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कनाडा में एक और आवासीय स्कूल में मिली कब्रगाह, 600 से अधिक बच्चों के शव दफन मिलने से दहशत


  • पिछले महीने कनाडा के दशकों पुराने स्कूल परिसर में 215 बच्चों के शव दफन पाए गए थे। अब एक और ऐसा ही मामला सामने आया है जिसमे एक आवासीय स्कूल में 600 से अधिक कब्र मिली हैं। कनाडा के मूल निवासी नेताओं के समूहों ने बृहस्पतिवार को बताया कि जांचकर्ताओं को उनके समुदाय के बच्चों के लिए पूर्व में बने एक स्कूल में ये कब्रगाह खोजी है। इस खबर के बार पूरे प्रान्त में दशषट के साथ शोक का माहौल है।

ये शव ‘मैरिएवल इंडियन रेजीडेंशियल स्कूल’ से मिले, जो 1899 से 1997 तक चालू था जहां सस्केचेवान की राजधानी रेजिना से 135 किलोमीटर दूर काउसेस फर्स्ट नेशन स्थित है। काउसेस कनाडा का एक मूल निवासी समुदाय है। काउसेस के प्रमुख कैडमस डेलोर्म ने बताया कि जमीन के अंदर की वस्तुओं का पता लगाने वाले रडार से मालूम चला है कि इलाके में कम से कम 600 शव दफन किए गए। रडार के संचालकों ने बताया कि इसके नतीजों में 10 प्रतिशत का अंतर हो सकता है।

डेलोर्म ने कहा, ”हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जब हम आपको पूरी बात बताए तो वास्तविक संख्या से ज्यादा संख्या दिखाने की कोशिश न करें। मैं कहना चाहूंगा कि 600 से ज्यादा शव होने की आशंका है।” उन्होंने बताया कि तलाश चल रही है और आने वाले हफ्तों में संख्याओं की पुष्टि की जाएगी। डेलोर्म ने बताया कि एक वक्त में कब्रों पर नाम लिखे गए थे लेकिन इस स्कूल का संचालन करने वाले रोमन कैथोलिक गिरजाघर ने इन्हें हटा दिया।

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने टि्वटर पर कहा कि वह इस ताजा जानकारी से ”बहुत ज्यादा दुखी” हैं। उन्होंने कहा, ”पूर्व मैरिएवल रेजीडेंशियल स्कूल में मूल निवासी समुदाय के बच्चों को दफन करने का पता चलने के बाद काउसेस फर्स्ट नेशन के लिए मेरा दिल बहुत दुखी है।”

सस्केचेवान के प्रमुख स्कॉट मोए ने कहा कि इन कब्रों का पता चलने पर पूरा प्रांत शोकाकुल है। रेजिना के आर्कबिशप डोन बोलेन ने कहा कि दो साल पहले उन्होंने ”पूर्व में गिरजाघर के नेताओं की नाकामियों और पापों” के लिए काउसेस के लोगों से माफी मांगी थी। फ्लोरेंस स्पारवियर (80) ने कहा कि उन्होंने मैरिएवल इंडियन रेजीडेंशियल स्कूल में पढ़ाई की थी। उन्होंने कहा, ”नन का रवैया हमारे प्रति बहुत स्वार्थी था। हमें यह सीखना पड़ा कि रोमन कैथोलिक कैसे हुआ जाता है। स्कूल में नन हमारे लोगों की बहुत आलोचना करती थीं और इसका दर्द पीढ़ियों बाद भी दिखता है।”