सम्पादकीय

इमरानकी कुटिलता


पाकिस्तानके प्रधान मंत्री इमरान खानने पाकिस्तान दिवसके अवसरपर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीकी ओरसे भेजे गये शुभकामना-पत्रका जवाब दे दिया है। इमरान खानके जवाबी पत्रकी भाषा और भावनाके निहितार्थको समझना भी जरूरी है। उन्होंने प्रधान मंत्री मोदीको शुक्रिया अदा करते हुए कहा है कि दोनों देशोंके बीच लम्बित मुद्दोंका हल निकालनेको लेकर सार्थक और नतीजा देनेवाली वार्ताके लिए अनुकूल माहौल बनाना जरूरी है। पाकिस्तानके लोग भी भारत सहित अपने सभी पड़ोसी देशोंके साथ शान्तिपूर्ण और सहयोगपूर्ण रिश्ते चाहते हैं। हम इस बातको लेकर निश्चिन्त हैं कि दक्षिण एशियामें स्थायी शान्ति और स्थिरता भारत और पाकिस्तानके बीच सभी मुद्दों, जिनमें खास तौरसे जम्मू-कश्मीरका विवाद शामिल है, के सुलझ जानेसे जुड़ी है। प्रधान मंत्री मोदीने २२ मार्चको इमरान खानको प्रेषित पत्रमें लिखा था कि एक पड़ोसी देशके तौरपर भारत पाकिस्तानके लोगोंके साथ खुशगवार रिश्ते चाहता है। इसे सम्भव बनानेके लिए आतंकवाद और शत्रुतासे मुक्त एवं विश्वास और भरोसेसे भरे माहौलकी जरूरत है। प्रधान मंत्री मोदीका यह पत्र ऐसे समयमें लिखा गया है जब दोनों देशोंके बीच लाइन आफ कण्ट्रोल (एलओसी) पर नये सिरेसे संघर्षविराम लागू किया गया है। प्रधान मंत्री मोदी और इमरान खानके पत्रोंमें कुछ बुनियादी अन्तर है। मोदीके पत्रमें जहां सद्ïभावका पक्ष मजबूत है वहीं इमरान खानके पत्रमें कुटिलताका भाव भरा हुआ है। उन्होंने अनावश्यक रूपसे कश्मीरका राग छेड़ा है। जहांतक दोनों देशोंके बीच वार्ताके लिए अनुकूल माहौल बनानेकी बात है, यह जरूरी तो है लेकिन इमरान खान किस मुंहसे ऐसी बात कर रहे हैं। भारतके विरुद्ध आतंकी गतिविधियोंको प्रोत्साहित कर इमरानको ऐसी बात करनेका कोई नैतिक अधिकार नहीं है। सीमापारसे निरन्तर आतंकी घुसपैठ और हमलेकी कोशिशें होती रहती हैं जिनका भारतके सुरक्षा बल मुंहतोड़ जवाब देते रहते हैं। पाकिस्तानने आतंकवादको अपनी शासकीय नीतिका हिस्सा बनाया है, इसे पूरी दुनिया अच्छी तरह जानती है। पाकिस्तानके प्रधान मंत्री यदि वास्तवमें भारतसे वार्ता करनेको इच्छुक है तो उन्हें सबसे पहले आतंकी हरकतोंको पूरी तरहसे बन्द करना होगा। भारत सद्ïभावके साथ पड़ोसी धर्मका निवर्हन करता है, जबकि पाकिस्तान इससे कोसों दूर है। इसलिए पाकिस्तान अपनी नीति और नीयतको सुधारे तभी अनुकूल माहौल बन पायगा।

‘सनातन’ का सम्मान

डाक्टर शरण कुमार लिंबालेके मराठी उपान्यास ‘सनातनÓ को सर्वोच्च ‘सरस्वती सम्मानÓ से सम्मानित किया जाना भारतीय इतिहासकारोंके लिए एक सन्देश है। सन्देश यह है कि भारतीय इतिहास लेखनका जो कार्य अंग्रेजोंके नेतृत्वमें प्रारम्भ किया गया था और वैज्ञानिक, वस्तुपरक शोधके नामपर जिसे भारतीय इतिहासकारोंने अपनाया, वह अनेक स्थानोंपर पूर्वाग्रहसे प्रेरित, तथ्योंके अज्ञान अथवा जानबूझकर की गयी उपेक्षापर आधारित है, जिसके कारण भारतीय इतिहासमें अनेक विसंगतियां और भ्रांतियां उत्पन्न हो गयी हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। इन्हें दूर करनेकी आवश्यकता काफी अरसेसे रही है। इसके लिए मोरेश्वर नीलकण्ठ पिंगलेने १९७३ में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना बनायी थी जिसका उद्देश्य सही तथ्योंको लोगोंके सामने लाकर उसमें विद्यमान विसंगतियां दूर करना रहा है। ऐसेमें डाक्टर शरण कुमार लिंबालेने अपने मराठी उपन्यास ‘सनातनÓ में मुगल एवं ब्रिटिश कालखण्डके इतिहासको नये रूपमें प्रस्तुत कर उल्लेखनीय कार्य किया है। मुगल और ब्रिटिश कालमें दलित और आदिवासियोंका जो शोषण हुआ और स्वतन्त्रतासंग्राममें जिन दलितों और आदिवासियोंने भाग लिया, उसका उल्लेख भी नहीं किया गया था। डाक्टर लिंबालेने ‘सनातनÓ उपन्यासमें नकारे गये इतिहासको ब्योरेवार प्रस्तुत कर उनके योगदानको इतिहासमें दर्ज किया है। इतिहासका लोगोंपर सीधा असर होता है, इसलिए इतिहास तथ्यपरक, निष्पक्ष तथ्योंपर आधारित और नवीनतम पुरातात्विक खोजोंके आधारपर होना चाहिए। इसमें पूर्वाग्रहका कोई स्थान नहीं होना चाहिए जिससे नयी पीढिय़ोंको सही इतिहासकी जानकारी हो सके। ऐसेमें डाक्टर लिंबालेका नवीनतम शोध लोगोंके लिए प्रेरणादायक है। सही इतिहास लोगोंतक पहुंचे इसके लिए विशेष कार्य किये जानेकी जरूरत है। सरकारको भी इस ओर इतिहासकारोंको पे्ररित करनेके लिए विशेष योजना बनानी चाहिए जिससे इतिहास नये रूपमें लोगोंको प्रेरित करनेवाला हो।