वाराणसी

कड़ाके की ठंड में घाटों पर उमड़ी आस्था


स्नान-दान कर पुण्य की होड़, दर्शन-पूजन
भगवान भास्कर के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ उनके उत्तरायण होने के पर्व मकर संक्रांति की गुरुवार को छटा बिखरी रही। कड़कड़ाती ठंड और गलन के बावजूद सुरसरि के तट पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा और लोगों ने पुण्य की डुबकी लगाई। भोर से दूसरे प्रहर तक यह सिलसिला देखने को मिला और भक्तों के हौसले के आगे ठंड भी कमजोर साबित हुई। हालांकि शीतलहर और गलन को देखते को हुए घाटों पर अलाव, चाय और शुद्घ पेयजल की व्यवस्था भी रही। इससे स्नानार्थियों को काफी सहूलियत भी मिली। स्नान के बाद श्री काशी विश्वनाथ, माता अन्नपूर्णा सहित अन्य मंदिरों में भक्तों का देर तक दर्शन-पूजन चला और उन्होंने खिचड़ी, फल, सब्जियां, तिल-तिलकुट, द्रव्य और वस्त्र आदी का दान देकर पुण्य भी कमाया।
गंगा स्नान के लिये भोर में ही घाटों पर भीड़ जुट गई थी। इसको देखते हुए भरपूर प्रकाश और सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। भीड़ को देखते हुए ही यातायात प्रतिबंध भी लगाया गया था और अधिकारी भी डटे हुए थे। घना कोहरा और गलन का सितम बना हुआ था। इस बीच स्नानार्थियों के स्नान का सिलसिला शुरू हुआ तो गंगा तट पर अनोखी छटा दिखी। गंगा स्नान के लिये वाराणसी के अलावा विभिन्न राज्यों और जनपदों से भी लोग आये। स्नान शुरू हुआ तो यह अनवरत चलता रहा। दशाश्वमेध, शीतला घाट, डाक्टर राजेंद्र प्रसाद घाट, मानमंदिर, राणामहल के अलावा राजघाट से अस्सी घाट तक स्नानार्थियों से पटे हुए थे। दिन में 12 बजे तक घाटों पर यही दृश्य देखने को मिला। मकर संक्रांति के कारण बाजार भी ज्यादातर बंद रहे और यही वजह है कि लोग परिवार के साथ घाटों पर स्नान के लिये पहुंचे। इसके बाद लोगों ने गरीबों और असहायों के बीच अन्न, खिचड़ी, सब्जियां, फल, तिलकुट, वस्त्र, गर्म कपड़े, द्रव्य का वितरण किया और पुण्य कमाया। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर और अन्नपूर्णा मंदिर में सुबह आठ बजे के बाद भक्तों की कतार लग गई और दर्शन-पूजन का क्रम दूसरे प्रहर तक अनवरत चलता रहा। इसके अलावा बड़ा गणेश, मृत्युंजय महादेव, कालभैरव, संकठा देवी, दुर्गा देवी, संकटमोचन सहित अन्य मंदिरों में भी भक्तों की भीड़ लगी हुई थी। स्नानार्थियों की भीड़ और रूट डायवर्ट होने के कारण घाटों के आसपास की गलियों और सड़कों पर जाम की स्थिति रही। इसके कारण स्थानीय लोगों और दूकानदारों को दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा।