सम्पादकीय

आंदोलनकी आड़में देशविरोधी कृत्य


आशीष वशिष्ठ 

कृषि कानूनोंके विरोधमें जिस तरहकी देशविरोधी घटनाएं सामने आयी हैं, वह चिन्ताका बड़ा कारण है। २६ जनवरीको ट्रैक्टर रैलीकी आड़में जिस तरह लालकिलेमें एक विशेष रंगका झंडा फहराया गया, वह देशकी संप्रभुता, एकता और अखंडताका चुनौती देनेवाली घटना है। वहीं किसान आन्दोलनको लेक जिस तरह विदेशी हस्तियोंने बयानबाजी शुरू की उससे यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तरपर सुर्खियोंमें आ गया। देशके आन्तरिक मामलेका बाहर ले जानेके पीछे एक सोची-समझी रणनीति और नेटवर्कने काम किया। अब चूंकि इस नेटवर्कका खुलासा हो चुका है, ऐेसेमें कृषि कानूनोंकी आड़में जो कुछ भी देशविरोधी चल रहा है, वो निंदनीय है। विदेशी हस्तियों द्वारा किसान आन्दोलनको लेकर जो ट्विट किये गये थे, वह एक रणनीति और षड्ïयंत्रका हिस्सा थे। इन ट्विटका उद्देश्य देशकी छविको अंतरराष्ट्रीय मंचपर खराब करनेसे लेकर देशमें अशांति फैलाना था। अब इस षड्ïयंत्रके सारे चेहरे बेपर्दा हो रहे हैं। बंगलुरूकी जलवायु कार्यकर्ता दिशा रविका प्रसंग ऐसा ही है। दिल्ली पुलिसने राजद्रोह, आपराधिक साजिश और वैमनस्य फैलानेके बेहद गंभीर आरोपोंकी कानूनी धाराओंके तहत दिशाको गिरफ्तार किया है। उनके अन्य साथियोंमें मुंबईकी वकील निकिता जैकब और इंजीनियर शांतनुके खिलाफ  गैर-जमानती वारंट जारी किये गये हैं। एक और आरोपी पीटर फ्रेडरिक है, जिसके संबंध पाकिस्तानकी खुफिया एजेंसी आईएसआईके साथ बताये जा रहे हैं। पीटरपर महात्मा गांधीकी प्रतिमा तोडऩेका भी आरोप है। फिलहाल आरोप गणतंत्र दिवस, २६ जनवरीको दिल्लीमें हिंसा भड़काने और सामाजिक, धार्मिक टकरावके मद्देनजर हैं। फिलहाल अदालतसे कई आरोपियोंको अग्रिम जमानत मिल गयी है। लेकिन एक न एक दिन इन्हें पुलिस जांचके घेरेमें आना ही होगा।

मीडिया रिपोर्टके अनुसार टूलकिट मामलेमें दर्ज एफआईआरमें, सोशल मीडिया मॉनिटरिंगके दौरान ये पता चला कि प्रतिबंधित खालिस्तानी आतंकी संघटन ‘सिख फॉर जस्टिस’ किसान आन्दोलनकी गणतंत्र दिवस समारोहपर माहौल बिगाडऩेकी साजिश रची थी। सिख फॉर जस्टिसने २६ जनवरीको इंडिया गेटपर राजद्रोही झंडा फहरानेवालेको इनाम देनेकी घोषणा भी की थी। किसान आंदोलनकी आड़में यह संघटन लगातार सोशल मीडियाके जरिये आम जनताको देश विरोधी गतिविधियोंके लिए उकसा भी रहा था। संयुक्त राष्ट्रमें शिकायत लिखनेकी अपील कर रहा था, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तरपर देशकी छवि खराब हो। एफआईआरके मुताबिक ये भी देखा गया कि २६ जनवरीको हुई हिंसाके बाद भी सोशल मीडियापर फर्जी वीडियो और फोटोके जरिये उकसानेकी पूरी कोशिशें की जा रही थी। ४ फरवरीको सोशल मीडियाकी मॉनिटरिंगके दौरान पता चला कि गूगल डॉकका एक लिंक गलतीसे ट्विटरपर शेयर किया गया। इस टूलकिटमें हिंदुस्तानके खिलाफ एक बड़ी साजिश तैयार की गयी थी। टूलकिट मामलेमें दर्ज एफआईआरके मुताबिक, इस डॉक्यूमेंट (टूलकिट) में २६ जनवरीको पूरे देशमें लोगोंको भड़काकर फिजिकली एक्शनके और भारतीय दूतावासोंपर प्रदर्शन करनेकी बात भी लिखी हुई थी। इसमें २१ फरवरीसे २६ फरवरीके बीच लोगोंसे प्रोटेस्ट साइट्सपर जाकर अपने वीडियो और फोटो सोशल मीडियापर अपलोड करनेकी अपील भी की गयी थी। ताकि ज्यादासे ज्यादा लोग इस मुहिमसे जुड़ सकें।

मामलेके तूल पकड़ते ही दिशा रविकी सामाजिक-सार्वजनिक छविके मद्देनजर उनकी २१-२२ सालकी उम्रका प्रलाप अलापना भी एक लॉबी शुरू कर चुकी है। वर्तमान संदर्भमें २६ जनवरीके ही दिन लालकिलेकी प्राचीरपर धावा बोलकर ‘तिरंगाÓ के अतिरिक्त एक धर्म-विशेषका झंडा फहरानेवालेकी उम्र भी लगभग इतनी ही होगी। चूंकि उम्र मासूमियत बयां कर रही थी, लिहाजा देशद्रोहके आरोपी भी मासूम होंगे, यह एक कुतर्क है। पूरे प्रकरणमें यह बेहद संवेदनशील तथ्य है कि बीती ११ जनवरीको एक वर्चुअल बैठक हुई, जिसमें कनाडामें बसे खालिस्तानी चेहरा मो धालीवालके साथ-साथ दिशा रवि, ग्रेटा समेत करीब ७० लोगोंने शिरकत की थी। क्या जलवायु परिवर्तनपर विमर्श कर रहे थे? बैठकके निष्कर्षों और कथित साजिशके आरोप यहां चस्पा नहीं किये जा सकते, लेकिन इन मासूम पर्यावरण कार्यकर्ताओंको यह तो साबित करना पड़ेगा कि उनके खालिस्तान आन्दोलनसे कोई सरोकार नहीं हैं। धालीवालके साथ संपर्कोंपर भी न्यायिक सफाई देनी पड़ेगी। धालीवालका संघटन ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ बुनियादी तौरपर खालिस्तानी और प्रतिबंधित संघटन है। इसका संबंध ‘सिख्स फॉर जस्टिसÓ से है। वह भी भारत समेत कई देशोंमें प्रतिबंधित संघटन है। जिस टूलकिटकी चर्चा पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्गके ट्वीटसे शुरू हुई थी, उसे धालीवालने ही बनवाया था।

प्रश्न यह भी है कि दिशा रविको यूएपीएकी आशंका क्यों थी? यह आतंकवादसे जुड़ा कानून है। कमोबेश दिशा आतंकी गतिविधियोंमें संलिप्त नहीं थी, लेकिन खालिस्तानका उल्लेख जरूर हुआ है। दिशा रविने अदालतमें अपनी भूमिका स्वीकार की है, लेकिन महत्वपूर्ण यह भी है कि टूलकिटमें हिंसाका उल्लेख नहीं है। फिर भी भारतीय दूतावासों, औद्योगिक घरानों और मीडिया हाउसपर विरोध-प्रदर्शनों और घेरावकी योजनाके बुनियादी कारण क्या हैं? भारत-विरोधी दुष्प्रचार क्यों किया गया कि नरसंहार किये जा रहे हैं? २५ करोड़ किसान सड़कोंपर आन्दोलनरत हैं! टूलकिटमें ‘डिजिटल स्ट्राइक’ और ‘ट्विटर स्टॉर्म’ के मायने क्या हैं? जो ७८ पर्यावरणविद और अन्य भीड़ दिशा रविकी रिहाईके समर्थनमें सड़कोंपर हैं, उनसे इन सवालोंके जवाब जरूर पूछे जायं। दिशा दोषी है अथवा नहीं, यह कोई भीड़ या सियासी जमात नहीं, देशकी अदालत, साक्ष्योंके आधारपर, तय करेगी। दिशाको यह भी स्पष्ट करना होगा कि वह खालिस्तानके अलावा आईएसआईकी सांठगांठमें शामिल हैं या नहीं। २६ जनवरीको लालकिलेपर कुछ उपद्रवियोंका हमला भी आतंकी हमलेसे कम नहीं आंका जा सकता।

देशद्रोहवाले कानूनमें तो गिरफ्तारियां की गयी हैं। क्या टूलकिटकी योजना और दिशा-ग्रेटाकी बातचीत भी आतंकी साजिशके दायरेमें आती हैं? टूलकिट तो सामान्य डिजिटल दस्तावेज है। ऐसे सक्रिय कार्यकर्ता दुनियाभरमें ‘चैट’ करते रहते हैं। दिल्ली पुलिसने गूगल और जूम एपसे जानकारी मांगी है कि टूलकिटमें कौन-कौन शामिल था और उनकी बैठकोंमें क्या विमर्श किया गया था? यदि इन जांचोंका निष्कर्ष भी शून्य रहा, तो इन कानूनोंपर क्या टिप्पणी करेंगे? कनाडा तो दशकोंसे खालिस्तानका अड्डा रहा है। किसान आन्दोलनकी आड़में ये सब किया गया। धालीवालका आह्वान है कि कानून वापस लेने और किसान आन्दोलन समाप्त होनेके बावजूद आंदोलनको जारी रखा जाय, क्योंकि खालिस्तान अब भी सांसें ले रहा है। धालीवाल सरीखोंपर कानूनी काररवाईके लिए देश स्तरपर पहल की जानी चाहिए। वास्तवमें यह देशकी सुरक्षा, संप्रभुता, एकता और अखंडताका प्रश्न है।