आध्यात्मिकता और राजनीति दोनोंका ही मानवता एवं मानवके साथ गहरा संबंध है। राजनीतिका उद्देश्य सुशासन लाना और भौतिक एवं भावानात्मक सुविधाओंको जनतातक पहुंचाना है। वहीं आध्यात्मिकताका लक्ष्य नैतिकता एवं मानवीय मूल्योंको बढ़ाना है। किसी भी देशकी समृद्धि एवं विकासके लिए राजनीति एवं आध्यात्मिकताका एक साथ चलना अति आवश्यक है। सुशासन एवं अच्छे प्रजातंत्रके लिए आध्यात्मिकताका होना अनिवार्य है। केवल आध्यात्मिकता ही प्रतिबद्धता, दायित्व एवं आत्मविश्वासका आह्वान कर उन्हें मानवमें स्थापित कर सकती है। बिना आध्यात्मिकताके राजनीतिमें अनैतिकताका वातावरण बनता है और इस कारण भ्रष्टाचार, अपराध एवं अराजकताको बढ़ावा मिलता है। भारतीय आध्यात्मिकताने पूरे संसारको धर्मनिरपेक्षतासे अवगत करवाया है। यदि हम अपने प्राचीन इतिहासको देखें तो हम पायंगे कि आध्यात्मिकता भारतीय राजनीतिमें बहुत गहरी जड़ोंतक स्थित है। प्राचीन कालमें राजगुरु द्वारा राजाको सलाह दी जाती थी एवं उनका मार्ग प्रशस्त किया जाता था। जब आध्यामिकता एवं राजनीति एक दूसरेके साथ-साथ नहीं चलते तब हमें राजनीतिमें भ्रष्टाचार एवं भ्रष्ट नेता देखनेको मिलते हैं। आध्यात्मिक लोग मूल्योंपर आधारित जीवन जीते हैं जो कि सुशासनके लिए अति आवश्यक है। एक नेताका समदर्शी होना अति आवश्यक है ताकि वह प्रत्येक व्यक्तिके साथ समानताका व्यवहार कर सके। एक नेताका दूरदर्शी होना भी अति आवश्यक है, खुले विचारों एवं समाजके हितमें अपने सपनोंको साकार करते हुए वह मानवताकी भलाई कर सकता है। आजके समयकी आवश्यकता ऐसी राजनीति कार्य प्रणाली है जो कि पूर्वागृहोंसे मुक्त हो। आम सहमति केवल तभी उभर सकती है जब राजनेता धर्म, जाति एवं लिंगके आधारपर पूर्वागृहोंको छोड़कर आगे बढ़ें। पूर्वागृहकी भावनाका त्याग करनेके लिए राजनेतामें अपनेपनकी भावना एवं खुले विचारोंका होना अति आवश्यक है। आध्यात्मिकता लोगोंको ईमानदार एवं प्रतिबद्ध बनाती है जो कि किसी भी अपराध रहित समाजके लिए बेहद आवश्यक है। परन्तु आधिकारिक संरक्षणके बिना आध्यात्मिकताका विकसित होना बहुत मुश्किल है।-श्रीश्री रविशंकर