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आम बजट में शहरी गरीबों के लिए मनरेगा जैसी योजना की उम्मीद


नई दिल्ली। शहरी क्षेत्रों में बढ़ती बेरोजगारी पर काबू पाने लिए शहरी गरीबों के रोजगार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों की तर्ज पर मनरेगा जैसी योजना की शुरुआत की जा सकती है। रोजगार सृजन को लेकर सरकार फिलहाल दबाव में है। राजनीतिक रूप से यह मुद्दा गंभीर होने लगा है। शहरी मनरेगा के आने से सरकारी खजाने पर भारी बोझ तो पड़ेगा, लेकिन राजनीतिक रूप यह योजना बूस्टर साबित हो सकता है। शहरी गरीब बेरोजगारों के जीवनयापन के लिए यह बड़ा साधन बन सकता है।

आगामी वित्त वर्ष 2022-23 के आम बजट में शहरी मनरेगा का पायलट प्रोजेक्ट लांच किया जा सकता है। शहरी गरीबों के रोजी रोटी के लिए सरकार कुछ नई योजना के आने की पूरी उम्मीद की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत चलाई जा रही योजना काफी लोकप्रिय है। उसी तरह शहरी क्षेत्रों के गरीबों के लिए एक निश्चित समयावधि के लिए न्यूनतम मजदूरी पर रोजगार की गारंटी वाली योजना शुरु की जा सकती है।

कोविड-19 के महासंकट के बाद देश के ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा जैसी योजना गरीबों के जीवनयापन का प्रमुख साधन बन गई है। कोविड के दौरान शहरों से पलायन कर गांवों में लौटे मजदूरों की बढ़ी संख्या की वजह से मनरेगा में बहुत अधिक लोगों ने रोजगार मांगा, जिसके उसका बजट बढ़ाना पड़ा। वित्त मंत्रालय में इस तरह की योजना की लागत का आकलन किया गया है।

सालभर पहले लोकसभा में पेश की गई श्रम मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में शहरी मनरेगा जैसी योजना लाने की सिफारिश की गई है। आगामी बजट की तैयारियों के दौरान हुए विचार-विमर्श में औद्योगिक संगठन सीआईआई ने सरकार के समक्ष ऐसी योजना लाने का आग्रह किया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के समक्ष इस आशय का एक ज्ञापन भी सौंपा गया।