सम्पादकीय

आत्मनिर्भर भारतका बजट


ललित गर्ग

चालू वित्त वर्षका बजट भारतकी अर्थव्यवस्थाके उन्नयन एवं उम्मीदोंको आकार देनेकी दृष्टिसे मीलका पत्थर साबित होगा। इससे समाजके भी वर्गोंका सर्वांगीण एवं संतुलित विकास सुनिश्चित होगा। स्वास्थ्य क्षेत्रपर केन्द्रित इस बजटसे भले ही करदाताओंके हाथमें मायूसी लगी हो, टैक्स स्लैबमें किसी तरहका बदलाव नहीं हुआ हो, लेकिन इससे देशकी अर्थव्यवस्थाका जो नक्शा सामने आया है वह इस मायनेमें उम्मीदकी छांव देनेवाला है। सकल विकास वृद्धि दरके मोर्चेपर भारत चालू वित्तवर्षकी प्रथम तिमाही अप्रैलसे जूनतक वृद्धि दर घट कर न्यूनतम नकारात्मक क्षेत्रमें २४ प्रतिशततक पहुंच गयी। भारतकी तेज गतिसे आगे बढऩेकी रफ्तार पकड़े अर्थव्यवस्थाके लिए यह बहुत बड़ा झटका था, इस झटकेसे उभरने एवं भारतकी अर्थव्यवस्थाको तीव्र गति देनेकी दृष्टिसे यह बजट कारगर साबित होगा, जिसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम देखनेको मिलेंगे, रोजगारके नये अवसर सामने आयेंगे, उत्पाद एवं विकासको तीव्र गति मिलेगी। कोरोना महामारीके कारण चालू वित्त वर्षमें आर्थिक क्षेत्रमें काफी उतार-चढ़ाव देखनेको मिले, लेकिन इन सब स्थितियोंके बावजूद प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी एवं वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इस बजटके माध्यमसे देशको स्थिरताकी तरफ ले जाते दिखायी पड़ रहे हैं। अनेक विचारधाराओंवाले वित्त मंत्रियोंने विगतमें कई बजट प्रस्तुत किये। परन्तु हर बजट लोगोंकी मुसीबतें बढ़ाकर ही जाता रहा है। लेकिन इस बार बजटने कोरोना महासंकटसे बिगड़ी अर्थव्यवस्थामें नयी परम्पराके साथ राहतकी सांसें दी है तो नया भारत-सशक्त भारतके निर्माणका संकल्प भी व्यक्त किया है। इसमें कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचागत क्षेत्रोंके विकासके साथ किसानों, आदिवासियों, गांवों और गरीबोंको ज्यादा तवज्जो दी गयी है। इस बारके बजटसे हर किसीने काफी उम्मीदें लगा रखी थीं और उन उम्मीदोंपर यह बजट खरा उतरा है। हर बारकी तरह इस बार भी शहरोंके मध्यमवर्ग एवं नौकरीपेशा लोगोंको अवश्य निराशा हुई है। इस बार आम बजटको लेकर उत्सुकता इसलिए और अधिक थी, क्योंकि यह कोरोना महासंकट, पड़ोसी देशोंसे युद्धकी संभावनाओं, निस्तेज हुए व्यापार, रोजगार, उद्यमकी स्थितियोंके बीच प्रस्तुत हुआ है। इस बजटको नया भारत निर्मित करनेकी दिशामें लोक-कल्याणकारी बजट कह सकते हैं। आम बजट न केवल आम आदमीके सपनेको साकार करने, आमजनकी आकांक्षाओंको आकार देने और देशवासियोंकी आशाओंको पूर्ण करनेवाला है, बल्कि यह देशको समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र बनानेकी दिशामें उठाया गया महत्वपूर्ण एवं दूरगामी सोचसे जुड़ा कदम है। बजटके सभी प्रावधानों एवं प्रस्तावोंमें जहां हर हाथको कामका संकल्प साकार होता हुआ दिखाई दे रहा है, वहीं सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वासका प्रभाव भी स्पष्ट रूपसे उजागर हो रहा है।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमणने आशाके अनुरूप ही बजटका फोकस किसानों, स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास और ग्रामीण क्षेत्रपर रखा है। यह आदर्श बजट है। मोदी सरकारकी ओरसे आत्मनिर्भर भारत पैकेजके अन्तर्गत २७.१ लाख करोड़ रुपये कई योजनाओंको कोरोना कालमें देशके सामने लाया गया, ताकि अर्थव्यवस्थाकी रफ्तारको आगे बढ़ाया जा सके। साल २०२१ ऐतिहासिक साल होने जा रहा है, जिसपर देश एवं दुनियाकी नजरें लगी है। मुश्किलके इस वक्तमें भी मोदी सरकारका फोकस किसानोंकी आय दोगुनी करने, विकासकी रफ्तारको बढ़ाने और आम लोगोंको सहायता पहुंचानेपर है। स्वच्छ भारत मिशनको आगे बढ़ानेका ऐलान भी किया गया है, जिसके तहत शहरोंमें अमृत योजनाको आगे बढ़ाया जायगा, इसके लिए २,८७,००० करोड़ रुपये जारी किये गये। कोरोना वैक्सीनके लिए ३५ हजार करोड़ रुपयेका ऐलान किया गया। देशमें सात टेक्स्टाइल पार्क बनाये जायंगे, ताकि इस क्षेत्रमें भारत एक्सपोर्ट करनेवाला देश बने। तमिलनाडुमें नेशनल हाइवे प्रोजेक्ट (१.०३ लाख करोड़), इसीमें इकॉनोमिक कॉरिडोर बनाये जायंगे। केरलमें भी ६५ हजार करोड़ रुपयेके नेशनल हाइवे बनाये जायंगे, मुंबई-कन्याकुमारी इकॉनोमिक कॉरिडोरका ऐलान किया गया है। पश्चिम बंगालमें भी कोलकाता-सिलीगुड़ीके लिए भी नेशनल हाइवे प्रोजेक्टका ऐलान किया गया है। एनआरआई लोगोंको टैक्स भरनेमें काफी मुश्किलें होती थीं, लेकिन अब इस बार उन्हें डबल टैक्स सिस्टमसे छूट दी गयी है। स्टार्ट अपको जो टैक्स देनेमें शुरुआती छूट दी गयी थी, उसे अब ३१ मार्च, २०२२ तक बढ़ा दिया गया है। अक्सर बजटमें राजनीति, वोटनीति तथा अपनी एवं अपनी सरकारकी छवि-वृद्धि करनेके प्रयास ही अधिक दिखाई देते हैं और ऐसा इस बार भी हुआ है। यह बजट वर्ष २०२१ के पश्चिम बंगाल एवं अन्य चुनावोंको ध्यानमें रखते हुए बना है और इसका लाभ सत्ताधारी पार्टीको मिलेगा, इसके कोई संदेह नहीं है। लेकिन इस बजटमें ऐसे प्रयत्न भी हुए हैं जो किसानों, ग्रामीण एवं गरीब तबकेके जीवन स्तरको ऊंचा उठायेंगे। गरीब तबके और ग्रामीण आबादीकी बढ़ती बेचैनीको दूर करनेकी कोशिश इसमें स्पष्ट दिखाई देती है जो इस बजटको सकारात्मकता प्रदान करती है। इस बजटमें किसानोंकी बढ़ती परेशानियोंको दूर करनेके भी सार्थक प्रयत्न हुए हैं, जिसे मेहरबानी नहीं कहा जाना चाहिए और किसान आन्दोलनसे जोड़कर भी नहीं देखा जाना चाहिए।

खेती और किसानोंकी दशा सुधारना सरकारकी प्राथमिकतामें होना ही चाहिए, क्योंकि हमारा देश किसान एवं ग्रामीण आबादीकी आर्थिक सुदृढ़ता और उनकी क्रय शक्ति बढऩेसे ही आर्थिक महाशक्ति बन सकेगा और तभी एक आदर्श एवं संतुलित अर्थव्यवस्थाका पहिया सही तरहसे घूम सकेगा। यह अच्छा हुआ कि सरकारने यह समझा कि किसानोंको उनकी लागतसे कहीं अधिक मूल्य मिलना ही चाहिए। यह भी समयकी मांग थी कि ग्रामीण इलाकोंके ढांचेपर विशेष ध्यान दिया जाय। ग्रामीण अर्थव्यवस्था संवारनेकी दिशामें इस बजटको मीलका पत्थर कहा जा सकता हैं। इस बजटमें जो नयी दिशाएं उद्ïघाटित हुई हैं। देशमें डिजिटल व्यवस्थाओंको सशक्त एवं प्रभावी बनानेका भी सरकारने संकल्प व्यक्त किया है। स्वास्थ्य सेवाओंको दुरस्त, प्रभावी एवं विकसित करनेपर बजटमें विशेष प्रावधान किये गये हैं, ताकि भविष्यमें कोरोना वायरस जैसी अन्य महामारियोंसे हम जनरक्षा कर सकेंगे। दरअसल सरकारी तंत्रको ठोस नतीजे देनेवाले सिस्टममें तब्दील करके ही वे सभी वादे पूरे हो सकते हैं जो विभिन्न क्षेत्रोंमें सुधारको लेकर किये गये हैं। लेकिन इस बजटको कसनेकी बुनियादी कसौटी भारतका विकास ही है। अपना घर, स्टार्टअप, मेक इन इंडिया, महिला एवं वृद्धोंको राहतकी दृष्टिसे भी यह बजट उल्लेखनीय है। बजट एक तरहसे चुनौतियोंके बीच संतुलन साधनेकी कला है।