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महिला रेसलर सीमा बिसला ने हासिल किया ओलंपिक कोटा


  • रोहतक। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी पहलवान सीमा बिसला ने बड़ा मुकाम हासिल कर दिया है। टोक्यो ओलंपिक में देश को कुश्ती में आठवां कोटा दिलाने वाली सीमा बिसला की इस सफलता में बड़ी बहन का त्याग और पिता का आशीर्वाद रहा है। कैंसर पीड़ित पिता को जब उसके ओलंपिक में क्वालिफाइ करने की सूचना मिली तो शरीर में नई ऊर्जा का संचार हो गया। सीमा के बुल्गारिया के सोफिया में आयोजित ओलंपिक क्वालिफायर विश्व कुश्ती में सिल्वर मेडल जीतने के साथ ही देश को ओलंपिक में कोटा मिल गया।

जिला के गांव गुढान में तीन एकड़ जमीन के किसान आजाद सिंह की चार बेटियां और एक बेटा है। सीमा भाई-बहनों में सबसे छोटी है। सात साल की उम्र में ही उसने कुश्ती खेलना शुरू कर दिया। हालांकि पिता आजाद सिंह अपने क्षेत्र के नामी कबड्डी खिलाड़ी रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं खेल सके। पारिवारिक परिस्थितियों में चलते खेल को बीच में ही छोड़ना पड़ा। पिता के खेल को सीमा ने आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। लेकिन कबड्डी जगह कुश्ती को चुना क्योंकि बड़ी बहन सुशीला के पति नफे सिंह कुश्ती करते थे। इसलिए सीमा को भी सुशीला रोहतक के बसंत विहार में अपने पास ही रखने लगी। वैसे कुश्ती करना तो 1999 में शुरू कर दिया, लेकिन 2004 में ईश्वर दहिया अखाड़े में नियमित रूप से प्रैक्टिस करने लगी। इसके बाद सीमा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज जिस मुकाम पर पहुंची है, वो हर खिलाड़ी का सपना होता है, लेकिन पूरा हर किसी का नहीं होता।