार पर हो रहे हैं। वर्ष में कोई भी त्योहार वेद के अनुसार नहीं मनाए जाते। डॉ त्रिपाठी ने कहा कि वैदिक ज्ञान स्वत: विज्ञान है। एक एक ग्लैक्सी में अरबों-अरबों तारे है। विज्ञान ने जिन अणुओं और परमाणुओं को देखा, उसका उल्लेख वेदों में मिलता है। संगोष्ठी में आदर्श इंटर कालेज के अवकाश प्राप्त प्रधानाचार्य श्री वृजदेव पांडेय के व्याख्यान का आधार उपनिषद रहा और उन्होंने धर्म एवं विज्ञान को एक दूसरे का पूरक कहा जबकि केबीपीजी कालेज के अवकाशप्राप्त प्राचीन इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ के एम सिंह ने कहा कि विज्ञान कभी धर्म को खंडित नहीं करता, बल्कि उस पर शोध करता है। सगोत्री-विवाह न करने का निर्णय अब मेडिकल साइंस ने भी दे दिया है। गोष्ठी की अध्यक्षता करते नए केबीपीजी कालेज के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ बैजनाथ पांडेय ने जो धारण करने योग्य है वह धर्म तथा जो जीवन को गति दे वह विज्ञान। उन्होंने कहा कि ऋषि का अर्थ ही गतिशीलता है। सनातन ऋषि पूर्ण वैज्ञानिक थे । ऋषियों ने सर्वप्रथम जिस अग्नि की खोज की उसी के विकसित रूप ऊर्जा है।