सम्पादकीय

जीवनका निर्माण


श्रीराम शर्मा 

विचारोंके आधारपर ही अनुभव परिपक्व होता है। उत्कृष्ट उत्तम विचार जीवनको ऊपर उठाते हैं। मनुष्यका जीवन उसके विचारोंका प्रतिबिंब है। किसी भी व्यक्तिके विचार जानकर उसके जीवनका नक्शा सहज ही मालूम किया जा सकता है। मनुष्यको कायर, वीर, स्वस्थ-अस्वस्थ, प्रसन्न-अप्रसन्न कुछ भी बनानेमें उसके विचारोंका महत्वपूर्ण हाथ होता है। तात्पर्य यह है कि अपने विचारोंके अनुरूप ही मनुष्यका जीवन बनता बिगड़ता है। ईसा मसीहने कहा था, मनुष्यके जैसे विचार होते हैं वैसा ही वह बन जाता है। संसारके समस्त विचारकोंने एक स्वरसे विचारोंकी शक्ति और उसके असाधारण महत्वको स्वीकार किया है। संक्षेपमें जीवनकी विभिन्न गतिविधियोंका संचालन करनेमें हमारे विचारोंका ही प्रमुख हाथ रहता है। हम जो कुछ भी करते हैं, विचारोंकी प्रेरणासे ही करते हैं। संसारमें दिखाई देनेवाली विभिन्नताएं, विचित्रताएं भी हमारे विचारोंका प्रतिबिंब ही हैं। संसार मनुष्यके विचारोंकी ही छाया है। किसीके लिए संसार स्वर्ग है तो किसीके लिए नरक। किसीके लिए संसार अशांति, क्लेश, पीड़ा आदिका आगार है तो किसीके लिए सुख-सुविधा संपन्न उपवन।  एक-सी परिस्थितियोंमें एक-सी सुख-सुविधाए समृद्धिमें युक्त दो व्यक्तियोंमें भी अपने विचारोंकी भिन्नताके कारण असाधारण अंतर पड़ जाता है। एक जीवनमें प्रतिक्षण सुख-सुविधा प्रसन्नता, खुशी, शांति, संतोषका अनुभव करता है तो दूसरा पीड़ा, शोक, क्लेशमय जीवन बिताता है। इतना ही नहीं, कई व्यक्ति कठिनाईका अभावग्रस्त जीवन बिताते हुए भी प्रसन्न रहते हैं तो कई समृद्ध होकर जीवनको नारकीय यंत्रणा समझते हैं। एक व्यक्ति अपनी परिस्थितियोंमें संतुष्ट रहकर जीवनके लिए भगवानको धन्यवाद देता है तो दूसरा अनेक सुख-सुविधाएं पाकर भी असंतुष्ट रहता है। दूसरोंको कोसता है, महज अपने विचारोंके ही कारण।