डा. अजय कुमार मिश्र
किसान बिलोंपर लगातार बढ़ते गतिरोधके मद्देनजर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनायी गयी कमेटीसे भी किसान संघटन सहमत नहीं हैं। मूल रूपसे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेशके किसान इस बिलका विरोध कर रहे हैं। पंजाबके किसान इस संघटनको लीड कर रहे हैं। अबतक ४० से अधिक किसानोंकी मौत भी हो चुकी है, जो न केवल अत्यंत दुखद है, बल्कि यह घटना इस बातपर भी सोचनेपर बल दे रही है कि आखिर विरोधके पीछे क्या कारण है। पंजाब और खासकर सिखोंके लिए संघीय व्यवस्था बहुत महत्वपूर्ण रही है। कई राजनीतिक पार्टियां और संघटन इस बातको समझानेमें सफल रहे हैं कि मोदी सिख समुदायके साथ तानाशाहकी तरह व्यवहार कर रहे हैं। जबकि वास्तविक सचाई यह है कि किसान बिल सिर्फ पंजाबके किसानोंके लिए नहीं है, बल्कि पूरे देशके किसानोंके लिए है। ज्यादातर सिख नहीं चाहते हैं कि उनपर कोई रौब जमाये, सिखोंकी इसी नब्जको पहचानते हुए भड़कानेवाले लोग सिखोंको यह भी स्मरण दिलानेका पूरा प्रयास कर रहे हैं कि सिखोंने लगातार तानाशाहीका विरोध किया है और वहीं भड़कानेवाले लोग मोदीको उसी जगह दिखानेकी कोशिश कर रहे हैं जहांपर चालीस साल पहले इंदिरा गांधीको खड़ा किया गया था। जबकि किसान बिलके तहमें जानेपर आप स्वयं समझ पायेंगे कि देशके लिए यह कितना जरूरी है। विश्व व्यापर संघटनमें सरकारके वादेकी पूर्तिके लिए भी यह जरूरी है। वास्तवमें ब्यूरोक्रेसी अहंकारकी पराकाष्ठा पार कर रही है और इसका दुष्परिणाम सरकार भुगत रही है। इससे पहले इतना बड़ा विरोध इस सरकारका कभी नहीं हुआ।
कई वर्षोंसे टूट रहा हिन्दू समाज आपसकी जोड़-तोड़की राजनीतिमें अपनी कई शाखाओंको सूखनेसे बचा नहीं पाया। जिस तरह दलितोंको हिन्दुओंसे तोडऩेमें कुछ लोग कामयाब हुए उसी तरह सिखोंकी उपेक्षा भी हमें बीतते समयके साथ आज बहुत भारी पड़ रही है। कांग्रेससे नफरत करनेवाला सिख समुदाय आज भाजपाकी मोदी सरकारको शत्रु बना बैठा है इसके पीछे कारण अज्ञानताके साथ कई नकारात्मक शक्तियोंका सहयोग भी है। इसमें कही चूक हो गयी और अन्य समुदायोंके बीच बैठे ठेकेदारोंने उन्हीं सिखोंको हिन्दुत्वकी बात करनेवालोंके खिलाफ भड़कानेमें कोई कसर नहीं छोड़ी है। ये भड़कानेवाले तत्व सिखोंको यह समझानेमें कामयाब होते दिखते है कि बीजेपी सिखोंकी अलग पहचानको माननेसे इनकार करती है और सिख गुरुओं खासकर गुरु गोविन्द सिंहको खुदसे जोड़ती है और उन्हें हिन्दू हस्ती कि तौरपर पेश करती है। सिख एक कर्मठ, कर्म प्रधान और खुलकर जीवनका आनन्द उठानेवाला समुदाय है उनका इस प्रकारके आन्दोलनोंसे क्या लेना-देना। साफ दिख रहा है कि उन्हें भड़काया गया है और भाजपाके हिंदुत्व शब्दमेंसे उन्हें काटकर अलग दिखनेका पूर्व नियोजित षडय़ंत्र भी रचा गया है। हालांकि प्रधान मंत्रीके गुरुद्वारेमें जानेके बाद कई बातोंपर विराम लगा है। यह साजिश राजनीतिक पार्टीके द्वारा बहुत पहले ही आजादीके बादसे ही शुरू कर दी गयी थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपाने इन सबको रोकनेमें काफी हदतक सफलता भी पायी है परन्तु अभीतक सिख समुदायके बीच उपजे अविश्वासको विश्वासमें परिवर्तित नहीं कर पायी है।
वर्तमानमें बहुत ही सीमित विकल्प है जिनमें सिखोंको दोबारा स्वयंसे जोड़ा जा सकता है। इसमें एक तो सभी गुरुद्वारोंमें मंदिरोंकी तरह आना-जाना एक सामान्य कार्यकलाप मानकर भाजपाके सभी नेताओंका दर्शन हेतु समय-समयपर आना-जाना हो। देशभरके प्राचीन गुरुद्वारोंको जीर्णोद्धार हेतु आर्थिक सहायता प्रदान किये जाय, लंगर आदिके कार्यक्रमोंके लिए भाजपाके नेता कार्यकर्ता आदि अपना पूर्ण सहयोग पूर्ण रूपसे समर्पित होकर दें। सरकारको चाहिए कि पंजाबके नेताओं, किसानोंसे लगातार संवाद करती रहे भले ही वह एकतरफा ही क्यों न हो। पाकिस्तानको भी अब चेता दिया जाय कि करतारपुर साहब गुरुद्वारेकी सुनियोजित रूपसे यदि वह देखभाल करनेमें असमर्थ है तो उसे भी भारतमें मिलानेमें देर नहीं की जायगी। सिख धर्म गुरुओंके त्याग और बलिदानोंको सबको बतानेके लिए पाठ्यक्रमोंमें पूरी जगह दी जाय और उनके बारेमें सबको बतानेके लिए व्यापक रूपसे प्रचार-प्रसार किये जाय। सिख समुदाय धर्मके साथ कर्म प्रधान भी रहा है और सरल निष्छल मनका यह समुदाय सदैव हिन्दुओंकी ढाल बनकर मुस्तैद रहा और जब उनको हमसे उपेक्षाका अहसास होता है तो उनका क्रोध स्वाभाविक प्रतीत होता है। आज चल रहे गतिरोधको समाप्त करनेमें कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है तो वह एकमात्र सिख समुदाय ही है। इनकी सरलताके भरपूर लाभ सारे देशद्रोही तत्व ले रहे हैं, जिनमें मुगलिस्तानका पुन: सपना देखनेवाले समुदाय, खालिस्तानकी मांग करनेवाले राजनीतिक दल और सदासे देशकी संस्कृति और सभ्यताका नाश करनेवाले पार्टी और तत्व शामिल हैं।
सरकारको अपनी तानाशाहकी छविको तोड़ते हुए हर हालमें हर स्तरपर विनम्रता दिखानी होगी क्योंकि सिख लगातार आगे बढ़ रहे हैं और मोदी सरकार मुख्य शत्रु बनी दिखाई दे रही है चिंता यह है कि सिखों और अब जाटोंका गठजोड़ जिसकी प्रबल सम्भावना दिख रही है कहीं नियंत्रणसे बाहर होकर सर्वनाश न कर दे जिसकी भरपाई हिन्दू समाजके साथ सम्पूर्ण भारत देशके लिए भी असंभव हो जाय। २६ जनवरीके दिन किसानोंके प्रदर्शनको रोकना भी एक बड़ी चुनौती है। कही ऐसा न हो कि कुछ उपद्रवी मौकेका लाभ उठाकर किसान संघटनोंको बदनाम कर दे। किसान संघटनोंको भी सतर्क रहनेकी जरूरत है। इस विवादको सिख समुदायके अलावा कोई समाप्त नहीं कर सकता और यह तभी संभव है जब उनकी बातोंको बिना किसी पक्षपातके सुना जाये और देशहितमें उन्हींसे इसका समाधान मांगा जाये। विश्वास करिये सरकार या देशका मस्तक सिख समुदाय कभी झुकने नहीं देगा, बशर्ते सरकार उनसे ही समाधानकी मांग करें।