नई दिल्ली। आश्चर्यजनक रूप से इस वर्ष उत्तर भारत के दो राज्यों (पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश) में पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं। लेकिन चार राज्यों (दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश) में इन घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है। अलबत्ता, कुल मिलाकर पराली जलाने के मामलों में पहले की तुलना में कमी आई है।
पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का असर दिख रहा है। इस साल उत्तर भारत के कुछ राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है। हालांकि कुछ राज्यों में अभी भी पराली जलाने के मामले बढ़े हैं। इस लेख में हम पराली जलाने की समस्या इसके कारणों और सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर चर्चा करेंगे।
वहीं, पिछले साल के मुकाबले इस बार पराली जलाने के मामले 40 फीसदी कम रहे हैं। पंजाब में सबसे ज्यादा लगभग 70 फीसदी की कमी आई है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों पराली जलाने के मामलों में पहले की तुलना में बढ़ोतरी भी दर्ज की गई है।
एक बड़े हिस्से में फैल जाता है धुआं
धान की फसल के बाद खेत को गेंहू की फसल के लिए जल्दी तैयार करने के चलते खेतों में ही धान की फसल के बचे-खुचे अवशेष को जलाने की प्रवृत्ति रही है। हजारों जगहों पर लगने वाली इस आग के चलते उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में धुआं फैल जाता है और लोगों को भारी प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। इसलिए हर साल ही इस पर रोक लगाने के लिए तमाम कवायद की जा रही है।