रामानुयायी मंजू
राजधानी दिल्ली स्थित इसरायली दूतावासके निकट हुए बम विस्फोटसे भारतके अंदर पुन: आतंककी आहट महसूस होने लगी है। २९ जनवरीको दूतावाससे कुछ दूरीपर स्थित कार पार्किंगके पास एक धमाकेदार विस्फोट हुआ। इस कारण वहां खड़ी अनेक कारें क्षतिग्रस्त हो गयीं। राष्ट्रका सौभाग्य था जो इस विस्फोटमें किसीकी जान नहीं गयी। इस अप्रत्याशित और अपनी तरहके अनोखे विस्फोटको अंजाम देनेवालोंकी खोज-खबर करनेके लिए भारतीय जांच एजेंसियां ही नहीं, अपितु इसरायलकी मोसाद भी सक्रिय हो चुकी है। एजेंसियोंको कार पार्किंगके पास एक फूलदानमें विस्फोटक जुड़े साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। विस्फोटकके रासायनिक मिश्रणकी पहचान करनेके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्डका विस्फोटक विशेषज्ञ दल भी जांचमें जुट हुआ है। हालांकि इसरायलने अपने गुप्तचरों द्वारा एकत्रित प्रामाणिक जानकारी एवं तथ्योंके आधारपर इस विस्फोटक हमलेको आतंकी हमला घोषित किया है, परन्तु साथ ही यह वक्तव्य भी दिया है कि उसे हमलेकी जांच करनेवाली भारतीय एजेंसियों और भारतपर पूरा भरोसा है कि वह अपने जांच दायित्वोंको ढंगसे निभायेंगे। यह विस्फोट वृहद सुरक्षा क्षेत्र लुटियनमें जोनमें हुआ है। गणतंत्र दिवसके आयोजनको देखते हुए भारत सरकार द्वारा इस संपूर्ण क्षेत्रमें सुरक्षाकी ठोस व्यवस्था की गयी थी। ऐसेमें इसरायली दूतावाससे केवल १५० मीटर दूर धमाका होना सुरक्षात्मक दृष्टिसे अनुचित ही नहीं आपत्तिजनक भी है। जिस समय विस्फोट हुआ उस समय घटनास्थलसे दो किलोमीटर दूर विजय चौकपर बीटिंग रिट्रीट आयोजन चल रहा था। इस आायोजनमें राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री सहित अनेक अति विशिष्ट अतिथिगण विराजमान थे। इस संयोगको देखते हुए भी माना जा रहा है कि राजधानीकी सुरक्षा व्यवस्थामें ढील बरती गयी है। इस घटनाके बाद भारत सरकारने सभी महत्वपूर्ण सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थानोंकी सुरक्षा बढ़ा दी है। सरकारके निर्देशपर केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षाबलने पूरे भारतमें एयरपोर्ट, परमाणु प्रतिष्ठानों, सरकारी भवनों एवं अन्य संवेदनशील इकाइयोंकी सुरक्षा व्यवस्था पहलेसे ज्यादा कर दी है। भारतमें नियुक्त इसरायली राजदूत रॉन मलकाके अनुसार यह निश्चित रूपमें एक आतंकी हमला है। लेकिन वह इसके होनेको लेकर आश्चर्यचकित नहीं हैं, क्योंकि गुप्तचरकर्मियोंसे आतंकी हमलेसे संबंधित जानकारी मिलनेके बाद पिछले कई सप्ताहोंसे सतर्कता और सुरक्षाका बहुत ध्यान रखा गया था। राजदूतके अनुसार इस घटनाकी जांच सभी पहलुओंको ध्यानमें रखकर की जा रही है, जिससे हमारे राजनयिकोंपर २०१२ में दिल्लीमें हुए हमले और विश्वमें हुए अन्य हमलोंका तार किसी न किसी रूपमें अवश्य जुड़ा हुआ है। उल्लेखनीय है कि १३ फरवरी २०१२ को दिल्लीमें इसरायली राजनयिककी कारमें एक मोटरसाइकिलवालेने चलते-चलते चुंबकीय बम चिपका दिया था। इस बम धमाकेमें राजनियककी पत्नी घायल हुई थीं। जांचमें पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियोंको हमलेके पीछे ईरानका हाथ होनेके साक्ष्य मिले थे। दूतावासके निकट हुआ विस्फोट आईईडी-विस्फोट माना जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि २९ जनवरीको भारत-इसरायलके बीच २९ वर्ष पूर्व १९९२ में कूटनीतिक संबंध आरंभ हुए थे। २९ जनवरीको इन कूटनीतिक संबंधोंकी २९वीं वर्षगांठ थी। ईरान और इसरायलकी शत्रुताको ध्यानमें रखते हुए संदिग्ध हमलावार ईरानसे जुड़े हुए ही प्रतीत होते हैं। इस बीच दो आतंकी गिरोहोंने पत्रों और सोशल मीडिया मंचोंके माध्यमसे स्वीकार किया है कि इसरायली दूतावासके बाहर उन्होंने ही धमाका किया है। इन गिरोहोंमेंसे एकका नाम जैश उल हिंदके रूपमें सामने आया है। दूसरा गिरोह अनाम है, जिसने अपने पत्रमें लिखा है कि यह तो सिर्फ ट्रेलर है। पत्रमें दो ईरानियोंकी हत्याका जिक्र किया गया है। पत्रमें लिखा था कि ईरानी सैन्य कमांडर कासिम सुलेमानी और परमाणु वैज्ञानिक आर्देशिरकी हत्याका बदला लेनेके रूपमें धमाका किया गया है। ईरान सरकार हमेशासे उक्त दोनों हत्याओंके लिए इसरायलपर ही दोषारोपण करती रही है। लेकिन जिस प्रकार भारत सरकार पहले भी और आज भी ईरानकी अमेरिका और इसरायलके साथ चल रही शत्रुताके संबंधमें तटस्थ बनी रही, उस भारतीय दिशाको देखते हुए ईरान इसरायलसे शत्रुता निभानेके लिए भारतमें इसरायली दूतावासको माध्यम क्यों बना रहा है। यह प्रश्न जितना इसरायलके लिए महत्वपूर्ण है, उतना ही भारतके लिए भी होना चाहिए। आखिर भारत किन्हीं दो राष्ट्रोंके शत्रुतापूर्ण टकरावको अपनी राजधानीमें क्यों घटने देगा। इन विचारोंके आलोकमें भारतीय कूटनीतिमें ईरानके प्रति संदिग्धता बढऩा स्वाभाविक है। यदि ईरानकी मंशा अपने विशिष्ट व्यक्तियोंकी हत्याके कथित आरोपी इसरायलसे बदला लेनेके साथ भारत-इसरायल मित्रतासे चिढ़कर भारतको भी चेताने की है तो अब भारतको ईरानके प्रति सचेत हो जाना चाहिए। हमें ईरानके संबंधमें अपनी राजनीति एवं कूटनीति बदलनेपर जोर देना चाहिए। अमेरिका और ईरानकी तनातनीके बीच भारत कभी नहीं पड़ा था। इसरायल और ईरानकी शत्रुताके प्रति भी भारत तटस्थ ही बना रहा था। ऐसेमें ईरान द्वारा इसरायलके साथ दुश्मनी निकालनेके लिए भारतकी भूमिका चयन करना, इसरायलके लिए कम परन्तु भारतके लिए अधिक चिंतनीय है। बीते साढ़े छह वर्षोंमें भारत सरकारने अपनी विदेश और सैन्य नीतियोंको ही सर्वाधिक कारगर एवं उपयोगी बनाया है।
इस दिशामें भारतका लोहा दुनिया भी मान रही है। इन दो नीतियोंके बलपर ही पाकिस्तान और अन्य देशों द्वारा प्रायोजित आतंकी राजधानी दिल्ली सहित भारतके अन्य राज्यों और उनके महानगरोंमें आतंकी घटनाओंको अंजाम नहीं दे पाये थे। हालांकि जम्मू-कश्मीरमें आतंकजन्य गतिविधियां न्यूनाधिक मात्रामें अब भी हो ही रही हैं। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, केरल सहित अनेक राज्योंमें विस्फोटकोंके साथ आतंकियोंकी धरपकड़ भी अवश्य हुई है परंतु जांच एजेंसियोंकी सक्रियता एवं सतर्कताके चलते वह अपने मंसूबे पूरे नहीं कर पाये थे। इतनी गहन एवं व्यापक सुरक्षा चौकसियोंके बाद भी गणतंत्र दिवसकी बीटिंग रिट्रीट सेरेमनीके दौरान इसरायली दूतावासके पास बम धमाका हो जाना भविष्यके लिए संकेत है कि भारतको आतंकी गतिविधियोंपर नियंत्रण रखनेके लिए पुन:-पुन: अतिसक्रियता और सतर्कता बरतनी होगी। इसरायली दूतावासके पास हुए धमाकेको ध्यानमें रखते हुए भारत सरकारके सामने यह एक गंभीर चुनौती है कि वह अपनी विदेश एवं सैन्य नीतियों-कूटनीतियोंके प्रयाससे भारतके अन्दर आतंकवादियों एवं आतंकी घटनाओंपर नियंत्रण बनाये रखे। भारत सरकार बीते साढ़े-छह वर्षोंकी अपनी इस उपलब्धिको यूं ही व्यर्थ सिद्ध नहीं कर सकती।