दिव्यचेतनानंद
आनंद मार्गका साधारण अर्थ है. वह मार्ग जो मनुष्यको परमानंदका रास्ता दिखाये। आनंद मार्ग मनुष्यको त्रिस्तरीय विकासके लिए प्रेरित करता है। विकासके ये तीन स्तर हैं-शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास। परम आनंदकी प्राप्तिके लिए योग साधना नितांत आवश्यक है। आनंद मार्गका उद्देश्य है, आत्म मोक्षार्थम् जगत हिताय च। यानी आत्माकी मुक्ति (मोक्ष) के साथ समाजकी सेवा करना। साधारण मनुष्य भौतिक लिप्साओंमें बुरी तरहसे उलझे रहते हैं। वैसे तो गृहस्थोंको भौतिक चीजोंमें लिप्त रहना पड़ता है, अन्यथा वे अपने परिवारका भरण-पोषण कैसे कर पायंगे। परन्तु परिवारमें रहकर आत्मा मुक्त कैसे हो पाये, इसके लिए आनंद मार्ग धर्म साधनाका अनूठा रास्ता सुझाता है। आनंद सूत्रमें आनन्द मार्ग दर्शनको ८५ सूत्रोंके माध्यमसे योग और तंत्रका सामंजस्य करते हुए एक व्यावहारिक परमानंदकी प्राप्तिका मार्ग दिखाया है। आखिर आनन्द है क्या। कहा गया है, सुखमनन्तमानंदम्। यानी कोई भी जीव अल्पमें संतुष्ट नहीं है, मनुष्य तो और भी नहीं। इसलिए थोड़े सुखसे किसीका मन नहीं भरता है, वह अनंत सुखकी कामना करता है। वह यह समझ नहीं पाता है कि सुख और दुखकी एक अतीत अवस्था है। इसका कारण यह है कि जिस सुखका बोध इंदियोंसे हो पाता है, वह सुख जब अनंत तत्वमें मिलता है तो वह इंदियोंकी परिधिसे बाहर चला जाता है। इस प्रकार जो अनंत सुख प्राप्त होता है, वही आनंद है। आनंद मार्गकी योग साधना अष्टांग योग यानी यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधिपर आधारित है। यहां पहला प्रश्न यह उठता है कि यम साधना क्या है। नीतिवादकी पहली शिक्षा है यम-साधना। यमके पांच अंग हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्माचर्य और अपरिग्रह। ये पांच अंग विभिन्न पद्धतियोंसे साधकको संयमकी दीक्षा देते हैं। संयम शब्दका अर्थ है. नियंत्रित व्यवहार। विशेषताके विचारसे यम साधना मूलत: भौतिक और मानसिक जगतकी साधना है और नियम साधना भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों जगतमें समान भावसे महत्वपूर्ण है। नियम भी पांच हैं- शौच, संतोष, तप: स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान। जिस तरह यमके पांच अंगोंमें ब्रह्माचर्य सर्वश्रेष्ठ है, उसी तरह नियमके पांच अंगोंमें ईश्वर प्रणिधान ही सर्वश्रेष्ठ है।